माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और उसके सहयोगी गुलाम के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद जहां एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार अपने अधिकारियों की पीठ थपथपाते नहीं थक रही है, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश एसटीएफ के अधिकारियों द्वारा किए गए इस एनकाउंटर पर कई सवाल भी खड़े हो गए हैं.
24 फरवरी 2023 को प्रयागराज के धूमनगंज इलाके में हुए उमेश पाल और उनके दो गनर की हत्या के मामले में वांछित पांच अभियुक्तों में से असद और गुलाम की झांसी में एसटीएफ की एक टीम के साथ मुठभेड़ के दौरान मौत हो गई. एसटीएफ के पुलिस उपाधीक्षक नवेंदु कुमार की तरफ से दर्ज एफआईआर में बताया गया है कि डिस्कवर बाइक सवार असद और गुलाम को जब घेरने की कोशिश की गई तो वह भागने लगे. बाइक सवार दोनों अभियुक्तों ने भागने की कोशिश की और बाद में एक झाड़ी के पास उनकी बाइक स्लिप होकर गिर गई. असद और गुलाम ने पीछा कर रही पुलिस टीम पर फायर झोंकी और जवाबी कार्रवाई में दोनों की मौत हो गई.
STF द्वारा जारी तस्वीर से उठा पहला संदेह
13 अप्रैल 2023 को मुठभेड़ के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस के आला अधिकारियों द्वारा जारी तस्वीर में एक मोटरसाइकिल झाड़ी के पास गिरे हुए दिखाई पड़ रही है. गिरी पड़ी मोटरसाइकिल के एक तरफ असद तो दूसरी तरफ गुलाम का शव पड़ा हुआ है. इस तस्वीर के नजदीकी अवलोकन से यह साफ पता चल जा रहा है कि गाड़ी की पिछली सीट पर धूल जमा हुआ है, जबकि पुलिस के अनुसार इस बाइक पर 2 लोग सवार थे.
अगर इस बाइक पर 2 लोग सवार थे तो ऐसा कैसे हुआ कि चालक सीट की जगह साफ थी. वहीं, पिछली सीट पर ऐसे धूल जमा हुआ था. जैसे उस पर कोई बैठा ही ना हो. अगर एक बार के लिए मान लें कि वह धूल बाइक के गिरने के बाद जमा हुई तो ऐसा कैसे हुआ कि वह सिर्फ पिछली सीट पर जमा हुई और चालक की सीट साफ थी?
बिना हेलमेट चेहरा छुपाए बेखौफ घूम रहे थे अपराधी?
उमेश पाल हत्याकांड के बाद असद और गुलाम समेत पांच आरोपियों पर उत्तर प्रदेश पुलिस की तरफ से 5-5 लाख रुपए के इनाम घोषित किए गए थे. उत्तर प्रदेश पुलिस और एसटीएफ की एक दर्जन से ज्यादा टीमें इन्हें ढूंढने का प्रयास कर रही थी. ऐसी स्थिति में अमूमन अपराधी अपना हुलिया बदल कर पुलिस को धोखा देने का प्रयास करता है. झांसी में हुए मुठभेड़ के बाद जारी तस्वीरों को देखकर लगता है कि असद और गुलाम ने इसका ठीक उल्टा किया. कुर्ता पजामा और गोल टोपी पहने असद और उसके साथ टी-शर्ट- लोअर और गोल टोपी लगाए गुलाम बिना हेलमेट या चेहरा छुपाने की कोशिश किए बिना शायद पुलिस का इंतजार कर रहे थे कि वह उन्हें पहचान ले.
अगर दोनों आरोपी इतना बेखौफ होकर मोटरसाइकिल पर घूम रहे थे तो उत्तर प्रदेश पुलिस को इतना समय कैसे लग गया इनको पकड़ने में?
बिना नंबर प्लेट की मोटरसाइकिल
अमूमन बिना नंबर प्लेट की पुरानी गाड़ी पर पुलिस को सबसे पहले शक होता है. पुलिस चेकिंग के दौरान ऐसी गाड़ियों को हमेशा रोक कर पूछताछ की जाती है कि कहीं गाड़ी चोरी की तो नहीं या फिर कोई अपराधी किसी वारदात को अंजाम देने के लिए तो नहीं जा रहा है. अगर दो आरोपी पिछले 40 दिनों से गिरफ्त से दूर हैं और वह पुलिस के शिकंजे से बचने की कोशिश कर रहे हैं तो क्या वह बिना नंबर प्लेट की बाइक से घूमते हुए नजर आएंगे?
अगर यह सच है तो उमेश पाल हत्याकांड के बाद इन आरोपियों को लेकर जारी हाई अलर्ट और खोजबीन के बीच यह पुलिस महकमे की बड़ी चूक है कि इन लोगों को एक बार भी चेकिंग के दौरान कहीं रोका नहीं गया या पूछताछ नहीं की गई.
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