महात्मा गांधी ने मेरे सपनों के भारत में लिखा है, “स्वतंत्रता सबसे अंतिम जन से शुरू होनी चाहिए.” राष्ट्रपिता ने पंचायती राज को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है, “इससे प्रत्येक गांव में गणतंत्र होगा, सभी पंचायतों के पास संपूर्ण शक्ति होगी, सभी गांव आत्म निर्भर होंगे और पूरी दुनिया से अपनी रक्षा में सक्षम भी होंगे.”
राष्ट्रपति महात्मा गांधी के इस व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप, 24 अप्रैल 1993 को भारतीय संविधान में 73वां संशोधन लागू हुआ, जिसके तहत ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन (Self government) के लिए पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला.
तब से समय-समय पर, खासकर स्वास्थ्य के मुद्दों पर पंचायती राज व्यवस्था ने ग्रामीण शासन व्यवस्था को बेहतर बनाने में अहम योगदान दिया है.
कोरोना संक्रमण के दौरान भी यह देखा गया कि स्थानीय जन प्रतिनिधियों ने आम लोगों की मदद करके जमीनी स्तर पर संक्रमण के प्रभाव को कम करने में मदद पहुंचायी.
उत्तर प्रदेश के प्रत्येक ग्राम पंचायत में कोरोना संक्रमण पर नजर रखने और संक्रमित लोगों को चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ग्राम निगरानी समिति बनाई गई थी, जबकि ओड़िशा में ग्राम स्तर पर लोगों को क्वारंटीन करने से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर फैसला लेने के लिए पंचायत प्रमुख को जिलाधिकारी की तरह निर्णायक अधिकार दिए गए थे.
ऐसी सक्षम और कारगर पंचायती राज व्यवस्था की पहचान कर, इसका इस्तेमाल सामुदायिक स्तर पर भारत में लाखों लोगों की मौत की वजह बनने वाली दूसरी संक्रामक बीमारियों पर अंकुश लगाने के लिए होना चाहिए. इस लिहाज से यह व्यवस्था क्षय रोग यानी टीबी उन्मूलन के लिए भी कारगर हो सकती है.
टीबी दशकों से भारतीय समाज को प्रभावित कर रहा है
ग्लोबल टीबी रिपोर्ट, 2021 के मुताबिक, 2019-2020 के बीच दुनिया भर में टीबी के मामलों में सबसे ज्यादा 41 प्रतिशत की कमी भारत में दर्ज हुई है. इंडिया टीबी रिपोर्ट, 2022 के ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2020 में सभी तरह के टीबी (एचआईवी संक्रमित शामिल नहीं) संक्रमित 4.93 लाख लोगों की मौत हुई है. जो 2019 के अनुमान से 13 प्रतिशत अधिक है.
टीबी दशकों से भारतीय समाज को प्रभावित कर रहा है लेकिन इसको लेकर अभी जागरूकता का स्तर बहुत कम है. भारत में टीबी की रोकथाम को लेकर हाल में हुए राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक, बीमारी के लक्षण वाले महज 36 प्रतिशत लोग देखभाल और उपचार की कोशिश करते हैं परंतु, चौंकाने वाली बात यह है कि 64 प्रतिशत मामलों में लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं और इसके उपचार की कोशिश नहीं करते.
इन लोगों में लगभग 68 प्रतिशत लोग टीबी के लक्षणों की या तो उपेक्षा करते हैं या फिर उनके पास इसकी जानकारी नहीं होती है.
पंचायती राज व्यवस्था की हो सकती है कारगर भूमिका
ऐसी स्थिति में पंचायती राज व्यवस्था कारगर भूमिका निभा सकती है. पंचायत के सदस्य, समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों से जुड़े होते हैं और उनका लोगों पर अच्छा प्रभाव भी होता है.
ऐसे में टीबी उन्मूलन को लेकर राष्ट्रीय नीति और सामुदायिक स्तर पर उसे लागू करने में वे अहम भूमिका निभा सकते हैं. वे टीबी से जुड़ी सही जानकारी देकर लोगों के बीच इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर कर सकते हैं.
स्थानीय तौर पर समाज के प्रतिनिधि होने के चलते वे पूरे समुदाय को रास्ता दिखा सकते हैं, जिससे पूरे समुदाय का स्वास्थ्य बेहतर होगा.
समाज में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा कलंक झेलना पड़ता है. इस मामले में भी ग्राम प्रधान की भूमिका अहम हो सकती है. सच्चाई यह है कि अगर समय पर बीमारी की पहचान कर ली जाए, तो टीबी का इलाज संभव है.
किसी भी रोगी, खासकर किसी महिला को उनकी बीमारी के लिए समाज से बहिष्कृत नहीं करना चाहिए. ऐसी स्थिति में स्थानीय रूप से चुने गए जनप्रतिनिधियों की भूमिका अहम हो जाती है. टीबी जैसी गंभीर बीमारी को खत्म करने में पंचायती राज व्यवस्था जैसा मजबूत ढांचा सभी कोशिशों में जान फूंक सकता है.
ग्राम पंचायत प्रमुख की अध्यक्षता “ग्रामीण स्वास्थ्य स्वच्छता एवं पोषण कमेटी” स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर कर सकती हैं. सामुदायिक स्तर पर लोगों की सेहत और स्वास्थ्य सुविधाओं पर नजर रखने के लिए गांव में हेल्थ इंडेक्स रजिस्टर्स की व्यवस्था होती है.
टीबी संक्रमित मरीजों की निगरानी कर आशा कार्यकर्ता हेल्थ इंडेक्स रजिस्टर्स में उन्हें रिकॉर्ड कर सकें, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान की ही होती है.
जमीनी स्तर पर टीबी की रोकथाम में पंचायती राज व्यवस्था के जरिये देश के कुछ हिस्सों में कामयाबी भी मिली है. उदाहरण के लिए, “कम्यूनिटी इंगेजमेंट एंड लीडरशिप डेवलपमेंट (सीईएलडी)” प्रोग्राम में हमलोगों को शामिल होने का मौका मिला और इस प्रोग्राम ने उत्तर प्रदेश के दो जिलों के कुछ प्रखंड में टीबी संबंधित कार्यक्रमों में सामुदायिक भागीदारी बढ़ी है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्राम पंचायतों को इतना सक्षम बनाना है कि वे ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर निगरानी कर सकें.
उत्साहवर्धक यह है कि 2021 की शुरुआत में पंद्रहवें वित्त आयोग ने अगले पांच सालों के लिए पंचायती राज व्यवस्था के मद में 4,36,361 करोड़ रुपये के अनुदान की अनुशंसा की थी, यह 2015-20 की तुलना में 52 प्रतिशत अधिक है. यह सामुदायिक स्तर पर लोगों में सेवाएं पहुंचाने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति को दर्शाता है.
इसलिए देश के अंदर कहीं मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली के विकास में पंचायतों को जोड़ने का यह उपयुक्त समय है. भारत कोरोना के बाद भविष्य के लिए तैयारी कर रहा है और 2025 तक टीबी उन्मूलन की योजनाएं बना रहा है, ऐसे में समाज के अंतिम पायदान पर मौजूद लोगों तक पहुंचने के लिए पंचायती राज व्यवस्था एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.
(घोष, शंकर और मिश्रा टीबी, प्रजनन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, लिम्फैटिक फाइलेरिया और अन्य स्वास्थ्यगत मुद्दों पर काम करने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्था “ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज” के साथ जुड़े हैं.)
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