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Suicide Prevention: डिजिटल युग में आत्महत्या की रोकथाम के लिए टैक्‍नोलॉजी का उपयोग

हर साल 10 सितंबर को हम आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाने की तो बात करते हैं लेकिन आत्महत्या जागरूकता दिवस का जिक्र नहीं होता.

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Suicide Prevention Day: दुनिया में हर साल 703,000 लोग आत्महत्या करते हैं. हर 40 सेकंड पर, कोई न कोई परिवार अपने किसी प्रियजन को आत्महत्या के चलते खो देता है. सच तो यह है कि 15-29 वर्ष की आयुवर्ग के बीच आत्महत्या आज मृत्‍यु का चौथा सबसे प्रमुख कारण बन चुका है.

हर साल 10 सितंबर को हम आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाने की तो बात करते हैं लेकिन आत्महत्या जागरूकता दिवस का जिक्र नहीं होता. दरअसल, ऐसा होना चाहिए क्योंकि आत्महत्या की रोकथाम पूरी तरह से संभव है और इसमें हम सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है.

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पहले के मुकाबले कहीं ज्‍यादा अलगाव में जी रहे हैं

जब हम आत्महत्या की बात करते हैं, तो अक्सर सबसे पहले इसके कारण पर ध्यान जाता है और वो है तनाव, संताप, मानसिक पीड़ा जिसके कारण लोग इस तरह का कदम उठाने को मजबूर होते हैं. लेकिन ऐसे में आमतौर पर इस बात की अनदेखी हो जाती है कि आत्महत्या की वजह से मौत की नींद सोने वाले ज्‍यादातर लोग किसी न किसी ऐसे मानसिक विकार से ग्रस्त होते हैं, जिसकी या तो पहचान ही नहीं हुई होती या उपचार नहीं किया जाता. इसका परिणाम यह होता है कि मानसिक संताप से गुजर रहे लोग चुप्पी साधकर अपनी तकलीफ से अकेले ही जूझते रहते हैं.

कई बार यह भी होता है कि दूसरे लोग क्या कहेंगे जैसी बातों का डर और बहुत बार मेंटल हेल्थ सेवाओं तक पहुंच नहीं होने की वजह से भी उन्हें सही समय पर सहायता नहीं मिल पाती.

हालांकि, एक समाज के तौर पर हम पहले से कहीं ज्‍यादा ''कनेक्‍टेड'' हैं लेकिन सच्चाई यह है कि हम ज़्यादा अकेले पड़ चुके हैं, पहले के मुकाबले कहीं ज्‍यादा अलगाव में जीने को कर्स्ड (cursed) हैं. मानसिक हेल्थ और आत्‍महत्‍याओं को रोकने का जहां तक सवाल है, सामाजिक स्‍तर पर सहयोग/सपोर्ट आज भी सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. अब समय आ गया है कि हम आज के डिजिटल युग में आसानी से उपलब्‍ध होने वाली टैक्‍नोलॉजी की ताकत का उपयोग कर उन लोगों तक पहुंचें/संपर्क करें जिन्‍हें सहायता की जरूरत है.

टेली-मेंटल हेल्थ आसान और सहज समाधान

पिछले कुछ वर्षों मे, टेली-मेंटल हेल्थ सबसे सुगम और सहज समाधान के रूप में उभरा है, जिसने मानसिक हेल्थ के क्षेत्र में मौजूदा कमियों को काफी हद तक कम करने में अहम् भूमिका निभायी है. अब आप घंटों लंबे सफर करने की मजबूरी से मुक्त, देशभर में कहीं भी बैठे हुए एक बटन क्लिक कर ही काउंसलर्स और साइकेटरिस्‍ट्स से जुड़ सकते हैं और अपने मेंटल हेल्थ संबंधी सरोकारों के समाधान प्राप्त कर सकते हैं.

साथ ही, इस प्रकार के डिजिटल कनेक्‍ट समाधानों का एक लाभ यह होता है कि इलाज का खर्च कम हो जाता है जिससे यह अधिकांश लोगों के लिए किफायती साबित होता है.

