अपना कंप्यूटर संभालिए सरकार की निगाहें वहां तक पहुंच गई हैं. गृहमंत्रालय के मुताबिक दस केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियां को आपके कंप्यूटर की गतिविधियों पर नजर रखने के अधिकार मिल सकते हैं. ये एजेंसियां आपके कंप्यूटर की ओर से जेनरेट,रिसीव और स्टोर की गई सूचनाओं पर नजर रख कर उन्हें बीच में रोक सकती है. इन सूचनाओं की निगरानी हो सकती है और इन्हें डिक्रिप्ट (डी कोड) भी किया सकता है.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, "एमएचए के आदेश पर कंप्यूटरों की निगरानी के लिए 10 कंपनियों को इजाजत दी गई है. रविशंकर प्रसाद ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला बताया और कहा कि इस कानून को साल 2009 में मनमोहन सिंह सरकार ने बनाया था. इस कानून से जुड़े हर मामले को मंजूरी गृह सचिव को देनी है.''
गृह मंत्रालय के अलावा जिन एजेंसियों को लोगों के कंप्यूटर पर निगरानी रखने का अधिकार दिया जा सकता है, उनमें इंटेलिजेंस ब्यूरो, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, सीबी़डीटी, द डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, एनआईए, कैबिनेट सेक्रेट्रियाट (रॉ), द डायरेक्टरेट ऑफ सिगनल इंटेलिजेंस (सिर्फ जम्मू-कशमीर और पूर्वोत्तर तक सीमित) और दिल्ली पुलिस कमिश्नर शामिल हैं.
सुरक्षा के नाम पर जासूसी
आईटी एक्ट की धारा 69 के तहत इन एजेंसियों को निगरानी के अधिकार दिए जा सकते हैं. सेक्शन 69 कंट्रोलर ऑफ सर्टिफाइंग अथॉरिटीज को सरकारी एजेंसियों को कंप्यूटर के जरिये भेजी गई सूचनाओं को बीच में रोकने का अधिकार देता है. खास कर तब जब देश की संप्रभुता, एकता और सुरक्षा को खतरा हो. या फिर मित्र देशों से रिश्तों का मामला हो. अपराध रोकने और व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस धारा का इस्तेमाल होता है.
विपक्षी दलों ने सरकार की इस कोशिश की जम कर विरोध किया है. विपक्ष का कहना है कि यह लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है. सीनियर कांग्रेस लीडर अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा कि फोन कॉल्स और कंप्यूटर की जासूसी अधिकार देने की सरकार की कोशिश बेहद चिंताजनक है. इसका दुरुपयोग हो सकता है. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी इस पर चिंता जताई है.
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे निजता पर हमला बताया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा “अबकी बार निजता पर वार.”
अशोक गहलोत ने सरकार के इस कदम की जम कर आलोचना की. उन्होंने कहा कि अब जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनता की जासूसी करेगी. मोदी सरकार कैसा स्टेट बनाना चाहती है.
एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि अब समझ में आया की 2014 के अभियान में घर-घर मोदी का क्या मतलब था? 'घर-घर मोदी का मतलब आपके कंप्यूटर में झांकना है. समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने सरकार के इस कदम को असंवैधानिक बताया.
कंप्यूटर डेटा की निगरानी पर छिड़े विवाद को लेकर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा कि यह नियम 2009 में बनाया गया था. उन्होंने कहा, ''समय-समय पर इस तरह की जांच के लिए एजेंसियों को नियुक्त किया जाता रहा है. इसमें आम लोगों पर निगरानी जैसी कोई बात ही नहीं है. विपक्ष मामले को राई का पहाड़ बना रहा है.''
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