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पूरे देश को शानदार कॉफी पर बुलाने वाला शख्स बहुत अकेला, उदास था

‘बहुत बार जो लोग लीड कर रहे होते हैं, वो खुद को ज्यादा अकेला पाते हैं.’

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"मैं एक उद्यमी के तौर पर असफल हो गया."

"मुझ पर भरोसा करने वाले सभी लोगों से माफी चाहता हूं."

"सभी गलतियों के लिए अकेले मैं जिम्मेदार हूं"

कैफे कॉफी डे के फाउंडर वीजी सिद्धार्थ का आखिरी खत हिला देने वाला है. एक इंसान, जिसके पास काफी कुछ था, ये खत उसकी इमोशनल स्टेट को जाहिर करता है.

‘बहुत बार जो लोग लीड कर रहे होते हैं, वो खुद को ज्यादा अकेला पाते हैं.’
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ये जानकर दुःख होता है कि कैफे कॉफी डे की स्थापना करने वाला शख्स, जिसने नए उदार भारत को अपनी कॉफी का स्वाद चखाया, जिसने हममें से ज्यादातर लोगों को 'अ लॉट कैन हैप्पन ओवर कॉफी...' का एहसास कराया, उस शख्स ने अपनी आर्थिक दिक्कतें दोस्तों और परिवार से शेयर करने की बजाए दुनिया को अलविदा कहने का फैसला कर लिया.

जिस शख्स को कॉर्पोरेट इंडिया हंसमुख, पॉजिटिव कहता, जिसके चेहरे पर एक मुस्कान हमेशा रहती थी, वो अपने अंदर काफी कुछ छिपा रहा था.

जो लोग अपनी जिंदगी में बहुत अच्छा कर रहे होते हैं, उनके बारे लोग ये नहीं सोच पाते कि वो कुछ और दिक्कतों से भी जूझ सकते हैं, जिसमें 'अकेलापन' भी आता है, खासकर कामयाबी के शिखर पर अकेले होने का एहसास.

फोर्टिस हेल्थकेयर में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बीहैव्यरल साइंस के डायरेक्टर डॉ समीर पारिख मानते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये लोग दोस्त या परिवार या फिर प्रोफेशनल मदद लेने में पीछे रह जाते हैं और ऐसी उम्मीद की जाती है कि वो अपनी प्रॉब्लम्स से खुद निपटने में पूरी तरह से सक्षम हैं.

बहुत बार जो लोग लीड कर रहे होते हैं या जो सीढ़ी पर सबसे ऊंचे खड़े होते हैं, वो खुद को ज्यादा अकेला पाते हैं.
डॉ पारिख
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भले ही एक अच्छा लीडर नाकामयाबी की जिम्मेदारी खुद पर लेता है, लेकिन जिम्मेदारी लेने और आत्म-ग्लानि में रहने के बीच एक लाइन कैसे खींची जा सकती है. वीजी सिद्धार्थ के मामले में आत्म-ग्लानि ज्यादा थी. हालांकि आनंद महिंद्रा ने सही कहा, एक उद्यमी के लिए जरूरी है कि बिजनेस में मिली असफलता उसके आत्म-सम्मान को न हिला सके.

वीजी सिद्धार्थ ने अपने आखिरी खत में लिखा कि एक उद्यमी के तौर पर वो हार गए और वो किसी को कभी भी धोखा या तकलीफ नहीं देना चाहते थे. उन्होंने माफी भी मांगी.

नाकामयाबी हर इंसान को ठेस पहुंचाती है. चाहे बिजनेस में मिली असफलता हो या रिलेशनशिप या खुद से की गई कोई उम्मीद पूरी न कर पाना हो. लेकिन दुर्भाग्य से इस तरह की भावनाओं का नतीजा भयानक हो सकता है और कोई भी इससे बच नहीं सकता. न तो फसल बर्बाद होने से आत्महत्या करने वाला विदर्भ का किसान और न ही कोई शख्स जिसने अपना काफी कुछ खो दिया हो.

समस्याएं जाति, जेंडर, सामाजिक-आर्थिक हालात नहीं देखतीं. हर बार जब हम जिंदगी में कुछ बेहतर कर रहे शख्स के बारे में ऐसा कुछ सुनते हैं: चाहे कोई हॉलीवुड सेलेब्रेटी हो, उद्यमी या बिजनेस मैन, हम उन मामलों को अलग मान लेते हैं क्योंकि हमें लगता है कि पोजिशन, पैसा या क्षमता उन प्रॉब्लम्स से रक्षा कर सकती हैं, जिसका कोई भी इंसान सामना कर सकता है. 
डॉ पारिख
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वीजी सिद्धार्थ के शब्द

"मैं काफी लंबे वक्त तक लड़ा लेकिन आज मैंने हार मान ली क्योंकि मैं और दबाव नहीं झेल सकता."

अपने में घुटती निराशा और चीजों को खुद तक रखने की इच्छा, आखिरकार संभाल लिए जाने के मुकाबले बहुत ज्यादा साबित हुई.

मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 अब कंपनियों को मेंटल बैलेंस शीट्स पर भी ध्यान देने को कहता है.

डॉ पारिख के मुताबिक कोई ऑर्गनाइजेशन कितना बेहतर कर रहा है, ये तय करने के लिए मेंटल हेल्थ आउटकम्स की अहमियत को पहचाने जाने का वक्त आ गया है. खासकर हाई प्रेशर वाले जॉब्स में जब वर्क-लाइफ बैलेंस बिगड़ चुका है. 

सीसीडी के मालिक का खत सामने आ चुका है. वो अब दुनिया में नहीं रहे. कॉर्पोरेट की दुनिया को मेंटल हेल्थ क्राइसिस पर गौर करना होगा, जो ऑफिसों में बढ़ती जा रही है.

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