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Ramadan 2023:इस्लाम में रमजान पवित्र महीना क्यों है,इसमें मुसलमान क्या करते हैं?

Ramadan के पूरे एक महीने में दुनिया भर के मुसलमान रोजा रखते हैं, इबादत करते और अल्लाह से दुआएं मांगते हैं.

Ramadan 2023:इस्लाम में रमजान पवित्र महीना क्यों है,इसमें मुसलमान क्या करते हैं?
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मुसलमानों (Muslims) के लिए माना जाने वाला सबसे पाक (पवित्र) महीना रमजान (Ramadan) अपनी दहलीज पर है. भारत (India) में यह शुक्रवार, 24 मार्च से शुरू हो रहा है जबकि सऊदी अरब और दुबई जैसे देशों में इसकी शुरुआत 23 मार्च से ही हो चुकी है. रमजान के पूरे एक महीने में दुनिया भर के मुसलमान रोजा रखते हैं, इबादत करते और अल्लाह से दुआएं मांगते हैं. आइए विस्तार से जानते हैं कि रमजान क्या है, इस महीने में मुसलमान रोजा रखने के साथ क्या करते हैं और इस दौरान क्या-क्या होता है.

Ramadan 2023:इस्लाम में रमजान पवित्र महीना क्यों है,इसमें मुसलमान क्या करते हैं?

  1. 1. रमजान क्या होता है?

    इस्लाम धर्म में रमजान एक पाक (पवित्र) महीना है. इस दौरान दुनिया के लगभग 1.8 अरब मुसलमान रोजा रखते हैं.

    रोजा रखने का ये महीना इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक तय होता है, जो चांद दिखने पर आधारित होता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान का महीना कैलेंडर के नौवें महीने में आता है. रमजान की शुरुआत चांद पर निर्भर होती है.

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  2. 2. रमजान में मुसलमान क्या करते हैं?

    रमजान के दौरान जो इस्लाम धर्म में यकीन रखने वाले लोग रोजा रखते हैं. इस दौरान सुबह की नमाज के बाद सूर्यास्त तक कुछ खाना और पीना नहीं होता है. रमजान के दौरान रोजेदार नमाज अदा करने के साथ ही, कुरआन शरीफ की तिलावत करते हैं, जकात (दान) देते हैं और ऐसे काम करने की कोशिश की जाती है, जिससे सवाब (पुण्य) मिले. रमजान के दौरान दिन में खाने-पीने से दूर रहने के अलावा बदकारी, झूठ, लड़ाई-झगड़े, गुस्सा से परहेज करना होता है. ऐसे तो आम दिनों में भी इन सब चीजों की मनाही होती है, लेकिन रमजान में खास तौर पर खुद की बुराई को दूर कर एक अच्छा इंसान बनने के मौके के तौर पर देखा जाता है. एक महीने का रोजा पूरा होने के बाद ईद-उल-फित्र मनाई जाती है.

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  3. 3. रमजान महीने को पवित्र महीना क्यों माना जाता है?

    द क्विंट के जर्नलिस्ट माज हसन कहते हैं कि रमजान का महीना मुसलमानों के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि इसी महीने में इस्लाम की पवित्र किताब कुरआन शरीफ नाजिल (अल्लाह की ओर से भेजी गई) होना शुरू हुई थी. जो कि आगे चलकर इस्लाम धर्म की मार्गदर्शक बनी. आगे चलकर फिर इसी किताब ने मुसलमानों को जिंदगी जीने का तरीका बताया, रमजान के महीने में रोजा रखना उन्हीं तरीकों में से एक है.

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  4. 4. रोजा क्यों रखा जाता है?

    रमजान इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों (कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज) में से एक है. इसलिए इस मजहब को मानने वाले लोग रोजा रखते हैं. इसके अलावा रोजा रखने का अभ्यास कई आध्यात्मिक और सामाजिक उद्देश्यों को भी पूरा करता है.

    द क्विंट में मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट मोहम्मद इरशाद आलम कहते हैं कि जब हम रमजान के महीने में रोजे रखते हैं, तो हमें गरीबों की भूख का दर्द भी पता चलता है.

