(यह झारखंड से बड़े शहरों में नाबालिगों की तस्करी पर द क्विंट की सीरीज है. यहां पर इस सीरीज का दूसरा भाग प्रकाशित किया जा रहा है. पहला भाग पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें. कृपया क्विंट मेंबर बनकर हमें सपोर्ट करें और महत्वपूर्ण स्टोरी को सामने लाने में हमारी मदद करें.)
यह बात 2020 की है. 15 साल की एक बच्ची ने खुद को झारखंड के अपने गांव से एक हजार किलोमीटर दूर हरियाणा के एक घर में पाया. जहां वह बर्तन धोने और फर्श साफ करने का काम रही थी.
वह लड़की अब 18 साल की हो चुकी है. वह बताती है कि "मैं वहां सिर्फ पांच दिन रुकी क्योंकि मुझे इस बात का पता लग गया था कि मुझे 'बेच' दिया गया है... मैं वहां जो काम करती थी उसके लिए मुझे पैसे नहीं मिलते, इसलिए मैं भाग निकली."
उसने झारखंड बाल कल्याण समिति का फोन नंबर हासिल किया और जल्द ही झारखंड के सिमडेगा जिले में मौजूद अपने गांव वापस आ गई.
एक साल के भीतर ही एक बार फिर से उसकी तस्करी कर दी गई. इस बार उसे पंजाब के एक घर में दो बच्चाें की देखभाल के लिए लाया गया था.
सिमडेगा में अपने टूटे-फूटे मिट्टी के घर में बैठी उस लड़की ने अपने साथ हुए टाॅर्चर को याद किया. कंपकंपाती हुई आवाज में उसने कहा- "जिस मालिक के यहां मुझे काम पर रखा गया अगर मैं उससे पैसे (सैलरी) मांगती तो वह मेरी पिटाई करता और मुझे प्लास्टिक की रस्सी से बांध देता था. एक बार मैंने भागने की कोशिश की थी, उसने मुझे सीढ़ियों तक घसीटा था और इसकी वजह से मुझे बुरी तरह से चोट आई…"
तस्करी, रेस्क्यू और फिर से तस्करी. द क्विंट ने सिमडेगा के गांव-गांव घर-घर में यही कहानी सुनी.
यह कहानी है कि कैसे और क्यों युवा लड़कियों की कई बार तस्करी की जाती है; गरीबी का वह कुचक्र जो उन्हें गांवों से बाहर निकलने पर मजबूर करता है; और क्यों सिर्फ उनका रेस्क्यू कर देने भर से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती है.
'फिर से मेरी तस्करी की गई, मुझे इस बार पीटा गया'
18 वर्षीय लड़की ने अपने हाथों और पैरों के निशान दिखाए, जोकि गहरे घाव हैं लेकिन समय के साथ भर रहे हैं. जिन्होंने उसकी तस्करी की थी उनके खिलाफ स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की गई थी, लेकिन इस मामले के बारे में उस लड़की के पास कोई अपडेट नहीं है.
वह कहती है कि "अब मुझे मर्दों (पुरुषों) से डर लगने लगा है. मैं सिर्फ औरतों से ही बात करती हूं... रात में कभी-कभी मुझे दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई देती है. मुझे लगता है कि यह उन लोगों के रिश्तेदारों द्वारा किया जा रहा है जिन्होंने मेरी तस्करी की थी. जब से मैं पुलिस के पास गई हूं उसके बाद से वे मुझे परेशान करने के लिए ऐसा कर रहे हैं."
यह 18 वर्षीय लड़की उस नाबालिग लड़की के गांव के पास रहती है जिसकी कहानी हमने पहले भाग में बताई थी. जिसे फरवरी की शुरुआत में हरियाणा के गुरुग्राम में उसके मालिक के घर से रेस्क्यू किया गया था. कथित तौर पर मालिक द्वारा उस नाबालिग पर महीनों तक जुल्म किया गया था. 18 फरवरी को द क्विंट ने उस नाबालिग और उसकी मां के साथ दिल्ली से झारखंड तक की यात्रा की.
उस नाबालिग और इस 18 वर्षीय लड़की की कहानी एक जैसी ही है. वे दाेनों ही गोंड जनजाति से हैं, उनके घर में पैसा नहीं है और दोनों की तस्करी करके बड़े शहरों में ले जाया गया जहां उनके साथ मारपीट की गई.
