वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक दुनिया भर में हर साल कुष्ठ रोग के करीब दो लाख मामले सामने आते हैं और इनमें आधे से अधिक मामले भारत में होते हैं.
WHO ने बताया है कि इस बीमारी के खात्मे में कुष्ठ रोग को लेकर ‘भेदभाव, लांछन और पूर्वाग्रह’ सबसे बड़ी बाधाएं हैं.
दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए WHO की क्षेत्रीय निदेशक पूनम क्षेत्रपाल सिंह ने दो कानूनों को निरस्त करने की सराहना की.
निरस्त किए गए इन कानूनों में एक कुष्ठ से पीड़ित लोगों के खिलाफ भेदभाव और दूसरा तलाक लेने के लिए कुष्ठ रोग को वैध आधार मानने का है.
उन्होंने कहा दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र, ब्राजील, उप सहारा अफ्रीका और प्रशांत में रोगियों की काफी संख्या का पता लगा है.
सिंह ने बताया कि कुष्ठ रोग को समाप्त करने में कुष्ठ संबंधी भेदभाव, लांछन और पूर्वाग्रह सबसे प्रमुख बाधाएं हैं.
शुरू में कुष्ठ रोग का पता लगने पर इसका 100 प्रतिशत इलाज संभव है.
उन्होंने कहा कि दुनिया भर में कुष्ठ रोग के मामले में तेजी से गिरावट आई है. हालांकि दुनिया में एक अनुमान के मुताबिक हर साल दो लाख मामले सामने आते हैं, जिसमें आधे मामले भारत में होते हैं.
कुष्ठ रोग, जिसे आमतौर पर हैन्सन्स रोग कहा जाता है, इसका कारण धीमी गति से विकसित होने वाला एक बैक्टीरिया है, जो माइकोबैक्टीरियम लेप्री (एम लेप्री) कहलाता है.
इस रोग में त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है, त्वचा पर ऐसी गांठें या घाव हो जाते हैं जो कई हफ्तों या महीनों के बाद भी ठीक नहीं होते. इसमें तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिसके चलते हाथों और पैरों की पेशियां कमजोर हो जाती हैं और उनमें संवेदनशीलता कम हो जाती है.
(इनपुट: भाषा, आईएएनएस)
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