देश के कम उम्र के बच्चों के हित में सरकार ने एक बढ़िया फैसला किया है. चैनल वालों से सख्ती से कह दिया गया है कि वे कंडोम के विज्ञापन सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे के बीच न दिखाएं. इस फैसले के क्या-क्या साइड इफेक्ट हो सकते हैं, आगे इन्हीं बातों पर चर्चा की गई है. जरा दिल थाम के पढ़िएगा. पब्लिक हो या सरकार, इसमें हर किसी के हित के लिए बहुत-कुछ है.
कंडोम बनाने वाली कंपनियां क्या करें?
इन कंपनियों ने भी खूब अंधेरगर्दी मचा रखी है. कंडोम के विज्ञापन में वैसी बातों का जिक्र ही क्यों किया जाता है, जिससे बच्चों का ध्यान उधर चला जाए. एपल, पाइनएपल, स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी फ्लेवर का नाम लेंगे, तो किसी के दिमाग में पहले-पहले आइसक्रीम की ही इमेज उभरेगी. फ्लेवर जो है, सो है. टीवी पर शोर मचाकर बताया है, तो अब भुगतो.
डॉट और डॉटेड की चर्चा खुलेआम करने की क्या जरूरत थी? पढ़ाकू टाइप बच्चे स्कूल में क्या ज्योमेट्री से कम परेशान रहते हैं?
अब ये देखते हैं कि इस फैसले के बारे में जानकर किशोर क्या सोचेंगे. उनके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा.
कुछ सुबह उठकर पढ़ेंगे, कुछ देर रात तक जागकर
कंडोम का विज्ञापन अब तक तो टीवी पर जब-तब, खूब धड़ल्ले से आता रहा है. लेकिन जब इस पर सीमित पाबंदी लगेगी, तो शातिर बच्चे इसका तोड़ निकालेंगे. कुछ तो स्कूल जाने के टाइम से काफी पहले जग जाएंगे. ड्रॉइंग रूम में जाकर, टीवी म्यूट कर पढ़ाई शुरू कर देंगे.
जिन्हें सुबह 6 बजे से पहले उठने में परेशानी होगी, वो देर रात तक जागकर पढ़ाई कर लेंगे.
मेरा एक मित्र अपने स्कूल के टाइम में देर रात तक जागकर पढ़ाई करने का आदी था. तब नेट का जमाना नहीं था. तब दूरदर्शन पर सप्ताह में दो दिन, देर रात इंग्लिश मूवी आती थी. टाइम मैनेजमेंट के दम पर उसका मैथ्स ठोस हो गया. आज बड़ी कंपनी में मैनेजर है.
नैतिकता के लिए सरकार क्या करे?
अल्प वयस्क बच्चों के दिमाग पर किसी गलत चीज का बुरा असर न पड़े, इसके लिए सरकार हमेशा से कुछ न कुछ करती रही है. हां, ये जरूर है कि कुछ करने की सामर्थ्य भी तो होनी चाहिए.
अदालत ने कहा कि पॉर्न साइटों पर बैन लगाइए, तो सरकार ने साफ कह दिया कि ये उसके बस की बात नहीं है. तकनीकी दिक्कत है. इंटरनेट को बांधना उसके वश में नहीं है. इंटरनेट के जरिए सोशल साइट पर बेतुकी बातें करने वालों को वह भले ही बांध सकती है. इससे ज्यादा कुछ न होगा उससे.
पर इस बार सरकार ने थोड़ी उल्टी राह पकड़ी है. अच्छा तो ये होता कि सरकार सीधे पॉर्न साइटों पर जाकर ये विज्ञापन दे देती कि 16 या 18 साल से कम के बच्चे टीवी पर कंडोम का विज्ञापन न देखें, इससे उनके बिगड़ने का खतरा है. जो समझदार होते, खुद ही टीवी पर गंदा एड नहीं देखते.
चुपके से बोलो 'कंडोम'
अब पूरी दुनिया HIV और एड्स के खतरे को लेकर जागरूक हो रही है. ज्यादातर लोग इस बात को समझ चुके हैं कि जानकारी ही बचाव है. शुरू-शुरू में सरकार ने भी टीवी पर एड निकाला, 'बिंदास बोल कंडोम'.
अब शायद थिंक टैंक वालों को ये लग रहा होगा कि सारी पब्लिक समझदार हो चुकी है. अब किसी को कुछ जानकारी देने की जरूरत नहीं है. दुनिया में नैतिकता से बड़ी कोई चीज नहीं होती है.
कई विकसित देशों में छोटे-छोटे बच्चों को ग्रुप में अस्पताल ले जाकर ये दिखाया जाता है कि एक मां किस तरह प्रसव के बाद शिशु को जन्म देती है. पर कोई बात नहीं. दुनिया जाए जहन्नुम में. हम अपने बच्चों को बिगड़ने नहीं दे सकते. हम तो यही कहेंगे कि बच्चे भगवान के घर से आते हैं या ज्यादा से ज्यादा ये कहेंगे कि वे अस्पताल से आते हैं.
तो अब बिंदास होकर नहीं, चुपके से बोलो कंडोम.
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