अपूर्वा सेंटर फॉर ऑटिज्म की प्रमुख नित्या ने कहा, "शायद अगर स्वाति सरकार को अपने ऑटिस्टिक बच्चे को संभालने के लिए प्रशिक्षित किया जाता, तो हम उसे नहीं खोते." 27 अगस्त 2017 को, स्वाति ने श्रेया को बेंगलुरु के जेपी नगर में अपने तीसरी मंजिल के अपार्टमेंट की छत से दो बार नीचे फेंका. सात साल की बच्ची की तुरंत मौत हो गई. घटना के चश्मदीद गवाह रहे इलाके के लोगों ने पुलिस के मौके पर पहुंचने और उसे हिरासत में लेने तक मां को बिजली के खंभे से बांधकर रखा.
श्रेया, जो एक ऑटिस्टिक बच्ची थी, स्पीच डेवलपमेंट इशू थे.
मां स्वाति नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) में न्यायिक हिरासत में है.
"ऑटिज्म एक ऐसा विकार है, जो आमतौर पर एक से तीन साल की उम्र के बीच पहचाना जाता है. चूंकि इसका संबंध बच्चे के विकास में देरी से है, इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है. मुझे लगता नहीं है कि स्वाति के पास अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए पर्याप्त सहायता थी."डॉ सुरेश बड़ा मठ, फोरेंसिक सकाइअट्रस्ट, NIMHANS
ऑटिस्टिक बच्चों को पालने में माता-पिता की भूमिका
ऑटिज्म किसी एक प्रकार का नहीं होता है और हर प्रकार के ऑटिज्म के लक्षण अलग अलग होते हैं, संवेदी कठिनाइयों से लेकर सोशल डिसएंगेजमेंट तक. सरबानी मलिक बेंगलुरु की एक विशेष शिक्षक हैं, जो दो दशक से अधिक समय से ऑटिस्टिक बच्चों और उनके माता-पिता के साथ काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि माता-पिता के लिए हर दिन बदलते व्यवहार से निपटना वास्तव में कठिन हो जाता है.
स्वाति कुछ साल पहले अपने पति से अलग हो गई थी. मुझे लगता है कि वह भावनात्मक, वित्तीय और मोरल सपोर्ट से वंचित थी. ऐसे में हम उनसे एक ऑटिस्टिक बच्चे की देखभाल की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. सहायता की कमी ने ही उसे अपने ही बच्चे को मारने के इतने बड़े कदम उठाने के तरफ धकेला होगा.सरबानी मलिक, विशेष शिक्षक
ऑटिज्म एक जटिल स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है. माता-पिता को यह जानना चाहिए कि वे बच्चों के मूड, चिंता और ध्यान की समस्याओं को कैसे संभाल सकते हैं. “केवल कुछ ही स्कूल और चिकित्सा केंद्र माता-पिता को विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. जो लोग ऐसा करते हैं, वे बहुत सारा पैसा वसूलते हैं, जिसके कारण माता-पिता इसे लेने से पीछे हट जाते हैं”, अपूर्वा सेंटर फॉर ऑटिज्म की प्रमुख, नित्या ने कहा.
ऑटिस्टिक बच्चों के लिए उपलब्ध सहायता
रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में ऑटिज्म का अनुमानित प्रसार दर 500 में से एक है. "स्कूलों, बाल मनोचिकित्सकों और न्यूरोलॉजिस्ट, जो ऑटिज्म वाले बच्चों को संभालने के योग्य हैं, की संख्या बहुत कम है. अगर साधारण स्कूल ऐसे बच्चों को एडमिट भी करते हैं, तो उन्हें उस तरह की देखभाल नहीं मिल सकती है, जिसकी उन्हें जरूरत है”, डॉ सुरेश बड़ा मठ ने कहा.
संभावनम सेंटर फॉर ऑटिज्म के निदेशक, वेणु जी वी के, का खुद एक ऑटिस्टिक बच्चा है. एक ऑटिस्टिक बच्चे को संभालने में असामान्य व्यवहार झेलना पड़ता है, जिसमें संचार और सामाजिक संघर्ष शामिल हैं. वेणु का मानना है कि संस्थानों द्वारा दिये जाने वाले उपचार और देखभाल पर्याप्त नहीं है.
"कई स्कूलों में ऑटिज्म को अच्छी तरह से नहीं समझा जाता है. तीन साल तक बच्चे को इन्टेन्सिव थेरेपी की आवश्यकता होती है, जिसके बाद उन्हें ढालना और सामाजिक रूप से अनुकूलित करना होता है. ऑटिस्टिक बच्चों के साथ काम करने वाले विशेष शिक्षकों के पास एप्लाइड बिहेवियरल एनालिसिस का सर्टिफिकेशन होना चाहिए, लेकिन बेंगलुरु में मुश्किल से 35 से 40 लोग हैं, जिनके पास यह है."संभावनम सेंटर फॉर ऑटिज्म
महंगे थेरेपी सेशन
ऑटिज्म एक प्रकार का डिसऑर्डर है, जो आम तौर पर जीवन भर रहता है. हालांकि, जल्दी थेरेपी शुरू कर देने से मानसिक स्थिति में सुधार आ सकती है. इस कारण माता-पिता मजबूर हो जाते हैं, अपने बच्चों का यह महंगा इलाज कराने के लिए. सरबानी ने कहा, "एक स्पीच थेरेपी सेशन में 650 से 700 रुपये खर्च हो सकते हैं. मिडल-क्लास के माता-पिता को इतना खर्च करने में बेहद मुश्किल हो सकती है."
ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता को दिन-प्रतिदिन नई और अपरिचित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. स्कूलों, चिकित्सकों और समुदाय की ओर से एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम, माता-पिता को अपने बच्चों का देखभाल करने में सक्षम बना सकता है.
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