Pneumonia Risks In Children: सर्दी के मौसम में बच्चे निमोनिया के अधिक शिकार बनते हैं और ऐसा कई कारणों से होता है. बच्चों और नवजात शिशुओं का कमजोर इम्यून सिस्टम या पहले से मौजूद दूसरे रोगों की वजह से इन इन्फेक्शन का जोखिम अधिक होता है.
सर्द मौसम और पड़ोसी देश चीन में बच्चों में बढ़ते निमोनिया के मामलों ने चिंता और बढ़ा दी है.
क्यों सर्दी में बच्चों में निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है? चीन में बच्चों में निमोनिया के बढ़ते मामले क्या भारत के लिए परेशानी की बात है? क्या है निमोनिया होने का कारण? क्या हैं निमोनिया के शुरुआती लक्षण? निमोनिया के इमरजेंसी संकेत क्या होते हैं? कैसे रखें निमोनिया से ग्रस्त बच्चों का ख्याल? इन सारे सवालों के जवाब जानते हैं एक्सपर्ट्स से.
Pneumonia Risk: बच्चों में निमोनिया के इन लक्षणों को देखते ही करें डॉक्टर से संपर्क
1. क्यों सर्दी में बच्चों में निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है?
सर्दी के मौसम में बच्चे और बूढ़े निमोनिया के अधिक शिकार बनते हैं और ऐसा कई कारणों से होता है. जैसे कि सर्दी में हवा ड्राई हो जाती है जिसकी वजह से सांस की नली में खुश्की आती है और उसे नुकसान भी पहुंचता है. इस कारण पैथोजन्स (रोगाणु) आसानी से बॉडी में इन्फेक्शन पैदा करते हैं.
"सर्दियों में लोग ज्यादा समय घरों के अंदर (इंडोर) बिताते हैं और इस वजह से भी एयरबोर्न वायरस और बैक्टीरिया के संपर्क में आने का खतरा बढ़ता है, खासतौर से भीड़-भाड़ वाली जगह पर."
डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्लीडॉ. पूनम सिदाना आगे कहती हैं कि कुछ स्टडीज से यह खुलासा हुआ है कि तापमान कम होने से कई बार इम्यूनोसप्रेशन की समस्या सामने आती है, जिसमें इम्यून सिस्टम अस्थायी रूप से कमजोर पड़ता है और ऐसे में शरीर के लिए इन्फेक्शन से लड़ना और भी मुश्किल हो जाता है.
बच्चों और बुजुर्गों को कमजोर इम्यून सिस्टम (खासतौर से नवजात शिशुओं को) या पहले से मौजूद दूसरे रोगों की वजह से इन इन्फेक्शन का जोखिम अधिक होता है.
ये तमाम फैक्टर्स मिलकर सर्दी के मौसम में निमोनिया के लिए एकदम अनुकूल हालात तैयार करते हैं.
Expand2. क्या है निमोनिया होने का कारण?
"निमोनिया का कारण लंग्स (फेफड़े) को प्रभावित करने वाले बैक्टीरिया, वायरस या फंगस होते हैं, जिनके कारण फेफड़ों में सूजन आती है और सांस लेने में परेशानी होने लगती है."
डॉ. नेहा रस्तोगी पांडा, कंसलटेंट – इंफेक्शियस डिजीज, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्रामआमतौर पर, हेल्दी लोगों के अपर एयरवे में मौजूद बैक्टीरिया किसी तरह के हेल्थ क्राइसिस का कारण नहीं बनते हैं. लेकिन जब हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर होता है (उम्र, बीमारी या किसी दूसरे कारण) तब यही बैक्टीरिया मौका देखकर एयरवे के निचले हिस्से तक पहुंचकर हमला करते हैं और इन्फेक्शन पैदा कर निमोनिया का कारण बनते हैं.
यही वजह है कि जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जैसे कि बच्चों, बूढ़ों या नवजात शिशुओं का, उन्हें निमोनिया का खतरा अधिक रहता है.
"लेकिन सिर्फ बैक्टीरिया पर ही सारा दोष मढ़ना सही नहीं है. कई वायरस, जैसे कि फ्लू वायरस भी फेफड़ों पर सीधा हमला करते हैं और निमोनिया के लक्षण पैदा करते हैं."
डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्लीइसलिए जब भी आपको लगे कि खांसी बढ़ रही है या बलगम पैदा हो रहा है, तो अपने हेल्थ को लेकर अलर्ट हो जाएं ताकि बैक्टीरिया और वायरस जैसे रोगाणुओं से बचाव किया जा सके.
Expand3. क्या हैं निमोनिया के शुरुआती लक्षण?
