रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और थल सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों ने मंगलवार, 14 जून को तीनों सेनाओं में सैनिकों की भर्ती के तरीके में एक महत्वपूर्ण घोषणा की. रक्षा मंत्रालय ने इस उद्देश्य से नई अग्निपथ योजना शुरू की है, जो तत्काल प्रभाव से लागू होगी. इस योजना के तहत भर्ती होने वाले सैनिकों को अग्निवीर कहा जाएगा. इसके तहत महिलाओं को भी मौका दिया जाएगा.
लेकिन कई रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर ने सेना, नौसेना और वायु सेना में सैनिकों की भर्ती के नए तरीके पर सवाल उठाए हैं. खासकर 'ऑल इंडिया ऑल क्लास' की भर्ती और चार साल के लिए कॉन्ट्रैक्ट भर्ती की आलोचना की है.
गोरखा रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट जनरल तेज सप्रू (रिटायर्ड) ने कहा कि ऑल क्लास के तहत और चार साल के लिए सेना में भर्ती की वजह से नेपालियों की भर्ती में कमी से भारत और नेपाल के रिश्तों में बदलाव हो सकते हैं. आज भारतीय सेना में नेपाल के रहने वाले कई लोग हैं और इसी वजह से चीन नेपाल में भारत को काउंटर करने के लिए दखल नहीं दे पाता.
मेजर जनरल बीएस धनोआ (रिटायर्ड) ने ट्वीट किया कि, “सशस्त्र बलों के लिए हाल ही में घोषित भर्ती नीति के लिए दो गंभीर सिफारिशें; एक, नए लोगों को चार साल के लिए भर्ती करने की बजाय इसे बढ़ा कर कम से कम सात साल करें. दो, जो चार साल से ज्यादा लंबे समय तक के लिए सेवा करने के इच्छुक हैं उन्हें भर्ती (रिटेन) कर लें, कम से कम 50 प्रतिशत लोगों को.
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने दो अलग अलग ट्वीट में इसे टूर ऑफ ड्यूटी बताते हुए कमेंट किया कि, इस पर मुझे एक आर्मी ऑफिसर की टिप्पणी मिली. कोई भी इस भ्रम में है कि 4 साल के दौरे पर एक 'इंटर्न' हिमालय की चुनौतियों का सामना करेगा और जीवन की रक्षा कर वो पलटन की 'इज्जत' को आगे रखेगा ऐसा सोचने वाला भ्रम में है.
उन्होंने अन्य ट्वीट में लिखा कि, "टूर ऑफ ड्यूटी (इस योजना) का परीक्षण नहीं किया गया, कोई पायलट प्रोजेक्ट नहीं, सीधे लागू कर दिया गया. अच्छा विचार नहीं है. किसी को लाभ नहीं होगा."
सेना में अधिकारी बनने से पहले एक सैनिक के रूप में भी काम कर चुके रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल एसएस सोही ने कहा कि, सेना की बुनियादी चीजों को सीखने में ही नई भर्ती वालों को चार साल लगते हैं. उधर बिहार रेजिमेंट के एक पूर्व अधिकारी, लेफ्टिनेंट कर्नल सोही ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि, यह इन रेजिमेंटों के गौरव और उत्साह को समाप्त कर देगा.
इंडिया टुडे के अनुसार एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर ने कहा कि, "यह केवल चार साल के लिए. इस पर अभी टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी. लेकिन चार साल की अवधि के बाद सेना के जवानों के लिए कुछ चुनौतियां हैं. इस पर निर्भर करता है कि उन्हें नौकरी मिलती है या नहीं."
उन्होंने यह भी कहा कि, "सुधार लाने में कोई समस्या नहीं है. लेकिन यह कहना मुश्किल है कि क्या इससे युवाओं के लिए अधिक अवसर पैदा होंगे या नए जॉइनर्स को अनिश्चितता के साथ छोड़ दिया जाएगा. यह एक एक्सपेरिमेंट है जो शायद काम कर जाए."
लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने कहा, "हमें एक जीतने वाली सेना तैयार करनी है, न कि जो दूसरे नंबर पर आए वैसी सेना. भले ही यह योजना देश को कुछ फायदा दिखा रही हो, वैसे तो सरकार को ही केवल फायदा हो रहा है- वित्तीय रूप में. इससे सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है. हम युद्ध के लिए एक सेना तैयार करते हैं ताकि हम युद्ध जीत सकें. हम युद्ध में रनर-अप नहीं बन सकते. हमें विजेता बनना होगा. तभी हम अपने देश की रक्षा कर सकते हैं."
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