दक्षिणी दिल्ली के हौजखास इलाके में ठगी की एक अजीबो-गरीब घटना सामने आई है. दो महिलाओं ने 10 सेकेंड में भारतीय फौज के रिटायर्ड कैप्टन से 40 हजार रुपये उड़ा दिए. कैप्टन नरेंद्र कुमार महाजन 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं.
पैसे निकालने पहुंचे थे नरेंद्र कुमार महाजन
पुलिस के मुताबिक, थाना हौजखास इलाके में यह घटना गुरुवार दोपहर करीब पौने दो बजे घटी. भारतीय फौज के रिटायर्ड कैप्टन नरेंद्र कुमार महाजन पत्नी एस. चंद्रा के साथ रहते हैं. पास ही स्थित सिंडीकेट बैंक में उनका बचत खाता है. गुरुवार को उन्होंने बैंक से 40 हजार रुपये निकाले. उसके बाद करीब ही मौजूद एटीएम से रुपये निकालने जा पहुंचे.
नरेंद्र महाजन एटीएम में जैसे ही घुसे और उन्होंने अपना कार्ड मशीन में डाला, पीछे से दो महिलाएं एटीएम केबिन के भीतर जा पहुंचीं. एटीएम में अचानक पहुंची महिलाओं में से एक ने महाजन को बातों में उलझा लिया. इतने में पीछे खड़ी महिला महज 10 सेकेंड में महाजन की जेब में मौजूद 40 हजार रुपये निकाल चुकी थी. रुपये हाथ लगते ही दोनों महिलाएं तेज कदमों से एटीएम के बाहर निकल गईं और वहां से रफूचक्कर हो गईं.
पूरी घटना सीसीटीवी में कैद
सेना का यह पूर्व कैप्टन जब तक कुछ समझ पाता और एटीएम से बाहर आया, तब तक दोनों ठग महिलाएं फरार हो चुकी थीं. फिलहाल इस सिलसिले में हौजखास पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. ठगी का मामला सीसीटीवी में कैद हो गया है. अब दक्षिणी जिला पुलिस ठग महिलाओं की तलाश में अंधेरे में हाथ-पांव मार रही है.
ठगी के इस मामले में हालांकि दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता और मध्य दिल्ली जिले के डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा से बात करने की कोशिश की गई, मगर उनकी तरफ से कोई जबाब नहीं मिला. कैप्टन महाजन ने 1971 के युद्ध की घटना को याद करते हुए बताया,
“सन 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग के दौरान मैं 56 माउंटेन रेजीमेंट में तैनात था. मेरी पोस्टिंग मेघालय में थी. मुझे लड़ाई के दौरान फॉरवर्ड आब्जर्वर अफसर बनाकर ढाका बार्डर पार करने के लिए भेजा गया था. वह मेरा स्पेशल टास्क था. बीच में ही मैं कई अन्य अफसरों के साथ गोलियों का शिकार बन गया. मेरे निचले जबड़े, पीठ, कमर और गर्दन में गोलियां घुसी हुई थीं.”
राष्ट्रीय राजधानी में इस तरह से ठगे जाने से हैरान भारतीय सेना के इस जांबाज ने आगे कहा, "मुझे मुर्दा समझकर बाकी मुर्दों के बीच में लिटा दिया गया था, ताकि मेरे शव को पैकिंग करके कफन में बांधकर घर भिजवाया जा सके. उसी समय मेरे बदन में हुई मामूली हरकत देखकर मौके पर मौजूद भारतीय फौज की नर्स रहीं लेफ्टिनेंट एस. चंद्रा (अब पत्नी नमिता महाजन) ने मुझे लाशों के बीच से उठवाकर प्राथमिक उपचार देकर बचा लिया. अब हम दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं."
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