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12 घंटों की शिफ्ट का प्रस्ताव: मौजूदा नियम, विदेशों में क्या हाल?

केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने संसद में दिया काम के घंटे बढ़ाने का प्रस्ताव

Published
भारत
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अब भारत में कर्मचारियों के काम करने के घंटों को बढ़ाया जा सकता है और कंपनियां 12 घंटे तक उनसे काम करवा सकती हैं. श्रम मंत्रालय की तरफ से संसद में एक प्रस्ताव दिया गया है, जिसमें काम करने के अधिकतम घंटे 12 करने की सिफारिश की गई है. अब तक कानूनी तौर पर काम करवाने के अधिकतम घंटो की सीमा 10.5 है. जिसे अब केंद्र सरकार बढ़ाने पर विचार कर रही है. इसे लेकर अब विवाद भी बढ़ सकता है.

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क्या कहता है श्रम मंत्रालय का प्रस्ताव?

हालांकि ऐसा नहीं है कि 12 घंटे काम करने पर सैलरी 8 या 9 घंटे वाली ही मिलेगी. प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर कंपनी 12 घंटे काम करवाती है तो इसके लिए कर्मचारियों को ओवर टाइम दिया जाएगा. नए प्रस्ताव के मुताबिक-

  • कंपनी किसी भी कर्मचारी से एक हफ्ते में सिर्फ 48 घंटे तक ही काम करवा सकती है

  • किसी भी कर्मचारी से 12 घंटे से अधिक काम नहीं करवाया जा सकता है

  • 12 घंटे काम करने पर या तो हफ्ते में सिर्फ 4 दिन काम करना होगा, या फिर इसका ओवरटाइम मिलेगा

  • अगर कोई तय घंटों से ज्यादा 15 मिनट भी काम करता है तो उसे 30 मिनट का ओवरटाइम गिना जाएगा (मौजूदा नियम में 30 मिनट से कम का समय ओवरटाइम नहीं माना जाता)

बता दें कि कर्मचारियों से काम करवाने के मौजूदा नियम में साफ कहा गया है कि एक दिन में 8 घंटे ही काम करवाया जा सकता है. ऑक्युपेशनल सेफ्टी हेल्थ कोड एक्ट 2020 मुताबिक- किसी भी कर्मचारी को एक दिन में 8 घंटे से ज्यादा काम करने की जरूरत नहीं है, कंपनी या एम्पलॉयर को इसकी इजाजत नहीं है.

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12 घंटे काम करने से क्या होगा?

अब बात करते हैं विवाद की, केंद्रीय श्रम मंत्रालय की तरफ से दिए गए इस प्रस्ताव को लेकर अब कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं. जानकारों का कहना है कि इससे कहीं न कहीं लोगों की जिंदगी पर असर पड़ेगा. क्योंकि अगर ये प्रस्ताव पास होता है तो सभी कंपनियां और फैक्ट्री मालिक अपने मजदूरों और कर्मचारियों को 12 घंटे काम करने को लेकर मजबूर कर सकते हैं. ऐसे में अगर इसमें ट्रैवल टाइम को भी शामिल कर लिया जाए तो शहरो में ये आसानी से 1 से लेकर 2 घंटे का होता है. यानी 14 से 15 घंटे के बाद कर्मचारी अपने घर पहुंचेंगे. जो उनके और उनके परिवार के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इसके अलावा शिफ्ट में काम करने वाले दफ्तरों पर भी इसका असर दिखेगा, जहां पर तीन शिफ्टों में काम होता है, वहां इसके बाद दो ही शिफ्ट में काम लिया जाएगा.

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध जताया है और कहा है कि 12 घंटे काम करने के प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए. साथ ही कहा जा रहा है कि ये नियम इंटरनेशन लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) कन्वेंशन की शर्तों के खिलाफ है.

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क्या कहता है ILO कन्वेंशन

मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए ILO बनाया गया था. इसका उद्देश्य मजदूरों की दशा को सुधारने और उन्हें पूर्ण रोजगार देने के लिए अलग-अलग कदम उठाने का है. इसके तहत काम के घंटों के नियमन, श्रम आपूर्ति के विनियमन, बेरोजगारी के निवारण, पर्याप्त श्रम मूल्य की व्यवस्था, कार्य से संबंधित खतरो से मजदूरों की सुरक्षा, समान कार्य के लिए समान मजदूरी जैसे कई नियम बताए गए हैं. साथ ही इन सभी मामलों का अगर उल्लंघन होता है तो उसकी शिकायत आईएलओ को की जाती है.

अब आईएलओ के नियमों के मुताबिक किसी भी इंडस्ट्रियल वर्कर से एक दिन में 8 घंटे और हफ्ते में सिर्फ 48 घंटे ही काम लिया जा सकता है. ऐसे काम जहां पर तुरंत दूसरी शिफ्ट को काम करना होता है वहां हफ्ते में 56 घंटे तक काम कराया जा सकता है. इसके नियमों के मुताबिक 15 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में 57 घंटे काम कराया जा सकता है, वहीं 15 साल से कम उम्र पर 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता.
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बाकी देशों में कितने घंटे होता है काम?

जर्मनी में कर्मचारियों से 1 साल में कुल 1388 घंटे काम लिया जाता है. यानी हफ्ते में करीब 28 घंटे ही लोग काम करते हैं. वहीं न्यूजीलैंड में एक हफ्ते में करीब 33 घंटे काम किया जाता है. अमेरिका की अगर बात करें तो यहां भी करीब 34 घंटे हर हफ्ते लोग काम करते हैं. इजराइल में 36 घंटे, रूस में करीब 38 घंटे और फ्रांस में हर हफ्ते करीब 30 घंटे काम लिया जाता है. स्वीडन, ऑस्ट्रिया और स्विटजरलैंड में औसतन 32 घंटे का काम एक हफ्ते में कराया जाता है.

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