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2.0, पक्षी, मधुमक्खियां, सेहत और रेडिएशन: क्या कहता है विज्ञान?

रजनीकांत और अक्षय कुमार की 2.0 देखकर हैरान तो नहीं हैं?

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मई 2018 में आई एक स्टडी में दावा किया गया था कि सेलफोन्स से निकले रेडिएशन पक्षियों, मधुमक्खियों और पौधों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसे में सुपरस्टार रजनीकांत की नई साइंस फिक्शन थ्रिलर 2.0 से आपको हैरत तो नहीं हुई होगी?

इससे पहले साल 2010 में द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक एक स्टडी में कहा गया था रेडिएशन से चिड़ियों और मधुमक्खियों को नुकसान हो सकता है.

हम सभी जानते हैं कि मधुमक्खियों के मरने से क्या होता है? दुनिया का अंत.

क्या अपना फोन इस्तेमाल न करने की सोच रहे हैं? थोड़ी और जानकारी ले लीजिए.

पिछले कई साल से बहुत सी स्टडीज ने सेलफोन रेडिएशन के सेहत पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता जाहिर की है. 2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सेलफोन को 'संभावित मानव कैंसरजन' के तौर पर वर्गीकृत किया था. इसके बाद कई देशों में अभिभावकों को चेतावनी दी गई थी कि वे अपने बच्चों को सेलफोन्स से दूर रखें. ये साल 2018 है और इन अध्ययनों के बाद भी हम कहां हैं?

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रेडिएशन और ब्रेन कैंसर

नवंबर 2018 में दुनिया की सबसे बड़ी स्टडी/प्रयोग में ये खुलासा हुआ कि सेलफोन के रेडिएशन से कैंसर हो सकता है. द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इसे सबसे महंगा प्रयोग माना गया, जिसमें 3 हजार से ज्यादा चूहों को शामिल किया गया था.

अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत यूएस नेशनल टॉक्सिकोलॉजी प्रोग्राम ने एक प्रयोग में साफ तौर पर पाया कि कुछ सेलफोन्स के रेडिएशन से हार्ट में ट्यूमर हो सकता है और इस बात के सबूत भी मिले कि ये चूहों में ब्रेन कैंसर की वजह बन सकता है. अब क्योंकि इस प्रयोग में चूहों को जितने रेडिएशन के संपर्क में लाया गया, वो उससे कहीं ज्यादा था, जितने रेडिएशन के संपर्क में इंसान आते हैं. चूहों को 2 साल तक रोजाना 9 घंटे रेडिएशन के संपर्क में रखा गया था. हालांकि चूहे बड़े पैमाने पर 2 जी और 3 जी विकिरण के संपर्क रखे गए थे.

जी हां, आप चूहे नहीं हैं और उन बेचारे चूहों को पुरानी तकनीक के बहुत ज्यादा संपर्क में रखा गया. लेकिन अब जितनी तादाद में लोग सेलफोन्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, विशेषज्ञों ने चेताया है कि इसके नतीजे महत्वपूर्ण हैं.

सेलफोन की लॉबी

तंबाकू और ईंधन की बड़े पैमान पर लॉबी की तरह ही एक्सपर्ट्स सेलफोन की लॉबी के जरिए ऐसी स्टडीज की अहमियत को कम किए जाने का दावा करते हैं. जब भी किसी बड़ी स्टडी में सेलफोन्स और कैंसर के बीच कोई कनेक्शन पाया जाता है, उससे अलग दूसरी स्टडीज सामने ला दी जाती हैं.

गार्जियन में छपे एक लेख में इस बात पर जोर दिया गया था कि किस तरह लॉबी के हस्तक्षेप से स्टडीज के निष्कर्षों की अहमियत को कम किया जाता है, उसका विरोध किया जाता है या उस पर संदेह जता दिया जाता है. 1990 से 2006 के बीच हुई 326 स्टडीज की जांच में पाया गया था कि इंडस्ट्री की सहायता से किए गए 28% स्टडीज की तुलना में स्वतंत्र रूप से किए गए 67% अध्ययनों में कैंसर और सेलफोन्स के बीच लिंक देखा गया था.

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4 जी और 5 जी का क्या?

चौथे जनरेशन के सेलफोन्स में और भी हाई फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ये फ्रीक्वेंसीज मानव शरीर में प्रवेश करने में ज्यादा कामयाब नहीं हो पातीं.

लेकिन यहां दिक्कत है. भले ही नई तकनीक दुनिया को पहले से कहीं ज्यादा जोड़ दे, ये रेडिएशन पर हमारी निर्भरता और उसके संपर्क में आना भी उतना ही ज्यादा बढ़ाएगी.

अब आप क्या करें? सारा दिन फोन में ही न लगे रहें

  • फोन को बैग में रखें. इसे हमेशा अपने हाथ में रखना जरूरी नहीं है.
  • फोन को पास रखकर न सोएं. फोन आपका सगा नहीं हैं, ये सिर्फ आपके सगे-संबंधियों से जुड़ने का एक जरिया भर है.
  • स्पीकरफोन का इस्तेमाल करें.
  • अगर सिग्नल अच्छा न हो, तो फोन यूज न करें. क्योंकि ऐसे में फोन को और ज्यादा रेडियो फ्रीक्वेंसी की जरूरत पड़ती है.
  • मोबाइल की बजाए अपने पसंदीदा शो कंप्यूटर या टीवी पर देखें.
  • अगर किसी से बात करने का मन नहीं है, तो फोन में एयरप्लेन मोड का यूज करें या फिर उसे स्विच ऑफ ही कर दें.
  • अपने किसी दोस्त से मिलने जाइए. कॉफी, ड्रिंक पर गप्पे मारिए.

या फिर 2.0 से अक्षय कुमार के पक्षीराज के आने का इंतजार करिए, जो आपके हाथों से सेलफोन खींच ले.

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