दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो, तो शायद कुछ कमी सी लगती है. लेकिन अगर पटाखे हमारी सेहत को इतना नुकसान पहुंचा रहे हैं, तो हमें इनके इस्तेमाल के बारे में फिर से सोचने की जरूरत है. दिवाली की धूम-धड़ाम के बीच सेहत से जुड़ी समस्याओं से किस तरह बचें और पटाखों से किस तरह बच्चों, बुजुर्ग और बीमार लोगों को बचाएं, ये एक बड़ा सवाल है.
जेपी हॉस्पीटल के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सीनियर स्पेशलिस्ट डॉ. ज्ञानेंद्र अग्रवाल ने बताया कि दमा के मरीज या आम व्यक्तियों पर पटाखों के धुएं का असर कैसे होता है?
डॉ. अग्रवाल ने कहा:
रोशनी का त्योहार दिवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों बढ़ जाती है. पटाखों में मौजूद छोटे कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है.
इस तरह से पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते. हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि ऑर्गन फेल हो जाए या मौत तक हो जाए. ऐसे में धुएं से बचने की कोशिश करें.
डॉ. अग्रवाल कहते हैं:
पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है. हानिकारक टॉक्सिक पार्टिकल फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है. ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए.
पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है. पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है. जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है, तो खून के फ्लो में रुकावट आने लगती है. दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है.
डॉ. ज्ञानेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर और धुएं से बचकर रहना चाहिए. पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है. पटाखों में हानिकर रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है.
पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए.
डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जात है. ये पदार्थ एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, दूसरी ओर इनसे कैंसर की आशंका भी रहती है.
उन्होंने कहा कि धुएं से दिवाली के दौरान हवा में पीएम बढ़ जाता है. जब लोग इनपोलुटेंट्स के संपर्क में आते हैं, तो उन्हें आंख, नाक और गले की समस्याएं हो सकती हैं. पटाखों का धुआं, सर्दी जुकाम और एलर्जी का कारण बन सकता है और इस कारण छाती और गले में कन्जेशन भी हो सकता है.
यह पूछे जाने पर कि पटाखों के जलने से किस तरह की गैसें पैदा होती हैं? डॉ. अग्रवाल ने कहा:
दिवाली के दौरान पटाखों के कारण हवा में प्रदूषण बढ़ जाता है. धूल के कणों पर कॉपर, जिंक, सोडियम, लैड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जमा हो जाते हैं. इन गैसों के हानिकारक प्रभाव होते हैं. इसमें कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है. जिंक की वजह से उल्टी और बुखार और लेड से नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचता है. मैग्निशियम और सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है.
दिवाली के दौरान पटाखों और प्रदूषण को लेकर बीमार व्यक्तियों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए? इस पर डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि छोटे बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों को अपने आप को बचा कर रखना चाहिए. दिल के मरीजों को भी पटाखों से बचकर रहना चाहिए. इनके फेफड़ें बहुत नाजुक होते हैं. कई बार बुजुर्ग और बीमार व्यक्ति पटाखों के शोर के कारण दिल के दौरे का शिकार हो जाते हैं. कुछ लोग तो शॉक लगने के कारण जान भी गंवा सकते हैं.
यह पूछे जाने पर कि पटाखे आवाज और धुआं भी पैदा करते हैं, इनसे नॉयज पॉल्यूशन होता है, इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए? इस पर अग्रवाल कहते हैं कि शोर का मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. शोर या आवाज हवा से फैलती है. इसे डेसिबल में मापा जाता है.
स्पेशलिस्ट का कहना है कि 100 डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है. वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार, शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है. लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 90 डेसिबल से भी ज्यादा है. मनुष्य के लिए हाई लेवल 85 डेसिबल तक ही माना गया है. अनचाही आवाज मनुष्य की साइकोलॉजी पर असर करती है.
उन्होंने कहा कि शोर तनाव, डिप्रेशन, हाई ब्लड प्रेशर, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है. तनाव और हाई ब्लड प्रेशर सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वह डिप्रेशन का शिकार हो सकता है. ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं. शोर में रहने से हाई ब्लड प्रेशर पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है. ये सभी कारक हाई ब्लड प्रेशर और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं.
ऐसे में दिवाली के दौरान पटाखों और प्रदूषण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतें?
इस सवाल पर डॉ. अग्रवाल ने कहा कि कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें. पटाखों के जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं, जो दमा के मरीजों के लिए खतरनाक हैं. हवा में मौजूदा धुंआ बच्चों और बुजुर्गों के लिए घातक हो सकता है.
उन्होंने सलाह दी कि प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलर्जी का कारण बन सकती है. एलर्जी से बचने के लिए अपने मुंह को रुमाल या कपड़े से ढक लें. दमा के मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें.
अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो, तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डॉक्टर की सलाह लें. त्योहारों के दौरान अच्छा लाइफस्टाइल अपनाएं. अगर आपको किसी तरह असहजता महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें.
(इनपुट: IANS)
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