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EGI को 'सुप्रीम' राहत, मणिपुर मामले में सदस्यों की गिरफ्तारी पर 15 सितंबर तक रोक

मणिपुर पुलिस ने EGI की रिपोर्ट को जातीय हिंसा के संबंध में कथित तौर पर 'पक्षपातपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से गलत' बताते हुए मामला दर्ज किया है.

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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (Editors Guild Of India) के अध्यक्ष और तीन संपादकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. कोर्ट ने 11 सितंबर को सुनवाई करते हुए उनकी गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा देने के आदेश को 15 सितंबर तक बढ़ा दिया है.

मणिपुर (Manipur) पुलिस ने EGI की रिपोर्ट को जातीय हिंसा के संबंध में कथित तौर पर 'पक्षपातपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से गलत' बताते हुए मामला दर्ज किया है.

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दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर हो सकती है याचिका?

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने EGI की याचिका पर 6 सितंबर को पारित अपने आदेश के क्रियान्वयन को सुनवाई की अगली तारीख 15 सितंबर तक बढ़ा दिया. पीठ ने संकेत दिया कि वह FIR और अन्य सहायक राहत को रद्द करने की मांग वाली याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर सकती है.

राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई की शुरुआत में जोर देते हुए कहा कि EGI सदस्यों को कुछ और समय के लिए सुरक्षा प्रदान की जा सकती है और इस मामले को अन्य मामलों की तरह मणिपुर हाईकोर्ट में भेजा जाए.

मौजूदा याचिका को गलत समझा गया है, क्योंकि प्रभावी उपाय के लिए उचित मंच उच्च न्यायालय है. उच्च न्यायालय और इसकी पीठें नियमित रूप से काम कर रही हैं और वादियों और वकीलों को दैनिक आधार पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने का विकल्प दिया गया है.
तुषार मेहता, सॉलिसिटर जनरल

एसजे तुषार मेहता ने आगे कहा कि याचिका को मणिपुर के पड़ोसी किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है. क्योंकि इसे "राष्ट्रीय या राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए.

कपिल सिब्बल ने विरोध किया

वहीं, ईजीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और श्याम दीवान ने तुषार मेहता के विचार का विरोध किया. उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत में ही की जानी चाहिए, क्योंकि एफआईआर एक तथ्य-खोज रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई है. कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार केवल एक रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए तीन सदस्यीय तथ्य-खोज टीम के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती.

मेरा आपसे अनुरोध है कि हमें इस मामले को यहां उच्च न्यायालय (दिल्ली हाईकोर्ट का संदर्भ देते हुए) में मुकदमा चलाने की अनुमति दें. वहां (मणिपुर हाईकोर्ट में) वकील पीछे हट रहे हैं. इस समय वहां पहुंचना हमारे लिए खतरनाक है.
कपिल सिब्बल (वरिष्ठ अधिवक्ता)

पीठ ने स्पष्ट किया कि वह FIR को रद्द करने का निर्देश नहीं देगी और केवल इस बात पर विचार कर रही है कि क्या याचिकाकर्ताओं को मणिपुर हाईकोर्ट में बुलाया जाना चाहिए या उनकी याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित की जानी चाहिए.

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शीर्ष अदालत ने पुलिस को कठोर कदम न उठाने का आदेश दिया

न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने मामले को 15 सितंबर तक के लिए स्थगित करते हुए कहा कि “उन्होंने एक रिपोर्ट बनाई है. यह उनकी व्यक्तिपरक राय पर आधारित हो सकता है. यह उन मामलों में से एक नहीं है, जिसमें किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया हो. उन्होंने जमीन पर जाकर एक रिपोर्ट तैयार की और प्रकाशित की.”

शीर्ष अदालत ने 6 सितंबर को पारित अपने आदेश में नोटिस जारी किया और मणिपुर पुलिस को निर्देश दिया कि वह सुनवाई की अगली तारीख 15 सितंबर तक ईजीआई के अध्यक्ष और तीन संपादकों - सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाए.

सुप्रीम कोर्ट EGI सदस्यों द्वारा दायर रिट याचिका पर तत्काल सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया था. बता दें कि EJI ने जातीय हिंसा और परिस्थितिजन्य पहलुओं की मीडिया रिपोर्टों का अध्ययन करने के लिए पिछले महीने पूर्वोत्तर राज्य का दौरा किया था और बाद में नई दिल्ली में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसमें दावा किया गया था कि मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया की रिपोर्टें एकतरफा थी और इस मामले में राज्य सरकार का रवैया पक्षपातपूर्ण रहा है.

24 पेज की ईजीआई रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष और सिफारिशों में कहा है, "इसे जातीय संघर्ष का पक्ष लेने से बचना चाहिए था, लेकिन यह एक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रही."

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