हाल के दिनों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) विवादों की वजह से चर्चा में रहा है. यूनिवर्सिटी छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का आरोप लगने के बाद देशभर में इस पर बहस छिड़ी. लेकिन इस बार एक दूसरे कारण से यह यूनिवर्सिटी सुर्खियों में है.
दरअसल, जेएनयू के एक रिसर्च स्कॉलर बिहार में मुखिया का चुनाव जीत गए हैं. बिहार के कैमूर जिले के अमृत आनंद शहरी जीवन छोड़कर नई भूमिका के साथ अपने गांव की तकदीर संवारने पहुंच गए हैं.
जेएनयू में जर्मन साहित्य पर शोध कर रहे 30 वर्षीय अमृत अक्सर अपने गांव खजूरा आते रहते थे. इस दौरान गांव के रहन-सहन और यहां की समस्या को देखकर उन्हें दुख होता था. वे गांव की समस्या को दूर करने की सोचते थे. इसी दौरान बिहार ग्राम पंचायत चुनाव की घोषणा हुई और वे मुखिया के प्रत्याशी बन गए और आज मुखिया भी बन गए हैं.
लोगों ने ‘दिल्ली वाले बाबू’ कहकर उड़ाया मजाक
अमृत ने कहा कि जब वे अपने गांव वापस आए और चुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया, तो उनके गांव के दोस्त उन पर हंस रहे थे. दोस्तों ने उनसे पूछा था कि आखिर दिल्ली छोड़कर गांव वापस आने की क्या जरूरत थी? चुनाव प्रचार के दौरान लोगों ने ‘दिल्ली वाले बाबू’ कह कर उनका मजाक भी उड़ाया और यहां तक कहा, ‘जैसे आया है वैसे ही चला भी जाएगा.’
इन सभी आलोचनाओं के बीच वे चुनाव मैदान में डटे रहे. अमृत ने चुनाव जीत कर सभी आलोचकों का मुंह बंद कर दिया. उनके पंचायत में कुल 17 गांव आते हैं.
अपनी इस जीत पर अमृत ने कहा कि अब पंचायत छोड़कर दिल्ली वापस जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. हालांकि उन्होंने कहा कि वह अपना शोध कार्य जरूर पूरा करेंगे. अमृत ने कहा,
मेरे घर में पढ़ने-लिखने का माहौल पहले से है. मेरा छोटा भाई अंकित आनंद अमेरिका में शोध कर रहा है. मैं भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर चुका हूं. पर शुरू से ही मेरे मन में अपनी जन्मभूमि के लिए कुछ करने की ललक है.
खेती करते हैं अमृत के पिता
अमृत के पिता आनंद कुमार सिंह 15 बीघे जमीन पर खेती करते हैं. अमृत बताते हैं कि उनके पिता किसान जरूर हैं, लेकिन बच्चों को पढ़ाई के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराते रहे हैं.
पंचायत चुनाव में उतरने के फैसले के बारे में अमृत बताते हैं कि जब भी वह गांव आते थे, तो उन्हें लगता था कि गांव की कई ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें गांव का मुखिया अगर चाहे, तो दूर कर सकता है और गांव को कहीं ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है.
गांव की तरक्की के लिए कई योजनाएं
भविष्य की योजनाओं के विषय में अमृत बताते हैं कि उनकी प्राथमिकता गांव के लोगों को प्रखंड और जिला कार्यालयों में बिचैलियों से मुक्ति दिलाना, गांव को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना और वैज्ञानिक पद्धतियों से खेती को बढ़ावा देना है. वे कहते हैं, “गांव में सामूहिक शौचालय बनाने की उनकी योजना है. निजी शौचालय के लिए सरकार भी मदद करती है, परंतु वे गांव में सामूहिक शौचालय बनाने का प्रयास करेंगे.”
अमृत बताते हैं कि देश में संघीय ढांचे को समझने के लिए पंचायत चुनाव से अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता है. गौरतलब है कि बिहार में 8000 से ज्यादा ग्राम पंचायत हैं और सभी जिलों में अभी मतगणना का काम जारी है.
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