सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की प्रोग्रेस रिपोर्ट की जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है. एसआईटी का गठन 12 फरवरी 2015 को कुछ ऐसे मामलों की फिर से जांच के लिए हुआ था, जिन्हें पुलिस ने पर्याप्त सबूत न होने की वजह से बंद कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी और न्यायमूर्ति आर. बानुमति की अध्यक्षता वाली पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद से जांच में हुई प्रगति पर दो हफ्ते के अंदर रिपोर्ट देने को कहा.
याचिकाकर्ता गुरलाड सिंह कहलों के वकील रुपिंदर सिंह सूरी ने अदालत से कहा कि एसआईटी को अपना काम करने के लिए छह महीने दिए गए थे. लेकिन, 12 अगस्त 2015 को इसका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया.
दंगा होने के बाद तीन दशक से भी अधिक का समय गुजर चुका है. अब तो कई मामलों में न तो पीड़ित बचे हैं और न ही गवाह. यहां तक कि जिन पुलिसवालों ने जांच की थी, वे भी उपलब्ध नहीं हैं.
दंगा पीडि़तों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि जांच की लीपापोती के पहले के प्रयासों की भी जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए. इस पर पीठ ने कहा, उन्हें जांच की स्थिति से अवगत कराने दीजिए.
वरिष्ठ अधिवक्ता आरएम सूरी का कहना था कि 31 साल से अधिक समय हो गया है. कई गवाह और पीडि़तों का निधन हो चुका है. पीडि़तों को राहत देने के लिए इस जांच में तेजी लाने की जरूरत है. हालांकि, पीठ ने कहा कि क्या 31 साल पुराने मामले की जांच छह महीने में हो सकती है.
पीड़ितों को इंसाफ नहीं
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य कहलों ने कहा कि चूंकि इन मामलों को इनके अंजाम तक ले जाने और दोषियों को सजा दिलाने में पहले ही देर हो चुकी है, ऐसे में और अधिक देर निष्पक्ष मुकदमे के प्रतिकूल होगी. याचिकाकर्ता ने कहा कि घटिया जांच, बयान दर्ज करने में अत्यधिक देरी और इच्छा शक्ति के न होने की वजह से 1984 के दंगों के पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिल सका.
उन्होंने कहा कि केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही दंगों में 2733 बेगुनाह सिख मारे गए थे.
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