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महाराष्ट्र के किसानों के दर्द ने मुझे अंदर तक हिला दिया

महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं.

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हाल ही में मैं महाराष्ट्र ट्रिप पर गया था, जिस प्रदेश में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं, उस प्रदेश के किसानों की हालात और गरीबी देखकर मैं अंदर तक हिल गया. नवंबर महीने में पूर्वी हवा ओडिशा से लंबी दूरी तय कर महाराष्ट्र के अहमदनगर तक पहुंची थी. इस हवा ने उस इलाके के फसलों को नुकसान तो पहुंचाया ही किसानों की उम्मीदों पर पानी फेरने का काम किया.

सड़क मार्ग से यात्रा करना हमेशा एक रोमांचक अनुभव देता है. इस बार मैं अहमदनगर के धवलपुरी गांव के सफर पर गया था. सड़क के दोनों तरफ की दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ पौधों के साथ-साथ बंजर भूमि दिख रही थी. धवलपुरी पंचायत के पास के छोटे-छोटे बारह गांव पहाड़ी इलाके में बिखरे हुए थे. गांव में विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं, लेकिन वहां के लोगों की हालात ने मुझे अचंभित कर दिया.

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राजस्थान के प्रवासी मजदूर साकू मोहन राठौड़ के घर में मेरा जाना हुआ. उन्होंने कहा-

“मेरे बेटे और बहू शहर में इस मौसम में मजदूरी करने के लिए चले गए हैं और मैं उनके बच्चों की देखभाल करने के लिए यहां रुक गया.”
साकू मोहन राठौड़
साकू ने इस इलाके के लोगों की दर्दभरी कहानी बयां की. सूखे की मार झेल रहे इलाके में सिंचाई के लिए मीलों तक पानी का कोई स्त्रोत नहीं दिख रहा है. बाकी 12 गांवों की तुलना में धवलपुरी गांव की हालात कुछ सही थी. स्थानीय किसान शालान नाना पांडे ने अपने पैसे लगाकर ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगा रखा था और ज्वार की खेती कर रहे हैं. साथ ही ऑर्गेनिक फार्मिंग भी सीख रहे हैं. लेकिन उन्होंने बताया कि इलाके में बारिश नहीं होने की वजह से वाटर लेवल काफी नीचे चला गया है और ड्रिपइरिगेशन सिस्टम भी सही से काम नहीं कर रहा. ज्वार के अलावा अब वे प्याज की खेती कर रहे हैं. क्योंकि इसमें उन्हें कम पानी की जरूरत होती है.

अधिकांश किसान अपनी खेती के लिए वर्षा और प्राकृतिक संसाधानों पर ही निर्भर रहते हैं. सिंचाई के लिए इस इलाके में गैर सरकारी संस्थानों ने वाटरशेड और कुछ तालाब भी बनवा रखे हैं. लेकिन बारिश नहीं होने पर इनमें भी पानी नहीं रहता.

इलाके के किसान कोंडू राम ने कहा, जल संरक्षण के लिए कई उपाय इस इलाके में किए गए हैं, लेकिन बारिश के बाद कुछ समय तक ही इसमें पानी बचता है. इलाके में बारिश ज्यादा नहीं हो रही है, ऐसे में इन दिनों इन संसाधनों में भी पानी नहीं है. इस इलाके में सफर के दौरान अधिकांश खेतों में केवल प्याज की फसल ही देखने को मिली, क्योंकि बाकी फसलों के लिए पानी की काफी जरूरत होती है और इलाका सूखे की मार झेल रहा है. ये इलाका पानी की कमी से तो जूझ ही रहा है, साथ ही फसलों के बीजों की बढ़ती कीमत ने भी किसानों को काफी परेशान कर रखा है.

स्थानीय हाट पर लोगों की निर्भरता

इस इलाके के लोग शुक्रवार को लगने वाले साप्ताहिक हाट (बाजार) का बेसब्री से इंतजार करते हैं. क्योंकि यही हाट एक जरिया है, जहां पर लोग अपने सामानों की बिक्री कर सकते हैं, या सामान खरीद सकते हैं. मैंने इस हाट का दौरा किया तो देखा कि अनाज, सब्जी, फल, मसाले और रोजाना जरूरत के सामान इस हाट में मिलते हैं. इस हाट में धवलपुर पंचायत के 12 गांवों के लोग अपने सामान बेचने तो आते ही हैं, साथ ही साथ 7 किलोमीटर दूर भलोनी गांव के लोग भी अपने सामानों की बिक्री के लिए यहीं का रूख करते हैं.

इन दिनों देशभर के किसान कर्ज माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, इस हाट में सामान बेचने वाले किसानों की भी मांग है कि फसलों के साथ-साथ फल-सब्जियों के लिए एमएसपी तय की जाए.

जब मैंने किसान मुक्ति मार्च के बारे में पूछा तो स्थानीय भोंदवा वाडी के किसान सारदा ने प्याज की अनिश्चित कीमतों को लेकर नाराजगी जाहिर की.

“अचानक से हमेशा बदलने वाले मौसम ने मेरी फसल और पैदावर को काफी को प्रभावित किया है, मैं सरकार से प्याज के लिए एमएसपी की घोषणा करने का इंतजार कर रहा हूं.”
सारदा,स्थानीय किसान

महाराष्ट्र में सबसे अधिक प्याज की पैदावर होती है. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से निवेदन भी किया है कि प्याज के लिए भी एमएसपी तय की जाए.

इलाके में कम बारिश के साथ-साथ सही बाजार नहीं होने की वजह से किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इलाके में घूमने के दौरान मैंने महूसस किया कि बारिश कम होने और क्लाइमेट चेंज होने की वजह से किसानों के लिए कई तरह की मुसीबतें पैदा हो गई है.

लंबे समय में किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और उनके भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए इस इलाके में कुछ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की जरूरत है. मिनिस्ट्री ऑफ फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज को इलाके में कुछ यूनिट लगाकर सभी गांवों को जोड़ना चाहिए और किसानों को बेहतरीन मार्केट मुहैया कराई जाए. किसान हमारे देश के लिए बैकबोन का काम करते हैं, इनकी हालात बेहतर बनाए बगैर देश के हालात को बेहतर नहीं बनाया जा सकता.

(लेखक जेवियर विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर में रूरल मैनेजमेंट के छात्र हैं)

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