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कश्मीरी भी भारत का अभिन्न हिस्सा है, फिर उनके खिलाफ नफरत क्यों?

कश्मीर का मुद्दा हमेशा से ही संवेदनशील रहा है. 

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कश्मीर का मुद्दा हमेशा से ही संवेदनशील रहा है. 14 फरवरी को पुलवामा में हुए हमले की देश और दुनिया भर के लोग निंदा कर रहे हैं. भारत के लोग इस हमले के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. कुछ लोगों ने युद्ध की मांग की है, वहीं काफी लोग सर्जिकल स्ट्राइक करने की मांग कर रहे हैं.

वहीं कुछ लोग पाकिस्तान पर सभी तरह से प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं, जिसका उस देश पर स्थायी प्रभाव पड़े. भारत को जो नुकसान हुआ है, उसके लिए पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना काफी हद तक उचित है. लेकिन विरोध प्रदर्शन ने जिस तरह सांप्रदायिक रूप अख्तियार कर लिया है, वह काफी घातक है.

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कई जगहों पर ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें कश्मीरी छात्रों, व्यापारियों और यहां तक ​​कि दूकानदारों को निशाना बनाया गया. ये भीड़ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से कश्मीरी छात्रों को निष्कासित करने की मांग कर रहे हैं. यह सब हमले के बाद सोशल मीडिया पर शुरू हुए विरोध प्रदर्शन के कारण काफी तेजी से हर जगह फैला. सबसे पहले हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया गया, फिर एक निश्चित समुदाय को और अंत में कश्मीरियों को भी इसके लिए दोषी ठहराया जाने लगा. लेकिन सच्चाई यही है कि अन्य भारतीय नागरिकों की तरह ही कश्मीरी भी शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं.

‘कश्मीरियों को नहीं पसंद है तनाव’

किसी भी कश्मीरी को हत्या और तनाव पसंद नहीं है. किसी भी हमले के लिए पूरे राज्य को दोषी ठहराने का कोई मतलब नहीं है. जो कश्मीरी छात्र देश के अलग-अलग हिस्सों में पढ़ाई कर रहे हैं, वे अब इस खतरे में जी रहे हैं कि उन पर कभी भी हमला हो सकता है. उन्हें कुछ कॉलेजों पर निष्कासित किया गया, वहीं कई जगहों पर उनके साथ मारपीट भी हुई और उन्हें वहां से भगाया गया.

एक कश्मीरी होने के नाते, मैं अपने राज्य की हालात से काफी अच्छ तरीके से वाकिफ हूं. पिछले चार सालों में काफी युवा कट्टरपंथी ताकतों का आसान शिकार बने हैं. लोगों को लगता है कि यह राज्य और केंद्र सरकारों की विफलताओं के कारण है, जिससे कश्मीर के हालात इतने तनावपूर्ण हैं.

गोलीबारी की घटना, निर्दोष नागरिकों की मौत और रोजाना होनेवाले इनकाउंटर से हालात और बिगड़ गए हैं. आतंकवादियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है. राज्य देश के बाकी हिस्सों से अलग-थलग महसूस करता है, और दुख की बात यह है कि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर कुछ नहीं किया है. बाकी देशवासी भी कश्मीर के हालात को सही तरह से समझ नहीं पाए हैं.
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इन हमलों का परिणाम

पूरे भारत में कश्मीरियों को संदेह की नजर से देखा जाता है. जब किसी शहर में किराए पर कमरा लेने की बात आती है तो हमारे खिलाफ साफतौर पर भेदभाव होता है. पुलवामा हमले के बाद हालात बद से बदतर होते चले गए हैं. कश्मीरियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर लगातार नफरत से भरे पोस्ट किए जा रहे हैं. दुर्भाग्य की बात है कि नफरत फैलाने वालों ऐसे लोगों को बाकियों का सपोर्ट भी मिल रहा है. वहीं अगर कोई कश्मीरी सोशल मीडिया पर कमेंट करता है, तो उस पर आतंकवादी होने का आरोप लगाया जाता है. युवाओं के मन में इस वजह से डर का माहौल बना हुआ है. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव है, लेकिन इन सबके के लिए कश्मीरियों को क्यों जिम्मेदार ठहराया जा रहा है?

कश्मीरी छात्रों, व्यापारियों और पर्यटकों के खिलाफ इस तरह के व्यवहार का भविष्य में बुरा असर पड़ सकता है. अगर ऐसा होता रहा तो कश्मीरी खुद को देश के बाकी हिस्सों से राज्य को अलग कर लेंगे. ऐसे में युवा उग्रवाद की तरफ और ज्यादा बढ़ सकते हैं, जो पहले से ही जल रहे कश्मीर को आतंक की आग में घी डालने का काम करेगा.

मैं इस बात से सहमत हूं कि राज्य आतंकवाद को खत्म करने की जरूरत है, और सरकार को इसका सॉल्यूशन ढूंढने की जरूरत है. लेकिन इससे परे लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि घाटी के नागरिक भी इस देश का वैसा ही हिस्सा हैं जैसा कि बाकी. कश्मीरी छात्रों और व्यापारियों पर हमलों को तुरंत रोकने की जरूरत है.

तनाव के समय में, यदि शेष भारत के लोग कश्मीरियों के प्रति अच्छा व्यवहार रखेंगे तो निश्चित रूप से बदलाव देखने को मिलेगा. ऐसा होने पर युवा बंदूक, हथियार, बम और आईईडी लेने के बजाय शिक्षा की ओर रुख करेंगे और शांति बहाली में शामिल होंगे.

घाटी में मौजूदा मौजूदा हालात डर और चिंता से भरी है. वे लोग जिनके परिवार कश्मीर से बाहर रह रहे हैं या पढ़ रहे हैं, वे सुरक्षित होने के बावजूद भी चिंतित हैं. उदाहरण के लिए मैं और मेरे दोस्त पंजाब में रह रहे हैं और सुरक्षित हैं. किसी ने भी हमारे प्रति घृणा के एक भी शब्द नहीं बोला है, फिर भी, हमारे माता-पिता चिंतित हैं. वे हमें या तो वापस आने के लिए कह रहे हैं या फिर किसी सेफ जगह पर रहने की सलाह दे रहे हैं.

कश्मीर को पूरे देश से सपोर्ट की जरूरत है. राज्य के युवाओं को इसमें शामिल होने और समस्या को सावधानीपूर्वक और संवेदनशील रूप से कंट्रोल करने की जरूरत है. शिक्षा, विकास और रोजगार के जरिये ही युवाओं को आतंकवाद के रास्ते पर जाने से रोका जा सकता है, उन्हें इस तरह के मौके मिलेंगे तभी उन्हें यह महसूस होगा कि वे भी भारत का अभिन्न हिस्सा हैं.

भारत के लोगों को कश्मीरी छात्रों का स्वागत करना चाहिए और उन्हें गले लगाना चाहिए, क्योंकि इससे जम्मू और कश्मीर को शांतिपूर्ण तरीके विकसित करने में मदद मिलेगी.

(लेखक अपना नाम नहीं जाहिर करना चाहते हैं. सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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