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कई देशों में AstraZeneca वैक्सीन पर रोक,भारत को डरने की जरूरत है? 

कुछ लोगों में ब्लड क्लॉटिंग की रिपोर्ट के बाद कई देशों में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन पर अस्थाई रोक

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फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन सहित करीब 13 देशों में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल पर अस्थाई रोक लगाई है. ये सस्पेंशन वैक्सीन लगवाने के बाद कुछ लोगों में ब्लड क्लॉटिंग की रिपोर्ट के बाद लागू किया गया.

दुनिया भर के विशेषज्ञ वैक्सीन की समीक्षा में लगे हैं. वहीं इससे पहले यूके के मेडिसिन रेगुलेटर और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कहा जा चुका है कि वैक्सीन और ब्लड क्लॉट की घटनाओं के बीच लिंक का कोई सबूत नहीं है.

क्या भारत को, जो कोविशील्ड नाम से इसी वैक्सीन का निर्माण कर रहा है, चिंतित होने की जरूरत है? क्या भारत के लोगों को यहां ऐसी ही समस्याओं की फिक्र करनी चाहिए?

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क्या हमें चिंतित होने की जरूरत है?

फोर्टिस हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ प्रमोद कुमार इससे पहले फिट से बातचीत में स्पष्ट करते हैं, “भारत और यूरोप में ब्लड थिनर पर चिंता बहुत अलग है. यहां, भारत में किसी को भी चिंता नहीं करनी चाहिए और अगर वैक्सीन आपके लिए उपलब्ध है, तो वैक्सीन लेनी चाहिए."

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि वे इस विवाद के बीच कोविशील्ड पर रोक नहीं लगाएंगे.

“इस बारे में बहुत कुछ किया गया है और इसका असर भारत में नहीं होना चाहिए.”
शाहिद जमील, वायरोलॉजिस्ट

मंगलवार, 16 मार्च की देर शाम, यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी ने कहा कि वो एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के फायदों को लेकर आश्वस्त है और वैक्सीन के लाभ (कोरोना की रोकथाम, अस्पताल में भर्ती होने और मौत से बचाने) इसके साइड इफेक्ट के जोखिम से ज्यादा हैं.

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लोग वैक्सीन का इस्तेमाल जारी रखें, इस पर जोर दिया जा रहा है और EMA के चीफ एमर कुक ने कहा, "अभी ऐसा कोई संकेत नहीं है कि टीकाकरण इन स्थितियों का कारण बना हो."

यूरोपीय संघ के विशेषज्ञों के मुताबिक वैक्सीन पर रोक जल्दबाजी का फैसला हो सकता है.

द इंटरनेशनल सोसाइटी ऑन थ्रोम्बोसिस और हेमोस्टेसिस ने कहा था, "लाखों लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी जा चुकी है, उसके मुकाबले रिपोर्ट की गई थ्रोम्बोटिक घटनाओं की एक छोटी संख्या दोनों के बीच कोई सीधा लिंक नहीं सुझाती है."

“फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन लगवाने के बाद नॉर्वे में 29 लोगों की मौत हो गई, लेकिन इसे याद नहीं किया गया. हमें पूछना चाहिए कि ऐसा क्यों है. AstraZeneca की वैक्सीन का इस्तेमाल गरीब देशों में किया जाता है और यह पश्चिमी आधिपत्य के मामले जैसा भी लगता है.”
डॉ राहुल भार्गव, डायरेक्टर और हेड, हेमटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट

अशोक यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर और वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील कहते हैं, “रक्त के थक्के सामान्य आबादी में अक्सर होते हैं. हम नहीं जानते हैं कि जिन लोगों में वैक्सीन लगने के बाद ब्लड क्लॉटिंग रिपोर्ट की गई, उन्हें कोई दूसरी स्वास्थ्य समस्या थी या नहीं."

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क्या भारत में ब्लड क्लॉटिंग का कोई मामला सामने आया है?

“मैंने भारत में प्रतिकूल घटनाओं के टास्क फोर्स के प्रमुखों में से एक से बात की और पाया कि, अब तक, भारत में अस्पताल में भर्ती की 234 प्रतिकूल घटनाएं और 71 मौतें दर्ज की गई हैं, लेकिन इनमें से किसी भी मामले में, डीप वेन थ्रम्बोसिस (DVT), जो कि ब्लड क्लॉटिंग है, नहीं देखा गया.”
शाहिद जमील, वायरोलॉजिस्ट

भारत में अधिकांश लोगों को ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका का टीका दिया गया है और ब्लड क्लॉटिंग की रिपोर्ट नहीं आई है, हालांकि एडवर्स इवेंट फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन पर हाल के डेटा नहीं हैं.