    रमजान का महीना मुसलमानों के लिए एक तरह से ट्रेनिंग का महीना होता है क्योंकि इस दौरान रोजा रखने वाले लोग नमाज की पाबंदी करते हैं, सदका (दान) देते हैं, जकात देते हैं, गरीबों की मदद करते हैं. और ये सब चीजें इस्लाम हमेशा करने की सीख देता है.
    मोहम्मद इरशाद आलम, मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट, द क्विंट

    रोजा रखना सिर्फ भूखा रहना नहीं है

    हदीस बुखारी शरीफ के मुताबिक, रोजे के दौरान खाने पीने की चीजों से दूरी रखने के साथ आंख, कान, नाक और मुंह सभी चीजों का रोजा होता है. इसका मतलब है कि आप बुरा मत कहो, किसी के बारे में बुरा मत सोचो और किसी का दिल ना दुखाओ.

    कई बार लोग भूल से कुछ खा-पी लेते हैं और इस हालत में डरकर रोजा तोड़ देते हैं. लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए अगर रोजे के दौरान आपने भूल से कुछ खा या पी लिया है तो नियम कहते हैं कि आपका रोजा फिर भी हो जाएगा.

    पड़ोसियों का ध्यान रखना जरूरी

    इस्लाम में जकात (दान) को बड़ी अहमियत दी गई है और रमजान के महीने में तो इसे और भी बेहतर माना गया है. रमजान के महीने में दान करने से ज्यादा सवाब (पुण्य) मिलता है. रिवायत में आया है कि मोहम्मद साहब ने फरमाया है कि रमजान के महीने में इफ्तार से पहले अपने पड़ोसियों का ख्याल करो कि उनके पास खाने के लिए कुछ है या नहीं. इसी तरह ईद से पहले अपने पड़ोसियों को देखें कि उनके पास नए कपड़े बनाने के लिए पैसे हैं या नहीं.

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  5. 5. रमजान के महीने में अलग क्या होता है?

    तरावीह

    तरावीह भी रमजान की इबादत का एक हिस्सा है. ये नमाज सिर्फ रमजान में ही अदा की जाती है. तरावीह में 20 रकात नमाज पढ़ते हैं और हर 4 रकात के बाद थोड़ा आराम लेते हैं. तरावीह का मतलब होता है लंबी नमाज.

    सहरी

    रोजा सहर के वक्त फज्र से शुरू होकर शाम को मगरिब की अजान तक चलता है. सहर का मतलब होता है सुबह. उस वक्त हम रोजे की नीयत कर मामूली रूप से रस्म अदायगी के तौर पर कुछ खाते हैं. सुबह के इसी खाने को सहरी कहा जाता है. फज्र की नमाज शुरू होने तक सहरी की जा सकती है.

    इफ्तारी

    इफ्तार का मतलब किसी बंदिश को खोलना होता है. रमजान के रोजों में दिन भर खाने-पीने की बंदिशें होती हैं. और शाम को मगरिब की अजान होते ही ये बंदिश खत्म हो जाती है. इसलिये इसे इफ्तारी कहा जाता है. खजूर से इफ्तार करने को इस्लाम में अफजल (प्राथमिकता) माना जाता है.

    रमजान में सवाब (पुण्य)

    रमजान का महीना मुसलमानों के लिये सबसे ज्यादा सवाब (पुण्य) का महीना होता है. दूसरे दिनों में जो नेक अमल (अच्छे कर्म) किये जाते हैं, उसके मुकाबले में रमजान में नेकियों का सवाब 70 गुना ज्यादा दिया जाता है. फर्ज इबादतों (फर्ज नमाज) का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है तो सुन्नत और नफ्ल इबादतों का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है.

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  6. 6. इस्लाम के मुताबिक रोजा रखना किसके लिए जरूरी है?

    कुरान और हदीस दोनों में इस बात का जिक्र है कि हर बालिग औरत और मर्द को रमजान के महीने में रोजे रखना फर्ज है. हालांकि इसमें उन लोगों को छूट है जो बीमार हो जाते हैं, बहुत बूढ़े हों, जिनके शरीर में रोजा रखने की ताकत ना हो और जो मानसिक रूप से बीमार हों. लेकिन ऐसा नहीं है कि बीमार को पूरे तरीके से छूट दी गई है.

