संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, संभावना है कि 2023 तक भारत चीन को पछाड़कर सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा.
UN पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स नामक रिपोर्ट की 2022 की एडिशन, जो सोमवार, 11 जुलाई को जारी की गई, में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या 2050 में 140 करोड़ लोगों से बढ़कर 167 करोड़, 2064 में 170 करोड़ तक, और 2100 में 153 करोड़ हो जाएगी.
दुनिया की आबादी 15 नवंबर 2022 तक लगभग 8 अरब तक पहुंच जाएगी.
मुख्य बातें:
जबकि 2022 तक दुनिया की आबादी 8 अरब तक पहुंच जाएगी, अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक जनसंख्या बढ़ कर 8.5 अरब तक पहुंच जाएगी, 2050 तक 9.7 अरब, और 2100 तक 10 अरब तक पहुंच जाएगी.
ये 8 देश आधे से अधिक जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार होंगे: द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और यूनाइटेड रिपब्लिक ऑफ तंजानिया.
वृद्ध व्यक्तियों की जनसंख्या में बाकी वर्गों के मुकाबले अधिक वृद्धि देखी जाएगी. 2050 तक, 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वाला वर्ग, वैश्विक जनसंख्या का 16% तक हो जाएगा. 2022 में यह वर्ग वैश्विक जनसंख्या का 10% है.
भारत की प्रजनन दर
संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार, एशिया की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा भारत और चीन का है - दोनों देशों में 140 करोड़ से अधिक लोग हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की प्रजनन दर 2.01 से गिरकर 2050 में 1.78 और 2100 में 1.69 होने की उम्मीद है.
यह 2.3 के वैश्विक औसत से काफी कम है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2050 तक, भारत में 15 से 19 वर्ष की आयु की महिलाओं में होने वाले जन्म की संख्या मौजूदा 9,88,000 से गिरकर 2,82,000 तक हो सकती है.
यह संख्या 2100 तक घटकर 1,32,000 हो जाने की उम्मीद है.
“इन आंकड़ों से सबसे महत्वपूर्ण बात यह निकलती है कि सरकार यौन और प्रजनन पहुंच पर अपना निवेश कैसे बढ़ाएगी, क्लाइमिट चेंज से कैसे निबटेगी और समाज के कमजोर और मार्जिनलाइज्ड वर्गों की देखभाल कैसे करेगी.”देबांजना चौधरी, जेंडर एंड क्लाइमेट एक्शन एक्टिविस्ट
'गर्भनिरोध की जिम्मेदारी पुरुषों और महिलाओं, दोनों की बराबर होनी चाहिए, लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा है'
देबांजना चौधरी कहती हैं कि गर्भनिरोध पुरुषों और महिलाओं, दोनों की जिम्मेदारी होनी चाहिए. "महिलाओं और लड़कियों ने लंबे समय से गर्भनिरोध और परिवार नियोजन का बोझ उठाया है और क्लाइमेट चेंज जलवायु का भी सबसे अधिक प्रभाव उन्हीं पर पड़ता है."
वह आगे कहती हैं कि भारत को सही सेक्स एड्युकेशन दिलाने, बाल विवाह को रोकने और महिलाओं और लड़कियों को यौन और लिंग आधारित हिंसा से बचाने के लिए खुल कर चर्चा करने और बेहतर निवेश और कार्यक्रमों की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भनिरोधक योजनाएं दोतरफा होनी चाहिए:
सुनिश्चित करें कि महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भनिरोधक विकल्प और सुरक्षित गर्भपात की व्यवस्था उपलब्ध हो और वे उन तक आसानी से पहुंच सकें. महिलाओं और लड़कियों को निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए कि बच्चे पैदा करें या नहीं और अगर हां तो कब पैदा करें.
पुरुष गर्भनिरोधक योजना और कार्यक्रमों के साथ-साथ समग्र परिवार नियोजन कार्यक्रमों में भी निवेश की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे परिवार नियोजन इनिशिएटिवों (initiatives) के निर्माण और इम्प्लीमेंटेशन (implementation) की सख्त आवश्यकता है, जो गर्भनिरोधक सेवाओं के प्रति पुरुषों की नकारात्मक मान्यताओं को दूर कर पुरुषों की सहायक भागीदारी को बढ़ावा दे.
एक रिमाइंडर: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, भारत में सभी परिवार नियोजन प्रक्रियाओं का 35.7 प्रतिशत महिला नसबंदी हैं, जबकि पुरुष नसबंदी केवल 0.3 प्रतिशत है.
रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि "जनसांख्यिकीय आंकड़ों की भविष्यवाणियां पानी की कमी, आगामी मुद्दों की वास्तविकताओं और COVID 19 जैसी महामारियों के प्रभावों को ध्यान में रखने में सक्षम नहीं हैं."
"हम पानी की कमी, क्लाइमेट चेंज के साथ-साथ माइग्रेशन पैटर्न्स में भी बदलाव देख रहे हैं. ये सभी जनसंख्या के आंकड़ों को प्रभावित करेंगे."
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