ललिता कुमारी सिमडेगा पुलिस में सब-इंस्पेक्टर हैं. जोकि गुरुग्राम में नाबालिग को छुड़ाने वाली एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) का भी हिस्सा हैं. उन्होंने द क्विंट को बताया कि
यहां हर दूसरे घर में कम से कम एक लड़की है जिसकी तस्करी की जा चुकी है. जिले से हर साल सैकड़ों लड़कियों की तस्करी की जाती है. ऐसे में सवाल यह है कि क्यों यहां इतनी तस्करी होती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि क्योंकि इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं, यहां काफी ज्यादा गरीबी है. यहां माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे न केवल घर संभालने के लिए पैसा कमाएं, बल्कि इसलिए भी कमाएं कि लड़कियां अपना भरण-पोषण कर सकें.ललिता कुमारी, सब इंस्पेक्टर, सिमडेगा पुलिस
'शहर में नौकरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं'
18 वर्षीय लड़की की बात करें तो उसके घर की स्थिति काफी विकट थी, जो उसे हरियाणा और फिर पंजाब ले गई. वह कहती है कि “बचपन में ही पिता का साया मेरे सिर से उठ गया था. मैं अपनी मां के साथ अकेली रहती हूं... मेरी मां थोड़ी बहुत खेती करती है लेकिन हमारे पास ज्यादा जमीन नहीं है. हम बस जिंदा रहने का प्रबंध कर पाते हैं."
18 वर्षीय इस लड़की ने कहा कि उसके पास "शहरों में इन नौकरियों को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था." उसे नहीं पता था कि इन घरों के अंदर क्या है?
इसी बीच, सब-इंस्पेक्टर कुमारी कहती हैं कि झारखंड की रहने वाली युवा लड़कियों को छुड़ाने के लिए वह अक्सर दिल्ली आती हैं. कुमारी ने कहा कि "ज्यादातर मामलों में FIR दर्ज की जाती है, और वापस लाने के बाद कई लड़कियों को फिर से स्कूल में दाखिला दिलाया जाता है."
इस 18 वर्षीय लड़की ने स्कूल छोड़ दिया था, हालांकि वह अब पढ़ाई के लिए वापस स्कूल जाना चाहती है, लेकिन वह "घर छोड़ने से डरती है." फिलहाल इस समय उसकी दुनिया टूटे-फूटे घर और बाड़ी के आस-पास केंद्रित है.
रोते हुए उसने कहा कि "मैं काम या पढ़ाई करना चाहती हूं, लेकिन मुझे नहीं पता कि कैसे आगे बढ़ना है. मेरे साथ हमेशा ऐसा क्यों होता रहता है?"
'उसके कॉल नहीं आ रहे थे, डर था कि कहीं वह मर तो नहीं गई' : दिल्ली से लाई गई महिला के परिजन
यहां से कुछ किलोमीटर दूर दूसरे गांव में, द क्विंट ने एक 26 वर्षीय महिला से मुलाकात की. इस महिला ने दिल्ली के पीतमपुरा में काम के लिए घर छोड़ दिया था, हालांकि तीन साल तक वहां काम करने के बाद वह 2021 में अपने परिजनों के साथ वापस अपने गांव आ गई थी.
हालांकि जब उसने काम शुरू किया था तब वह नाबालिग नहीं थी, लेकिन वहां काम के दौरान युवती ने जो अनुभव किया उसने उसे काफी आघात पहुंचाया है. दिल्ली के जिस घर में वह थी वहां उसे एक बच्चे की देखभाल करना पड़ता था, यह काम करते हुए उसने तीन साल बिताए, लेकिन इन वर्षों में उसे केवल दो बार अपनी मां से बात करने की इजाजत दी गई थी.
इस युवती की 50 वर्षीय किसान मां ने कहा कि "हमने सोचा कि वह मर गई." इस युवती के दो भाई हैं और दोनों के पास एक एकड़ जमीन है, जिसमें वे साल में एक बार धान की खेती करते हैं.
अपने तीन कमरों के मिट्टी के घर में बैठी इस 26 वर्षीय युवती ने कहा कि जहां वह काम करती थी, वहां उसका मालिक उसे थप्पड़ मारता था. वह एक अजनबी शहर में अकेली और डरी हुई महसूस कर रही थी. ऐसे में उसने दिल्ली के उस घर में काम करने वाली दूसरी घरेलू सहायिका से गुप्त रूप से इस बारे में बात की. उन पलों को याद करते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए, वह कहती है कि "कभी-कभी हम तालमेल बिठाकर नीचे जाते थे... और फिर मैं उनके फोन से अपनी मां को कॉल करती थी."
