प्राइवेसी को लेकर एक बार फिर बहस तेज है. इस बीच एक पुरानी आरटीआई याचिका भी सुर्खियां बटोर रही है. इस RTI के जरिए ये पता लगा था कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान हर महीने करीब 9 हजार फोन और 500 ई-मेल इंटरसेप्ट किए जाते थे यानी निगरानी पर होते थे.
अगस्त, 2013 में दाखिल की गई एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया था कि करीब 7500-9000 फोन कॉल और 300-500 ईमेल को इंटरसेप्ट किए जाने के आदेश दिए जाते हैं.
इसी आरटीआई में ये भी पूछा गया था कि वो कौन सी एजेंसियां हैं जो इन फोन कॉल्स और ईमेल को निगरानी में रखती हैं. जवाब के मुताबिक, ऐसे अधिकार इंटेलीजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स सेंट्रल ब्यूरो, ED, CBDT, DRI, CBI, NIA, RAW के पास थे.
ये वही सुरक्षा एजेंसियां हैं जिन्हें हाल ही में गृह मंत्रालय के एक नोटिफिकेशन में कंप्यूटर की गतिविधियों पर नजर रखने के अधिकार मिले हैं.
क्यों चर्चा में है निगरानी का मामला?
दरअसल, हाल ही में गृह मंत्रालय की तरफ से एक नोटफिकेशन जारी हुआ. इसके मुताबिक, 10 केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों को देश के किसी भी कंप्यूटर की गतिविधियों पर नजर रखने के अधिकार मिले हैं.ये एजेंसियां आपके कंप्यूटर की ओर से जेनरेट,रिसीव और स्टोर की गई सूचनाओं पर नजर रख कर उन्हें बीच में रोक सकती है. इन सूचनाओं की निगरानी हो सकती है और इन्हें डिक्रिप्ट (डी कोड) भी किया सकता है.
इस नोटिफिकेशन के बाद से ही कई विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोल रही हैं. इसे सुरक्षा के नाम पर जासूसी बताया जा रहा है. वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार की सफाई में कहा कि ये नियम 2009 में बनाया गया था. इसमें आम लोगों पर निगरानी जैसी कोई बात ही नहीं है.
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