(अल्जाइमर डिमेंशिया का सबसे आम रूप है, जो बीमारियों का एक समूह है, जिसमें मानसिक सक्रियता कम हो जाती है.)
अंजुम गुप्ता (बदला हुआ नाम) मुंबई में अपनी बेटी के मरीन लाइंस हाउस ड्राइव करके जाने के लिए गुस्से से कार की चाबी की मांगती हैं. उनके पति प्रकाश गुप्ता इस चीख-पुकार से विचलित हुए बिना सबकुछ चुपचाप सुनते हैं.
अंजुम 70 साल की हैं. उनकी बेटी करीब 15 साल पहले अमेरिका जाकर बस चुकी है. 2003 में पता चला कि अंजुम को अल्जाइमर है.
अल्जाइमर या ऐसी अन्य बीमारियों में जैसे-जैसे देखभाल करने वालों की संवेदना कम होती है, बीमारी बढ़ती जाती है.
“अब बहस करने या उसकी बातों पर हंसने का क्या मतलब है? मैंने उसकी तर्कहीन और बेतुकी मांगों के लिए सब कुछ किया. लेकिन उसकी बीमारी बहुत बढ़ चुकी है. मैं उससे प्यार करता हूं, लेकिन ज्यादातर दिनों में वह मुझे पहचानती ही नहीं है. मैंने उसे अपनी आंखों के सामने खोते देखा है.”
-प्रकाश गुप्ता, 74 वर्षीय, अपनी पत्नी की देखभाल करने वाले

अल्जाइमर्स डिजीज इंटरनेशनल में प्रकाशित शोध से पता चला है कि प्रकाश गुप्ता जैसे हालात का सामना करने वाले बहुत से लोग हैं. अल्जाइमर रोगियों में लगभग दो-तिहाई महिलाएं हैं. आखिर यह बीमारी हमारे घर के पुरुषों के मुकाबले हमारी माताओं और बहनों को ही सबसे ज्यादा प्रभावित क्यों करती है?
कौन सी चीज महिलाओं को अल्जाइमर का आसान शिकार बनाती है?

अल्जाइमर का संकट महिलाओं पर ज्यादा है.
इसका एक कारण उम्र है. पुरुषों की औसत आयु यानी 76 साल की तुलना में महिलाओं की औसत आयु 81 साल है. इसलिए पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक महिलाएं बुजुर्ग हैं और इसीलिए उन्हें अल्जाइमर का खतरा भी है.
लेकिन फिर भी असल वजह इससे कहीं अधिक जटिल है. वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या उम्र, लिंग और दिमाग की संरचना में भिन्नता का इससे कोई संबंध है. क्या मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन की कमी ब्रेन मेटाबॉलिज्म में कमी का कारण बन सकती है और क्या इस वजह से संज्ञानात्मक क्षमताएं प्रभावित होती हैं?
हर चार सेकंड में एक व्यक्ति अल्जाइमर का शिकार होता है, लेकिन इस बीमारी के बारे में अभी भी बहुत कम जानकारी है.
शोध बताते हैं कि यह बीमारी महिलाओं को ना सिर्फ असमान रूप से प्रभावित करती है, बल्कि महिलाओं पर इसका काफी गंभीर प्रभाव पड़ता है:
- डिमेंशिया या अल्जाइमर के लक्षण महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक गंभीर हैं.
- महिलाएं न केवल बीमारी से लंबे समय तक पीड़ित रहती हैं, बल्कि अल्जाइमर या डिमेंशिया से पीड़ित अन्य लोगों की देखभाल करने वालों के तौर पर इसका प्रभाव भी सहन करती हैं.
अल्जाइमर पर अधिक शोध की आवश्यकता है

अध्ययन की एक परेशान करने वाली बात यह है कि अल्जाइमर का जीन पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर गहरा प्रभाव डालता है. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ApoE-4 नाम के जीन, जो अल्जाइमर के जोखिम में वृद्धि के साथ जुड़ा था, को लेकर 8,000 से अधिक लोगों पर अध्ययन किया.
जो महिलाएं उस जीन की कॉपी पिछली जेनरेशन से लेकर आई थीं, उन्हें बिना उस जीन वाली महिलाओं की तुलना में अल्जाइमर होने की संभावना दोगुनी थी, जबकि पुरुषों का जोखिम सिर्फ थोड़ा ही अधिक था.
यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों है. मुमकिन है कि ये जीन एस्ट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया करता हो और परिणामस्वरूप अल्जाइमर होता हो, लेकिन इसे साबित करने के लिए वर्षों के अध्ययन की जरूरत होगी.
अब हम जानते हैं कि अल्जाइमर के क्लीनिकल लक्षणों के प्रकट होने से लगभग दो दशक पहले मस्तिष्क में परिवर्तन शुरू हो जाता है. लगभग 40 साल पहले, दिल की बीमारी मुख्य रूप से पुरुषों की बीमारी मानी जाती थी, तब इस बात की समझ नहीं थी कि महिलाओं को हार्ट का जोखिम किस तरह अलग है. इस बिंदु पर, हम पक्के तौर नहीं कह सकते कि अल्जाइमर की बात करते समय भी हम वही गलती तो नहीं कर रहे हैं.
जब तक अल्जाइमर के शोध में विज्ञान इन खाली जगहों को भरता है, गुप्ता जैसे लाखों परिवार, उस जिंदगी के गड़बड़झाले को साफ करने में जुटे रहेंगे, जो कहीं खो गई है.
(यह लेख fit.thequint.com पर पहली बार 29 जून, 2015 को प्रकाशित हुआ था. इसे विश्व अल्जाइमर दिवस के लिए The Quint के आर्काइव से दोबारा पोस्ट किया जा रहा है.)
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