आत्म प्रिय देश भारत,
मैं हमेशा अपने आप को सौभाग्यशाली समझती रही हूं कि, मैं तेरी सर जमीं में पली बढ़ी. तेरे दायरे में, मैं अपनी बातों को बेखौफ बोलती रही, सुनाती रही. तेरी सरहदों में जहां मर्जी आती जाती रही. किस भी धर्म की चौखट पर न जाने क्यों अपने आप ही अपना सर झुकाती रही.अपने विभिन्न समुदायों के दोस्तों के साथ दिवाली,होली,क्रिसमस,ईद,गुरुपर्व मनाती रही.
लेकिन ऐ मेरे वतन ! अब न जाने क्यों कुछ डर सा लगने लगा है. कुछ टूटने लगा है. अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान मैंने लोकतंत्र, प्रस्तावना, सर्वधर्म, एकता अखंडता जो सब भी पढ़ा था. वो आज कुछ और ही तस्वीर दिखा रहा है. ”हिन्द देश के निवासी सभी जन एक हैं”नहीं रहे क्यों लगता है?इंसानियत से पहले धर्म आगे आ गया है क्या? मैं इंसान ही रहना चाहती हूं. लेकिन उनका क्या करें, जो सिर्फ हिन्दू मुसलमान बनकर ही रहना चाहते हैं? मैं मिठाई के साथ-साथ सेवइयां भी खाना चाहती हूं.
तुझे क्या पता कि, आज विश्व के मानचित्र में जिस तेज विकास गति से तू बढ़ रहा था, अचानक तेरी गति भी धीमी हो गई है. आर्थिक व्यवस्था, आर्थिक सुरक्षा के मुद्दे जो सबसे पहले होने चाहिए उन पर बातचीत बंद कमरों में होने लगी है. तेरे नौजवान आज शिक्षा के घरों में तेरे दावेदारों की मार झेल रहे हैं. तूने ही तो अपनी किताबों में लिखा था कि तुम्हे बोलने की आजादी है, फिर बोल कि लब आजाद हैं या नहीं? शिक्षा समाज का आईना है फिर भी शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा बंद है. तेरे अनेकों लोग आज भी अपनी बीमारियों का इलाज, न करा पाने के कारण जीवन से हार मान जाते हैं. क्योंकि सेहत भी चर्चा का मुद्दा है, ही नहीं.
तेरे देश में चमत्कारी प्रतिभा के धनी हैं, लेकिन उन्हें भी नजरअंदाज कर सिर्फ और सिर्फ आपसी मन मुटाव की स्थिति उत्पन्न की जा रही है. सरहदों पर तैनात वीर जो अपना सर्वस्व न्योछावर कर तेरे हर बन्दे को सुरक्षित करा रहे हैं. उनके भी समर्पण का मूल्य अंदरूनी हालात नहीं चुका पा रहे हैं.
इतना होते हुए भी मुझे उम्मीद है कि तेरी मिट्टी में जो भाईचारे सौहार्द की खुशबू है वो फैल जाएगी और हर वो नकारात्मक सोच जो तेरे उसूलों के खिलाफ है टूट जाएगी. तेरा अस्तित्व ही तेरी पहचान है. हे देश! मेरे ,तुझे शत शत प्रणाम और सलाम है.
जय हिन्द!जय भारत!
तेरा सूक्ष्म अणु
प्रतिभा पाल,नई दिल्ली
इस गणतंत्र दिवस, क्विंट हिंदी अपना कैंपेन 'लेटर टू इंडिया' वापस लेकर आया है. इस गणतंत्र दिवस, 'हिंदुस्तान' के नाम अपने एहसासों को शब्दों के सहारे बताइए.
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे...
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