"बेशक, निमोनिया में खांसी और तेज बुखार होता है लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके शुरुआती लक्षण अक्सर छिपे रहते हैं या धीरे-धीरे दिखायी पड़ते हैं. इसलिए ड्राई खांसी, तेज या भारी सांस के चलते रोजमर्रा के काम करना भी मुश्किल लगे और ऑक्सीजन लेवल गिरने लगे तो अलर्ट हो जाएं" ये कहना है डॉ. पूनम सिदाना का.
निमोनिया के शुरुआती लक्षणों में खांसी, बुखार, छाती में दर्द और सांस लेने में कठिनाई होती है.
"छोटे बच्चों में निमोनिया के शुरुआती लक्षणों में प्रमुख होता है छाती का पीछे की तरफ खिंचाव होना जो कि हर बार सांस लेने पर उनके सीने की हड्डियों को उभारता है. भूख कम हो जाती है या बच्चे को स्तनपान करने में कठिनाई होता है, ये लक्षण इशारा होते हैं कि बच्चा सांस की तकलीफ का शिकार हो चुका है."
डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्लीयाद रखें कि जल्द से जल्द रोग के पकड़ में आने से रिकवरी जल्दी होने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए अपने बच्चों के शरीर के संकेतों को सुनें और अगर लगे कि ये संकेत धीरे-धीरे बढ़कर अधिक तेज हो गए हैं, तो तुरंत मेडिकल हेल्प लें.
Expand4. निमोनिया के इमरजेंसी संकेत क्या होते हैं?
निमोनिया के लक्षण शुरू में धीरे-धीरे बढ़ते हैं, लेकिन रोग के गंभीर होते ही ये लक्षण बुरी तरह से चीख-पुकार में बदल जाते हैं. इसलिए हमेशा सतर्क रहें और सांसों पर नजर रखें, कहीं ये तेज या भारी तो नहीं हो गईं, आंखों में कमजोरी और थकान तो नहीं हैं या सांस लेना मुश्किल तो नहीं हो रहा.
तेजी से एक्शन लें, मेडिकल हेल्प लेने में देरी न करें और याद रखें तुरंत एक्शन लेने से निमोनिया की चीख-पुकार को पलटकर रिकवरी में बदला जा सकता है.
एक्सपर्ट्स ने बताया इन लक्षणों के बारे में जिन पर खास ध्यान देना चाहिए:
सांस तेज चलना
तेज बुखार
सीने में दर्द
होंठों या नाखूनों का नीला-बैंगनी
कमरे का ऑक्सीजन लेवल गिरने पर अगर छोटा बच्चा स्तनपान तक नहीं कर पाता तो इसे चेतावनी समझें.
अगर आपको लगे कि बच्चे की अलर्टनैस में कमी आयी है और दवा देने पर भी बुखार टस से मस नहीं हुआ तो ये ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए.
Expand5. कैसे रखें निमोनिया से ग्रस्त बच्चों का ख्याल?
छोटे बच्चों को जहां तक हो सके स्तनपान करवाएं, पोषक खुराक उनके शरीर को बाहरी हमलों से लड़ने की ताकत देती है. गरम और नमी वाली हवा उनकी ड्राई खांसी में राहत देती है जबकि एंटीबायोटिक्स उन्हें इन्फेक्शन से लड़ने में मददगार होती हैं.
निमोनिया से ग्रस्त छोटे बच्चों को काफी आराम की जरूरत होती है. लगातार ध्यान दें कि कहीं उनकी हालत बिगड़ तो नहीं रही. अगर ऐसा महसूस हो तो तुरंत मेडिकल सहायता लें.
बच्चे का टेम्परेचर देखते रहें.
डॉक्टर की बतायी दवाएं दें.
ज्यादा से ज्यादा आराम करने दें.
बच्चे को हाइड्रेटेड रखें.
"यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ लोगों/बच्चों को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है और इसके लिए उन्हें हॉस्पिटल केयर, ऑक्सीजन या दूसरा सपोर्ट मिलना जरुरी है. ऐसे में उनके लिए सुकून का इंतजाम करें, उन्हें अपनी कमजोर सांसों को संभालने का मौका दें, धीरे-धीरे सेहत की थपकी दें."
डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्लीExpand6. चीन में बच्चों में निमोनिया के बढ़ते मामले क्या भारत के लिए परेशानी की बात है?
डॉ. पूनम सिदाना फिट हिंदी से कहती हैं, "बेशक, चीन में हाल के दिनों में बच्चों में बढ़ते निमोनिया के मामले चिंता का कारण हैं, लेकिन फिलहाल ऐसे कोई नए पैथोजेन्स के प्रमाण नहीं मिले हैं, जो भारत के लिए परेशानी पैदा करने वाले हैं. पैथोजेन्स का प्रसार कम्युनिटी लेवल पर या संक्रमित व्यक्ति के जरिए होता है".