    इसमें मसला ये है कि जब बीमार ठीक हो जाये तो पहली फुर्सत में रोजा रखे और अगर बीमारी लंबी चलती है तो 60 गरीबों को दोनों वक्त का खाना खिलाना होगा, या 60 गरीबों को पौने दो किलो गेहूं प्रति व्यक्ति देने होंगे. या फिर इसी के हिसाब से उन्हें पैसे अदा करने होंगे. अगर कोई सफर में है और रोजा नहीं रख पा रहा है तो सफर खत्म करते ही उसे रोजा रखने की सहूलियत है.

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रमजान क्या होता है?

इस्लाम धर्म में रमजान एक पाक (पवित्र) महीना है. इस दौरान दुनिया के लगभग 1.8 अरब मुसलमान रोजा रखते हैं.

रोजा रखने का ये महीना इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक तय होता है, जो चांद दिखने पर आधारित होता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान का महीना कैलेंडर के नौवें महीने में आता है. रमजान की शुरुआत चांद पर निर्भर होती है.

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रमजान में मुसलमान क्या करते हैं?

रमजान के दौरान जो इस्लाम धर्म में यकीन रखने वाले लोग रोजा रखते हैं. इस दौरान सुबह की नमाज के बाद सूर्यास्त तक कुछ खाना और पीना नहीं होता है. रमजान के दौरान रोजेदार नमाज अदा करने के साथ ही, कुरआन शरीफ की तिलावत करते हैं, जकात (दान) देते हैं और ऐसे काम करने की कोशिश की जाती है, जिससे सवाब (पुण्य) मिले. रमजान के दौरान दिन में खाने-पीने से दूर रहने के अलावा बदकारी, झूठ, लड़ाई-झगड़े, गुस्सा से परहेज करना होता है. ऐसे तो आम दिनों में भी इन सब चीजों की मनाही होती है, लेकिन रमजान में खास तौर पर खुद की बुराई को दूर कर एक अच्छा इंसान बनने के मौके के तौर पर देखा जाता है. एक महीने का रोजा पूरा होने के बाद ईद-उल-फित्र मनाई जाती है.

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रमजान महीने को पवित्र महीना क्यों माना जाता है?

द क्विंट के जर्नलिस्ट माज हसन कहते हैं कि रमजान का महीना मुसलमानों के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि इसी महीने में इस्लाम की पवित्र किताब कुरआन शरीफ नाजिल (अल्लाह की ओर से भेजी गई) होना शुरू हुई थी. जो कि आगे चलकर इस्लाम धर्म की मार्गदर्शक बनी. आगे चलकर फिर इसी किताब ने मुसलमानों को जिंदगी जीने का तरीका बताया, रमजान के महीने में रोजा रखना उन्हीं तरीकों में से एक है.

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रोजा क्यों रखा जाता है?

रमजान इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों (कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज) में से एक है. इसलिए इस मजहब को मानने वाले लोग रोजा रखते हैं. इसके अलावा रोजा रखने का अभ्यास कई आध्यात्मिक और सामाजिक उद्देश्यों को भी पूरा करता है.

द क्विंट में मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट मोहम्मद इरशाद आलम कहते हैं कि जब हम रमजान के महीने में रोजे रखते हैं, तो हमें गरीबों की भूख का दर्द भी पता चलता है.

रमजान का महीना मुसलमानों के लिए एक तरह से ट्रेनिंग का महीना होता है क्योंकि इस दौरान रोजा रखने वाले लोग नमाज की पाबंदी करते हैं, सदका (दान) देते हैं, जकात देते हैं, गरीबों की मदद करते हैं. और ये सब चीजें इस्लाम हमेशा करने की सीख देता है.
मोहम्मद इरशाद आलम, मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट, द क्विंट

रोजा रखना सिर्फ भूखा रहना नहीं है

हदीस बुखारी शरीफ के मुताबिक, रोजे के दौरान खाने पीने की चीजों से दूरी रखने के साथ आंख, कान, नाक और मुंह सभी चीजों का रोजा होता है. इसका मतलब है कि आप बुरा मत कहो, किसी के बारे में बुरा मत सोचो और किसी का दिल ना दुखाओ.

