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राजस्थान में जीका के 135 मामले, लोगों को किया जा रहा जागरूक

जीका वायरस से बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

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राजस्थान में जीका वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 135 पहुंच गई है. इसमें कई गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं.

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) को रोजाना आधार पर मामलों की निगरानी करने को कहा है, साथ ही लोगों को न घबराने की सलाह दी है.

राजधानी में जीका वायरस संक्रमण के ज्यादातर मामले शास्त्रीनगर इलाके में सामने आए हैं, जहां फॉगिंग व अन्य एहतियाती उपाय किए जा रहे हैं.

अधिकारियों के मुताबिक 330 टीमें प्रभावित इलाकों में एक-एक घर का दौरा कर रही हैं. अब तक करीब 96 हजार से ज्यादा घरों का सर्वे किया जा चुका है. 14 अक्टूबर से ऐसे मकानमालिकों के खिलाफ चालान जारी किया जा रहा है, जिनके घर पर इस वायरस को फैलाने वाले मच्छरों का लार्वा पाया जा रहा है.

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राजस्थान स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि लगभग सभी मरीज इलाज के बाद स्वस्थ हो गए हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक हालात पर नजर रखी जा रही है. इसके लिए नेशनल सेंट्रर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) में एक कंट्रोल रूम एक्टिव है. 05 अक्टूबर, 2018 से हाई लेवल की सेंट्रल टीम बीमारी नियंत्रण और निगरानी के लिए जयपुर में है.

स्वास्थ्य विभाग ने शास्त्री नगर इलाके के बाहर रह रही गर्भवती महिलाओं के लिए परामर्श जारी कर कहा है कि वे प्रभावित इलाके में नहीं जाएं.

जयपुर में निगरानी टीमों की संख्या 50 से बढ़ाकर 170 कर दी गई है और हीरा बाग इलाज केंद्र में एक विशेष वॉर्ड बनाया गया है, जहां जीका वायरस से प्रभावित मरीजों को अलग रखकर इलाज किया जा सके.

सावधानी के तौर पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसी सभी गर्भवती महिलाओं के लिए अनिवार्य रूप से जीका वायरस का टेस्ट कराने का निर्देश पहले ही जारी कर दिया था, जिन्हें बुखार हो.

शास्त्री नगर में स्वास्थ्य अधिकारियों ने 318 गर्भवती महिलाओं की पहचान की है. गर्भवती महिलाओं में जीका वायरस संक्रमण के कारण दिमागी विकृतियों वाले बच्चे पैदा होने का खतरा होता है. इस समस्या को 'माइक्रोसिफेली' कहा जाता है.

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सितंबर के अंतिम हफ्ते में जीका का पहला मामला जयपुर की एक बुजुर्ग महिला में सामने आया, जिनकी उम्र करीब 85 साल थी.

इस महिला को जोड़ों में दर्द, आंखों में लाली और कमजोरी की शिकायत पर 11 सितंबर को सवाई मान सिंह हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. लेकिन डेंगू और स्वाइन फ्लू की जांच कराने पर रिपोर्ट निगेटिव आई थी.

फिर जीका वायरस टेस्ट के लिए जांच सैंपल पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी भेजा गया था, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई. तब से अब तक जीका के 120 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं.

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जानिए जीका वायरस और इसके संक्रमण से जुड़ी जरूरी बातें

1. कोई जीका वायरस से कैसे संक्रमित होता है?

यह मुख्य रूप से एडीज प्रजातियों के संक्रमित मच्छर के काटने से होता है. ये वही प्रजाति है, जिसके काटने से डेंगू होता है.

2. ये वायरस कितने समय तक शरीर में रह सकता है?

संक्रमित होने पर जीका वायरस आमतौर पर एक हफ्ते के लिए एक संक्रमित व्यक्ति के खून में रहता है.

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3. जीका के लक्षण क्या हैं?

याद रखें कि ये कोई जानलेवा बीमारी नहीं है. आमतौर पर 5 संक्रमित लोगों में से 1 में इसके लक्षण दिखते हैं. आम लक्षणों में बुखार, चकत्ते, जोड़ों में दर्द या आंखों का लाल होना शामिल है.

आमतौर पर संक्रमित मच्छर के काटने के 2 से 7 दिन बाद इसके लक्षण दिखने शुरू होते हैं. ज्यादातर लोगों को इंफेक्शन के बाद भी भर्ती होने की जरूरत नहीं होती और इस वायरस के कारण मौत होने की आशंका न के बराबर है.

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4. फिर जीका को लेकर डर क्यों?

जीका दशकों से है. लेकिन दक्षिण और मध्य अमेरिका में पैदा होने वाले ऐसे नवजातों की संख्या बढ़ी है, जिनकी खोपड़ी छोटी होती है, इस कंडिशन को 'माइक्रोसिफेली' कहा जाता है. ऐसी आशंका जताई गई है कि जीका वायरस से संक्रमित गर्भवती महिलाएं असामान्य रूप से छोटे सिर वाले बच्चों को जन्म दे रही हैं, जिससे दुनियाभर में जीका को लेकर डर के हालत बन गए हैं.

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5. इस वायरस से बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

अगर आप ऐसे देश में ट्रैवल कर रहे हैं, जहां जीका के केस देखे गए हैं, तो मच्छरों से बचें. फिलहाल इसके लिए कोई वैक्सीन नहीं है, इसलिए जब तक ये विकसित न हो जाए, तब तक इलाज से ज्यादा बचाव ही सबसे बेहतर उपाय है.

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जीका का इलाज क्‍या है?

इस वायरस को लेकर कोई विशेष इलाज नहीं है. डॉक्टर आराम की सलाह देते हैं. खुद को हाइड्रेटेड रखें, बुखार और दर्द को कम करने के लिए पैरासिटामॉल जैसी दवाइयों की मदद ली जा सकती है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में पहली बार यह बीमारी जनवरी/फरवरी, 2017 में अहमदाबाद में फैली और दूसरी बार 2017 में यह बीमारी तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में पाई गई. दोनों ही मामलों में सघन निगरानी और मच्छर प्रबंधन के जरिए सफलतापूर्वक काबू पा लिया गया था.

यह बीमारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निगरानी रडार पर है. हालांकि 18 नवबंर, 2016 से विश्व स्वास्थ्य संगठन की अधिसूचना के अनुसार यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंता की स्थिति नहीं है.

हालात पर नियमित रूप से निगरानी रखी जा रही है.

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(इनपुट- पीटीआई, आईएएनएस)

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