"WHO ने इन बढ़ते मामलों का कारण पहले से मौजूद आरएसवी और इंफ्लुएंजा को बताया है, जो कि इस सीजन में फैलते हैं. लेकिन इसके बावजूद सतर्कता बरतना जरूरी है."
डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्लीसाथ ही, मजबूत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर सुनश्चित करना और किसी भी असामान्य स्ट्रेन के सामने आने पर अलर्ट रहना जरूरी है. याद रखें, ग्लोबल लेवल पर किसी भी स्वास्थ्य संबंधी संकट को दूर रखने के लिए पहले से जरूरी उपायों को अमल में लाना चाहिए और कोई खतरा न हो तब भी ऐसा करते रहना चाहिए.
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क्यों सर्दी में बच्चों में निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है?
सर्दी के मौसम में बच्चे और बूढ़े निमोनिया के अधिक शिकार बनते हैं और ऐसा कई कारणों से होता है. जैसे कि सर्दी में हवा ड्राई हो जाती है जिसकी वजह से सांस की नली में खुश्की आती है और उसे नुकसान भी पहुंचता है. इस कारण पैथोजन्स (रोगाणु) आसानी से बॉडी में इन्फेक्शन पैदा करते हैं.
"सर्दियों में लोग ज्यादा समय घरों के अंदर (इंडोर) बिताते हैं और इस वजह से भी एयरबोर्न वायरस और बैक्टीरिया के संपर्क में आने का खतरा बढ़ता है, खासतौर से भीड़-भाड़ वाली जगह पर."डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
डॉ. पूनम सिदाना आगे कहती हैं कि कुछ स्टडीज से यह खुलासा हुआ है कि तापमान कम होने से कई बार इम्यूनोसप्रेशन की समस्या सामने आती है, जिसमें इम्यून सिस्टम अस्थायी रूप से कमजोर पड़ता है और ऐसे में शरीर के लिए इन्फेक्शन से लड़ना और भी मुश्किल हो जाता है.
बच्चों और बुजुर्गों को कमजोर इम्यून सिस्टम (खासतौर से नवजात शिशुओं को) या पहले से मौजूद दूसरे रोगों की वजह से इन इन्फेक्शन का जोखिम अधिक होता है.
ये तमाम फैक्टर्स मिलकर सर्दी के मौसम में निमोनिया के लिए एकदम अनुकूल हालात तैयार करते हैं.
क्या है निमोनिया होने का कारण?
"निमोनिया का कारण लंग्स (फेफड़े) को प्रभावित करने वाले बैक्टीरिया, वायरस या फंगस होते हैं, जिनके कारण फेफड़ों में सूजन आती है और सांस लेने में परेशानी होने लगती है."डॉ. नेहा रस्तोगी पांडा, कंसलटेंट – इंफेक्शियस डिजीज, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम
आमतौर पर, हेल्दी लोगों के अपर एयरवे में मौजूद बैक्टीरिया किसी तरह के हेल्थ क्राइसिस का कारण नहीं बनते हैं. लेकिन जब हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर होता है (उम्र, बीमारी या किसी दूसरे कारण) तब यही बैक्टीरिया मौका देखकर एयरवे के निचले हिस्से तक पहुंचकर हमला करते हैं और इन्फेक्शन पैदा कर निमोनिया का कारण बनते हैं.
यही वजह है कि जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जैसे कि बच्चों, बूढ़ों या नवजात शिशुओं का, उन्हें निमोनिया का खतरा अधिक रहता है.
"लेकिन सिर्फ बैक्टीरिया पर ही सारा दोष मढ़ना सही नहीं है. कई वायरस, जैसे कि फ्लू वायरस भी फेफड़ों पर सीधा हमला करते हैं और निमोनिया के लक्षण पैदा करते हैं."डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
इसलिए जब भी आपको लगे कि खांसी बढ़ रही है या बलगम पैदा हो रहा है, तो अपने हेल्थ को लेकर अलर्ट हो जाएं ताकि बैक्टीरिया और वायरस जैसे रोगाणुओं से बचाव किया जा सके.
क्या हैं निमोनिया के शुरुआती लक्षण?
"बेशक, निमोनिया में खांसी और तेज बुखार होता है लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके शुरुआती लक्षण अक्सर छिपे रहते हैं या धीरे-धीरे दिखायी पड़ते हैं. इसलिए ड्राई खांसी, तेज या भारी सांस के चलते रोजमर्रा के काम करना भी मुश्किल लगे और ऑक्सीजन लेवल गिरने लगे तो अलर्ट हो जाएं" ये कहना है डॉ. पूनम सिदाना का.
निमोनिया के शुरुआती लक्षणों में खांसी, बुखार, छाती में दर्द और सांस लेने में कठिनाई होती है.