जहां तक आत्महत्याओं की रोकथाम का सवाल है, इसमें हेल्पलाइन्‍स की सुविधा भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इन हेल्पलाइन्‍स पर प्रशिक्षण प्राप्त प्रोफेशनल्‍स उपलब्ध हैं, जो समय पर सपोर्ट देकर किसी संकट के दौरान हस्तक्षेप कर सकते हैं. ये लोगों को जुड़ाव और उम्मीद महसूस करवाते हैं, जो उन्हें संकट की स्थिति में किसी के साथ होने के अहसास कराता है. यही उस घड़ी में जरूरी भी होता है जब आत्महत्या के लिए मन बना चुका व्यक्ति खुद को अलग-थलग और असहाय महसूस कर रहा होता है.

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हर पल महत्वपूर्ण है, हर जिंदगी बेशकीमती है

आज के डिजिटल दौर में, हमें आत्‍महत्‍या रोकथाम में मीडिया के प्रभाव के बारे में भी विचार करना चाहिए. मेंटल हेल्थ संबंधी संवेदनशील रिपोर्टिंग और इन तकलीफों के बारे में गंभीरता से लिखना/बताना मौजूदा वक्त का तकाजा है. जब मीडिया इस प्रकार के मुद्दे उठाता है, उनके समाधानों की ओर लोगों का ध्यान दिलाता है, हेल्पलाइन्‍स संबंधी जानकारी देता है तब साथ ही साथ वह यह भी बताता है कि मानसिक स्तर पर इस जद्दोजहद से गुजर रहे इंसान को वक़्त रहते जरूरी सहायता लेने से संकोच नहीं करना चाहिए.

प्रोफेशनल सहायता एक तरफ है और उसका अपना महत्व है, लेकिन पूरे समुदाय के स्तर पर भी जागरूकता होना जरूरी है.

स्कूलों, कॉलेजों और संगठनों को भी मेंटल हेल्थ से जुड़े विषयों पर खुलकर बातचीत और चर्चाओं को बढ़ावा देने और इन मुद्दों को गोपनीय बनाकर रखने की बजाय सहजता से इन पर विचारों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन देना चाहिए.

आजकल हम सभी किसी भी जानकारी के लिए ऑनलाइन प्‍लेटफार्मों का रुख करते हैं, वहीं अपनी समस्याओं के समाधानों के तार तलाशने की कोशिश करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण यह कि जुड़ाव महसूस करने के लिए वहीं किसी अपने से लगने वाले, सहज, आरामदायक ‘स्‍पेस’ की भी तलाश करते हैं, इसलिए जवाब भी यहीं होने चाहिए.

डिजिटल माध्यमों को केवल स्‍क्रॉल करने और समय बिताने का जरिया समझने, बिना पढ़े मैसेजों को लाइक / फॉरवर्ड करने की बजाय, ऑनलाइन दुनिया की ताकत का इस्तेमाल करते हुए इसे आपस में कनेक्‍ट होने के साधन के रूप में इस्तेमाल करें. लोगों को सिर्फ टेक्स्ट न करें, कॉल करें और उनका हलचल पूछें. उनसे पूछें कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं. अपने विचारों और अपने मन में उठने वाले अहसासों, भावों को उनके साथ साझा करें.

और याद रखें कि हर पल महत्वपूर्ण होता है, हर जिंदगी बेशकीमती है, आप भी बहुमूल्‍य हैं. और आप अकेले नहीं हैं। समय है कि हम कनेक्‍शन के अपने जाल को कुछ और मजबूत बनाएं और उस वक्‍त एक-दूसरे के लिए मजबूत दीवार बनकर खड़े हों जब ऐसा करने की सचमुच जरूरत पड़े.

(सुसाइड प्रिवेंशन डे पर ये आर्टिकल फोर्टिस हेल्थकेयर साइक्‍लॉजिकल सर्विसेज में काउंसलिंग साइकोलॉजिस्‍ट और हेड दिव्‍या जैन ने फिट हिंदी के लिए लिखा है.)

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