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ऋतिक जी, काश सुपर-30 के कोचिंग में जरा टाइम बिताते

ऋतिक की ये फिल्म सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार के जीवन पर आधारित है.

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सुपर-30 के ट्रेलर में ऋतिक रोशन जी बिहारी एक्सेंट का एकदमे मजाक उड़ा दिए हैं. कित्ता नकली लगता है. सुनकर तो मेरे जैसे बिहारी का माथा चकरा गया. ऐतना बड़ा स्टार. एकदमें से कैसे मूड ऑफ कर दिया. वो भी डैलोग डीलिवरी के मामले में.

थोड़ा सा भी रिसर्च किए होते तो आपको पता चल जाता कि बिहारी ट्रेडिशन में तुम कमे यूज होता है ना, स्ट्रेंजर के साथ त बिल्कुले नहीं. इ सब जरा अटपटा लग रहा होगा न आपको. यही तो बात है. बिहारी ट्रेडिशन को बुझे बिना बिहारीपन कैसे लाइएगा.

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आपका पहला डैलोग है- का बनना चाहते हो. सही बिहारी टच देने के लिए कुछ इनोवेशन कर लेते तो फिर भी चल जाता. अगर आपने कहा होता- का बनना चाहते हैं जी.

इ आपको कौन सिखाएगा कि बिहार में जी लगाने का बहुते चलन है. खाना जी, पानी जी से लेकर फलां जी तक..सब चलता है. उस तरह का टोन तो एकदमे नहीं निकाल पाए आप. एक ठो चीज आप सही पकड़े हैं- ग्रेट बिहारी ट्रेडिशन में मैं कुछो नहीं होता है.

देसो (श-स के चक्कर में कौन पड़े. सो सब स ही होता है) हम, परिवारों हम और मैं भी हमें होता है. इस मामले में फूल नंबर आपको मिल जाएगा. लेकिन कौन ऐसे सपाटा बोलता है- प्रतिभा दिए, साधन नहीं दिए. एकदम नकली तरीके से बोल दिए आप.

लेकिन कई दूसरे मामलों में हम तो आपको जीरोए देंगे. रिसर्चों कुछ चीज होता है ना. उपर से यूट्यूब भैया (आपको बता देते हैं. हमारे इलाके में या तो भैय्या होता है या भाभी. मम्मा-मामी, चाचा-चाची, दीदी-भौजाए..किसी ना किसी केटेगरी में सबको फिट करना पड़ता है ना. इसलिए यूट्यूब भैया) एतना (आनंद जी भी एतना ही बोलते हैं, इतना नहीं. गौर किए हैं का) आसानी से आपको उपलब्ध था.

दू-चार भीडियो आनंद कुमार का अपने छात्रों के साथ वार्तालाप बाला ही सुन लेते. आपको यूनिकनेस का पता चल जाता. ट्रक का कैसे उच्चारण कीजिएगा. थोड़ा बोलने में तो आप गस खाकर गिर जाइएगा न. पिताजी नहीं रहे- इ डैलोग कैसे बोलिएगा..बताइए-बताइए.
एक ठो और कंप्लिकेशन है. आनंद जी, जिनका आप किरदार निभा रहे हैं, उनके बोलने के तरीके में साल-दर-साल बड़ा बदलाव आया है. उनका 2002 में जो स्टाइल था वो 2019 एकदमे बदल गया है. शहरे-शहर घुमे हैं तो एक्सपोजर मिला है ना. तो थोड़ा बहुत दूसरा स्टाइल पिक कर लिए हैं. इस चेंज को कैप्चर किए हैं का फिल्म में?
अब तो देरी हो गई है, लेकिन आपको एक्सेंट में एक रिफ्रेशर कोर्स करा देते हैं. फैदा होगा तो फिर से डबिंग कर लीजिएगा.

रुल नंबर 1- हम लोग स-श, र-ड़, ट-त में भेदभाव कम्मे करते हैं. सड़क भी बोल देते हैं और सरक भी. एकदम से समभाव रखते हैं. बुझे. इ सब तो आप पिक ही नहीं कर पाए होंगे.

रुल नंबर 2- स्त्रीलिंग, पुलिंग के फेरा में ज्यादा नहीं पड़ते हैं. जेंडर भेदभाव खत्म करने का एक ठो अनोखा प्रयोग इसको समझ लीजिए. पढ़ाया जाता है सब. लिखने में लिंग का ख्याल रखना पड़ता है, लेकिन बोलते समय इ सब पचड़ा में हमलोग नहीं पड़ते हैं.


रुल नंबर 3- जी और वा का खुबे उपयोग कीजिए. स्वादानुसार कहीं भी लगा सकते हैं. ‘मयंकवा’ चलेगा और ‘हो मयंक जी’ तो दौड़ेगा. चपरासी जी, खलासी जी, हेल्पर जी—इन सबका प्रयोग एक दम से दबा के कीजिए. इसे लैंग्वेज की गड़बड़ी समझने का गड़बड़ी नहीं कर लीजिएगा. बिहार में सब जी होता क्योंकि सबका इज्जत होता है.

रुल नंबर 4- अंग्रेजी के शब्दों को बिहारी टच देकर बोलिए. गाड़ी हमेशा मौसम में चलती है, मोशन बोलने की भूल मत करीएगा. कोई बोला तो नहीं होगा आपको.


रुल नंबर 5- ढ़ेर स्मार्ट बनने का कोसिस मत कीजिए. बिहारीपन लाने के लिए नाक से बोलने का सहारा कम कीजिए. ये कोई यूनिफॉर्म रुल नहीं है. लेकिन आपने ये गलती की है.
और सबसे बड़ी बात- दो-चार ठो रुल पढ़कर बिहारीपन का मजाक उड़ाना बंद कीजिए. हर जगह की तरह बिहारीपन भी वे ऑफ लाइफ है. उसको सीखने के लिए थोड़ी मेहनत तो बनती ही है. ट्रेलर देख कर लगता है कि आपने ऐसा कुछो नहीं किया है. पता नहीं, आनंद जी कैसे हरी झंडी दे दिए. जोधा अकबर में आपका डैलोग सुने थे, तो उम्मीद कुछ ज्यादे कर लिए थे इस बार.

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