"छोटे बच्चों में निमोनिया के शुरुआती लक्षणों में प्रमुख होता है छाती का पीछे की तरफ खिंचाव होना जो कि हर बार सांस लेने पर उनके सीने की हड्डियों को उभारता है. भूख कम हो जाती है या बच्चे को स्तनपान करने में कठिनाई होता है, ये लक्षण इशारा होते हैं कि बच्चा सांस की तकलीफ का शिकार हो चुका है."डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
याद रखें कि जल्द से जल्द रोग के पकड़ में आने से रिकवरी जल्दी होने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए अपने बच्चों के शरीर के संकेतों को सुनें और अगर लगे कि ये संकेत धीरे-धीरे बढ़कर अधिक तेज हो गए हैं, तो तुरंत मेडिकल हेल्प लें.
निमोनिया के इमरजेंसी संकेत क्या होते हैं?
निमोनिया के लक्षण शुरू में धीरे-धीरे बढ़ते हैं, लेकिन रोग के गंभीर होते ही ये लक्षण बुरी तरह से चीख-पुकार में बदल जाते हैं. इसलिए हमेशा सतर्क रहें और सांसों पर नजर रखें, कहीं ये तेज या भारी तो नहीं हो गईं, आंखों में कमजोरी और थकान तो नहीं हैं या सांस लेना मुश्किल तो नहीं हो रहा.
तेजी से एक्शन लें, मेडिकल हेल्प लेने में देरी न करें और याद रखें तुरंत एक्शन लेने से निमोनिया की चीख-पुकार को पलटकर रिकवरी में बदला जा सकता है.
एक्सपर्ट्स ने बताया इन लक्षणों के बारे में जिन पर खास ध्यान देना चाहिए:
सांस तेज चलना
तेज बुखार
सीने में दर्द
होंठों या नाखूनों का नीला-बैंगनी
कमरे का ऑक्सीजन लेवल गिरने पर अगर छोटा बच्चा स्तनपान तक नहीं कर पाता तो इसे चेतावनी समझें.
अगर आपको लगे कि बच्चे की अलर्टनैस में कमी आयी है और दवा देने पर भी बुखार टस से मस नहीं हुआ तो ये ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए.
कैसे रखें निमोनिया से ग्रस्त बच्चों का ख्याल?
छोटे बच्चों को जहां तक हो सके स्तनपान करवाएं, पोषक खुराक उनके शरीर को बाहरी हमलों से लड़ने की ताकत देती है. गरम और नमी वाली हवा उनकी ड्राई खांसी में राहत देती है जबकि एंटीबायोटिक्स उन्हें इन्फेक्शन से लड़ने में मददगार होती हैं.
निमोनिया से ग्रस्त छोटे बच्चों को काफी आराम की जरूरत होती है. लगातार ध्यान दें कि कहीं उनकी हालत बिगड़ तो नहीं रही. अगर ऐसा महसूस हो तो तुरंत मेडिकल सहायता लें.
बच्चे का टेम्परेचर देखते रहें.
डॉक्टर की बतायी दवाएं दें.
ज्यादा से ज्यादा आराम करने दें.
बच्चे को हाइड्रेटेड रखें.
"यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ लोगों/बच्चों को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है और इसके लिए उन्हें हॉस्पिटल केयर, ऑक्सीजन या दूसरा सपोर्ट मिलना जरुरी है. ऐसे में उनके लिए सुकून का इंतजाम करें, उन्हें अपनी कमजोर सांसों को संभालने का मौका दें, धीरे-धीरे सेहत की थपकी दें."डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
चीन में बच्चों में निमोनिया के बढ़ते मामले क्या भारत के लिए परेशानी की बात है?
डॉ. पूनम सिदाना फिट हिंदी से कहती हैं, "बेशक, चीन में हाल के दिनों में बच्चों में बढ़ते निमोनिया के मामले चिंता का कारण हैं, लेकिन फिलहाल ऐसे कोई नए पैथोजेन्स के प्रमाण नहीं मिले हैं, जो भारत के लिए परेशानी पैदा करने वाले हैं. पैथोजेन्स का प्रसार कम्युनिटी लेवल पर या संक्रमित व्यक्ति के जरिए होता है".
"WHO ने इन बढ़ते मामलों का कारण पहले से मौजूद आरएसवी और इंफ्लुएंजा को बताया है, जो कि इस सीजन में फैलते हैं. लेकिन इसके बावजूद सतर्कता बरतना जरूरी है."डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनोटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
साथ ही, मजबूत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर सुनश्चित करना और किसी भी असामान्य स्ट्रेन के सामने आने पर अलर्ट रहना जरूरी है. याद रखें, ग्लोबल लेवल पर किसी भी स्वास्थ्य संबंधी संकट को दूर रखने के लिए पहले से जरूरी उपायों को अमल में लाना चाहिए और कोई खतरा न हो तब भी ऐसा करते रहना चाहिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)