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में हेमटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर और हेड डॉ राहुल भार्गव कहते हैं, "यह एक विवादास्पद मुद्दा है क्योंकि डेटा अभी तक जारी नहीं किए गए हैं, लेकिन यहां चिंता करने की आवश्यकता नहीं है."

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डॉ भार्गव बताते हैं कि उनके सहकर्मी, 38 वर्षीय डॉक्टर को वैक्सीनेशन के बाद पेट में थ्रम्बोसिस डेवलप हुआ, लेकिन उसे थ्रोम्बोफिलिया के रिस्क पर पाया गया, जो कि एक ऐसी स्थिति है जिसमें प्राकृतिक रूप से रक्त के थक्के वाले प्रोटीन या क्लॉटिंग फैक्टर में असंतुलन होता है, जिससे किसी को ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क होता है."

डॉ भार्गव समझाते हैं, “अब इस जानकारी की दो तरह से व्याख्या की जा सकती है - यह कि थक्के के जोखिम के साथ एक अंतर्निहित समस्या वैक्सीन द्वारा उपजी थी या सामान्य, स्वस्थ लोगों में थ्रम्बोसिस की आशंका कम होती है. इसके अलावा, जिन लोगों को हृदय संबंधी समस्याएं हैं या डायबिटीज के रोगी हैं, वे पहले से ही एस्पिरिन आदि पर हैं, इसलिए उन्हें थक्के के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए."

वह कहते हैं कि हमें सतर्क रहना चाहिए, लेकिन सस्पेंशन जल्दबाजी हो सकती है. "इसके अलावा, जब भी कोई टीका बाजार में लाया जाता है, तो 1 साल तक किसी भी समस्या की निगरानी के लिए वैक्सीनेशन का फेज 4 चलता है."

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क्या हम वैक्सीनेशन के बाद प्रतिकूल घटनाओं की पारदर्शी तरीके से निगरानी कर रहे हैं?

इस बात की चिंता है कि भारत टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं (AEFI) की कितनी अच्छी तरह निगरानी और जांच कर रहा है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय टीकाकरण पर डेटा जारी कर रहा था, लेकिन 26 फरवरी से इसे बंद कर दिया गया. हालांकि इसके पीछे कुछ तर्क वैक्सीन को लेकर झिझक दूर करने से जुड़े हैं, तो वहीं ये कहा जा रहा है कि पारदर्शिता से विश्वास बनता है.

डॉ भार्गव कहते हैं-

“हमें दोनों वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की निगरानी करनी चाहिए. हमें उन लोगों की एक रजिस्ट्री बनानी चाहिए, जिनमें थ्रोम्बोसिस दिख रहा है और उनके बारे में बाकी डेटा के साथ ये देखना होगा कि वे किस आयु वर्ग में आते हैं.”

फेज 3 ट्रायल 18-55 उम्र के लोगों में किया गया था और 55 से ऊपर के लोगों ने ट्रायल के बाहर वैक्सीन ली है, कोई बड़ी AEFI रिपोर्ट नहीं की गई है.

"1 मार्च से 16 मार्च तक जब 60 की उम्र से ऊपर के लोगों का टीकाकरण शुरू हुआ, तो हमने कोई बड़ा मामला नहीं देखा."

जाहिर तौर पर सावधानी बरतनी जरूरी है.

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"बड़ी समस्या क्या है? COVID या वैक्सीन?"

डॉ भार्गव कहते हैं, "हमें लगता है कि COVID है. इसलिए टीकाकरण जरूरी है, हालांकि हमें किसी भी AEFI पर कड़ी नजर रखनी होगी."

“हमें उस फायदे के बारे में सोचने की जरूरत है जो लोगों को मिलेगा विशेष रूप से भारत में केस में दिख रही बढ़त को लेकर. किसी भी कथित जोखिम से फायदा कहीं ज्यादा है. हमारे सामने अब बढ़ते हुए मामले हैं, इसलिए इस जाल में नहीं फंसना चाहिए.”
शाहिद जमील, वायरोलॉजिस्ट

फिर भी, इस तरह के सस्पेंशन से वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट बढ़ती है और इससे भारत में केसों की संख्या प्रभावित हो सकती है.

ऐसी अटकलें हैं कि एस्ट्राजेनेका की आपूर्ति, ब्रेग्जिट और यूरोपीय संघ के मामलों में बढ़त- इन सब को मिलाकर खड़ा हुआ बवाल वैज्ञानिक से ज्यादा राजनीतिक मामला है.

डॉ जमील कहते हैं, ''लेकिन जब तक आगे का डेटा नहीं मिल जाता, वैक्सीन के रोलआउट को रोकना एक बड़ा जोखिम है."

“हमें लगातार मामलों और AEFI की निगरानी करनी चाहिए और जागरूक होना चाहिए, लेकिन जरूरत से ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए.”
शाहिद जमील, वायरोलॉजिस्ट

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