'तस्करी करने वाले अनुसूचित जनजातियों, कमजोर समूहों को टारगेट करते हैं': NGO शक्ति वाहिनी
जब युवती ने दिल्ली से कॉल करके अपनी पीड़ा घरवालों को बताई तो यहां गांव में उसकी चाची ने शक्ति वाहिनी नामक एनजीओ को इस बारे में अलर्ट किया और नवंबर 2021 में उसे वापस घर लाया गया. वह युवती कहती है कि “तीन साल बाद जब मैं अपने परिवार से मिली, तब सभी रोने लगे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि आखिरकार मैं वापस अपने घर आ गयी हूं.”
इस युवती को रेस्क्यू किए जाने के बाद उसके मालिक ने उसे 60 हजार रुपये का भुगतान किया. लेकिन यह रकम उससे कहीं कम थी, जिसका वादा उसे नौकरी ऑफर करते वक्त किया गया था.
एनजीओ शक्ति वाहिनी तस्करी से रेस्क्यू किए गए लोगों को बचाने में मदद करता है. ऋषि कांत इस एनजीओ से जुड़े हुए है, उन्होंने द क्विंट को बताया कि "झारखंड में सबसे कमजोर समूहों, विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों के लोगों को तस्करों और प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा टारगेट किया जाता है."
उन्होंने कहा;
तस्करी करने वाले अक्सर समुदाय के भीतर के होते हैं. जिन लड़कियों की तस्करी की जाती है वे ज्यादातर आदिवासी समुदायों और निम्न-आय वाले परिवारों से होती हैं. वे इसलिए नौकरी स्वीकार कर लेती हैं क्योंकि वे अपने परिवार काे सहारा देना चाहती हैं और चूंकि रोजगार के अवसर बहुत कम हैं, इसलिए भी वे नौकरी के लिए हामी भर देती हैं.
'यह एरिया संघर्ष वाला जोन है, लोग चाहते हैं लड़कियां बाहर काम करें': तस्करी की गई महिला के परिजन
चूंकि गांव में काम के सीमित अवसर थे, इसलिए 26 वर्षीय युवती को काम के लिए दिल्ली जाना पड़ा.
वह कहती है कि "एक दिहाड़ी मजदूर के तौर पर मैं 250 रुपये कमाती थी. इसलिए जब मुझे तस्करों ने बताया कि अगर मैं दिल्ली चली जाती हूं तो मैं और ज्यादा कमा सकती हूं. तब मैं बिना किसी को बताए दिल्ली चली गई थी."
जब उसके परिवार वालों को इस बारे में पता चला तब उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं जताई थी. उसकी चाची ने द क्विंट को बताया कि
हम जिस क्षेत्र में रहते हैं वह संघर्ष वाला क्षेत्र (conflict zone) है. ऐसे में हमें चिंता थी कि कहीं वह नक्सलियों में न शामिल हो जाए जैसा कि हमारे गांव के कई लोग करते हैं. इसलिए हम चाहते थे कि वह कोई काम शुरू करें.जिस 26 वर्षीय युवती की तस्करी की गई थी उसकी चाची
ललिता देवी, जोकि सिमडेगा स्थित एनजीओ सखी मंडल के साथ काम करती हैं. उन्होंने इस ओर इशारा किया कि क्यों कई लड़कियों की फिर से तस्करी हो जाती है.
वे कहती हैं कि "हम रेस्क्यू की गई लड़कियों की काउंसलिंग करते हैं, ताकि वे दोबारा तस्करी का शिकार न हों. हम उन्हें कौशल-आधारित प्रशिक्षण भी देते हैं ताकि वे अपना जीविकोपार्जन करने के लिए कमा सकें... लेकिन यहां नौकरी के अवसर बहुत कम हैं. यह क्षेत्र महिलाओं के लिए कोई खास सुरक्षित नहीं है. यहां अभी भी जबरन बाल विवाह और डायन बताकर हत्या के कई सारे मामले हैं."
उन्होंने दावा करते हुए कहा कि "युवतियों को भी नक्सलियों में शामिल होने के लिए पैसों की पेशकश की जाती है... और, कभी-कभी, वे तस्करों के साथ शहरों में वापस चली जाती हैं."
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