कई बार लोग भूल से कुछ खा-पी लेते हैं और इस हालत में डरकर रोजा तोड़ देते हैं. लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए अगर रोजे के दौरान आपने भूल से कुछ खा या पी लिया है तो नियम कहते हैं कि आपका रोजा फिर भी हो जाएगा.

पड़ोसियों का ध्यान रखना जरूरी

इस्लाम में जकात (दान) को बड़ी अहमियत दी गई है और रमजान के महीने में तो इसे और भी बेहतर माना गया है. रमजान के महीने में दान करने से ज्यादा सवाब (पुण्य) मिलता है. रिवायत में आया है कि मोहम्मद साहब ने फरमाया है कि रमजान के महीने में इफ्तार से पहले अपने पड़ोसियों का ख्याल करो कि उनके पास खाने के लिए कुछ है या नहीं. इसी तरह ईद से पहले अपने पड़ोसियों को देखें कि उनके पास नए कपड़े बनाने के लिए पैसे हैं या नहीं.

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रमजान के महीने में अलग क्या होता है?

तरावीह

तरावीह भी रमजान की इबादत का एक हिस्सा है. ये नमाज सिर्फ रमजान में ही अदा की जाती है. तरावीह में 20 रकात नमाज पढ़ते हैं और हर 4 रकात के बाद थोड़ा आराम लेते हैं. तरावीह का मतलब होता है लंबी नमाज.

सहरी

रोजा सहर के वक्त फज्र से शुरू होकर शाम को मगरिब की अजान तक चलता है. सहर का मतलब होता है सुबह. उस वक्त हम रोजे की नीयत कर मामूली रूप से रस्म अदायगी के तौर पर कुछ खाते हैं. सुबह के इसी खाने को सहरी कहा जाता है. फज्र की नमाज शुरू होने तक सहरी की जा सकती है.

इफ्तारी

इफ्तार का मतलब किसी बंदिश को खोलना होता है. रमजान के रोजों में दिन भर खाने-पीने की बंदिशें होती हैं. और शाम को मगरिब की अजान होते ही ये बंदिश खत्म हो जाती है. इसलिये इसे इफ्तारी कहा जाता है. खजूर से इफ्तार करने को इस्लाम में अफजल (प्राथमिकता) माना जाता है.

रमजान में सवाब (पुण्य)

रमजान का महीना मुसलमानों के लिये सबसे ज्यादा सवाब (पुण्य) का महीना होता है. दूसरे दिनों में जो नेक अमल (अच्छे कर्म) किये जाते हैं, उसके मुकाबले में रमजान में नेकियों का सवाब 70 गुना ज्यादा दिया जाता है. फर्ज इबादतों (फर्ज नमाज) का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है तो सुन्नत और नफ्ल इबादतों का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है.

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इस्लाम के मुताबिक रोजा रखना किसके लिए जरूरी है?

कुरान और हदीस दोनों में इस बात का जिक्र है कि हर बालिग औरत और मर्द को रमजान के महीने में रोजे रखना फर्ज है. हालांकि इसमें उन लोगों को छूट है जो बीमार हो जाते हैं, बहुत बूढ़े हों, जिनके शरीर में रोजा रखने की ताकत ना हो और जो मानसिक रूप से बीमार हों. लेकिन ऐसा नहीं है कि बीमार को पूरे तरीके से छूट दी गई है.

इसमें मसला ये है कि जब बीमार ठीक हो जाये तो पहली फुर्सत में रोजा रखे और अगर बीमारी लंबी चलती है तो 60 गरीबों को दोनों वक्त का खाना खिलाना होगा, या 60 गरीबों को पौने दो किलो गेहूं प्रति व्यक्ति देने होंगे. या फिर इसी के हिसाब से उन्हें पैसे अदा करने होंगे. अगर कोई सफर में है और रोजा नहीं रख पा रहा है तो सफर खत्म करते ही उसे रोजा रखने की सहूलियत है.

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