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कूड़े के ढेर में तब्दील होता शिमला का ये इलाका,कब सुध लेगा प्रशासन?

शिमला से सिटिजन जर्नलिस्ट सुरिंदर कुमार की रिपोर्ट

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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2 अक्तूबर, 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान के जोशीले आगाज के बाद आज इस राष्ट्रव्यापी अभियान की कवायदें फीकी पड़ चुकी है. इसकी पुख्ता नजीर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की ग्राम-पंचायत नेरी का सांगटी वॉर्ड है. इस पूरे क्षेत्र में कचरा फेंकने की कोई व्यवस्था नहीं है.

नतीजतन, कचरा इस इलाके के सटे जंगलों और नालों में फेंका जा रहा है. वॉर्ड में कचरे का आलम कुछ ऐसा है कि यह नालों के जरिए पूरे वन क्षेत्र में फैला हुआ है. इस इलाके को साफ रखने का जिम्मा न वन-विभाग और न ही प्रशासन उठा रहा है.

हालांकि वन-विभाग ने अपना एक बोर्ड लगाकर ये जरूर लिख दिया है कि 'यहां कूड़ा-कचरा फैलाना मना है, लेकिन इसकी देखभाल करने में विभाग की कोई दिलचस्पी नहीं दिखती है, क्योंकि कचरे से यहां के जंगलों को नुकसान हो रहा है.

निवासियों की समस्याएं

यहां कचरा प्रबंधन के पुख्ता इंतजाम न होने की वजह से लोगों के लिए ये विकट समस्या बन चुकी है. हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी की सीमा के पास इस क्षेत्र की जर्रर सड़कें और सड़कों के इर्द-गिर्द पसरा कचरा क्षेत्र की बदहाली को बयां करता है. गड्ढों से भरी हुई इन सड़कों पर बरसात में गंदा पानी जमा हो जाता है, जिससे आने-जाने वाले राहगीरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

स्वच्छता से महरूम सांगटी वॉर्ड में समस्याओं की कमी नहीं है. अगर वॉर्ड की सफाई व्यवस्था को दुरुस्त और सड़कों की मरम्मत नहीं की गई तो ये बीमारियों के लिए खुला निमंत्रण साबित होगी.

बावजूद इसके भी, प्रशासन और सरकार कोई भी यहां के लोगों की परेशानियों को समझने की जहमत नही उठा रहे हैं. फिलहाल अभी तक यहां के लोग स्वस्थ हैं, लेकिन ये नहीं सकता कि ऐसे हालात में वे कब तक महफूज रहेंगे. कहा नही जा सकता. खुले में फैली गंदगी से होने वाले संभावित खतरों को ध्यान में रखना जरूरी है.

प्रशासन की प्रतिक्रिया

नेरी पंचायत के प्रधान देवेंद्र ठाकुर ने मौजूदा समस्या के बारे में बताया कि ग्राम-पंचायत को मिले नगर निगम के सहयोग से वॉर्ड को साफ-सुथरा रखने की पहल की जा चुकी है.

“पहले वॉर्ड के प्रत्येक घर से कचरा इकठ्ठा करने के लिए कुछ लोगों को काम पर रखा गया था. लेकिन ये कवायद कामयाब नहीं हो पाई, क्योंकि घरों से कचरा इकठ्ठा करने के लिए गाड़ी की उचित सुविधा नहीं मिल सकी. हम कचरे की डंपिंग के लिए क्लस्टर बनाने जा रहें है, लेकिन इसके लिए हमें वॉर्ड के प्रत्येक निवासी का सहयोग चाहिए.” 

सांगटी वॉर्ड की आबादी लगभग 1500 के करीब है. इनमें प्रदेश से बाहर के छात्र भी शामिल हैं, जो यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हैं और यहां किराए के मकानों में रह रहे हैं. हर दिन इन्हें कचरे से भरी सड़कों से होकर पैदल गुजरना पड़ता है, जिसमें खुलकर सांस भी नही ली जा सकती है.

यहां के लोग वॉर्ड की ऐसी आबोहवा में घुटन भरी जिंदगी के साथ समझौता करने को मजबूर हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि राजधानी में उनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं है.  प्रसाशन उनकी अनदेखी की जा रही है.

हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है की प्रदेश के कुछ शहरों खासकर औद्दोगिक शहरों की हवा में धूल के कण तय मानक से बढ़ गए हैं. लेकिन इनमें राजधानी शिमला भी पीछे नहीं है. एनजीटी ने राज्य सरकार को हाल ही में आगाह भी किया है कि पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने के लिए उचित कदम उठाएं.

सांगटी में न सिर्फ लोगों की जिंदगी को, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है. ऐसा मान लिया गया है कि यहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की खुली छूट मिल गई है.

इस तरह की अनदेखी से राज्य सरकार भारतीय संविधान के आर्टिकल 48 (a) को दरकिनार कर चुकी है, जिसमें साफ शब्दों में कहा गया है कि, “राज्य पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा की कोशिश करेगा.”

कचरे का उचित प्रबंधन पर्यावरण और जन-स्वास्थ्य की अहम जरूरत है. इसलिए संविधान में कचरे के सही निस्तारण की जिम्मेदारी राज्य सरकार और राज्य के लोगों को दी गई है. स्थानीय लोगों से ये जानकर अफसोस होता है कि सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी सांगटी की कायापलट मिशन के प्रति जवाबदेह लोग नाकाबिल हैं और उनमें बदलाव लाने की इच्छा नहीं है.

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(सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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