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127 आधार धारकों के नोटिस पर UIDAI की सफाई, नागरिकता से संबंध नहीं

असदुद्दीन ओवैसी ने भी UIDAI के नोटिस पर उठाया सवाल

Published
भारत
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यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) ने 127 लोगों को आधार के लिए फर्जी दस्तावेज देने के आरोप में नोटिस भेजा है. जिसमें उनकी नागरिकता को लेकर सवाल भी उठाए गए थे. अब इस मामले पर UIDAI ने सफाई दी है.

(UIDAI) ने मंगलवार को कहा कि उनकी हैदराबाद ऑफिस ने कथित तौर पर गलत तरीका अपनाकर आधार नंबर हासिल करने वाले 127 लोगों को नोटिस भेजा है. लेकिन इसका नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है. UIDAI के मुताबिक ये नोटिस पुलिस की रिपोर्ट के बाद जारी किया गया है.

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हालांकि UIDAI ने 3 फरवरी को जारी नोटिस में लिखा था कि- ‘हैदराबाद में रिजनल ऑफिस को शिकायत मिली है कि आप भारत के नागरिक नहीं थे. आपने गलत जानकारी देकर और फर्जी दस्तावेज दिखाकर आधार नंबर हासिल किया है. इसलिए वास्तविक दस्तावेज के साथ रिजनल ऑफिस में पेश हों.’ लेकिन अब UIDAI ने इसे नागरिकता से ना जोड़ने की बात कही है.

“आधार नंबर नागरिकता का दस्तावेज नहीं”

UIDAI ने अपने स्टेटमेंट में कहा, “आधार नागरिकता का दस्तावेज नहीं है और आधार एक्ट के तहत आधार के लिए आवेदन करने से पहले किसी व्यक्ति को 182 दिनों के लिए भारत में रहना अनिवार्य किया गया है.” UIDAI के मुताबिक,

हैदराबाद रिजनल ऑफिस को राज्य पुलिस से एक रिपोर्ट मिली थी, जिसमें कहा गया था कि 127 लोगों ने फर्जीवाड़ा कर आधार हासिल किया है, क्योंकि उनकी प्रारंभिक जांच में वे अवैध अप्रवासी पाए गए, जो आधार नंबर हासिल करने के लिए योग्य नहीं थे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में यूआईडीएआई को निर्देश दिया था कि किसी भी अवैध अप्रवासियों को आधार जारी नहीं किया जाएगा.

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'UIDAI के पास राष्ट्रीयता पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं'

बता दें कि हैदराबाद में 40 साल के एक ऑटो-रिक्शा चालक को यूआईडीएआई ने नोटिस भेजा है. शिकायत में उसका आधार कार्ड नकली बताया गया है. रिक्शा चालक सत्तार को UIDAI के अधिकारी के सामने पेश होने को कहा गया है. सत्तार खान के वकील मुजफ्फरुल्लाह खान शफात ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को बताया कि यूआईडीएआई के पास किसी भी व्यक्ति की राष्ट्रीयता पर सवाल उठाने की शक्ति नहीं है.

“अगर कोई व्यक्ति बिना पर्याप्त जानकारी दिए या किसी दूसरे तरीके से आधार कार्ड पाता है, तो उसके आधार नंबर को डीएक्टीवेट करने के लिए नियम 29 और 30 के तहत शक्तियां हैं, लेकिन वे किसी भी व्यक्ति की राष्ट्रीयता पर सवाल नहीं उठा सकते हैं. यहां तक कि आधार कार्ड बनाने के समय भी मेरी पहचान स्थापित करने के लिए कोई प्रक्रिया नहीं है. सिर्फ एक चीज यह है कि मुझे अपनी जन्म की तिथि देनी होगी, यहां तक कि जन्म की जगह की भी आवश्यकता नहीं होगी. इस बात को ध्यान में रखते हुए इन लोगों (UIDAI) को किसी भी व्यक्ति की नागरिकता साबित करने के लिए पूछने का कोई अधिकार नहीं है.”
मुजफ्फरुल्लाह खान शफात, सत्तार खान के वकील

उन्होंने आगे कहा कि उन लोगों को नोटिस जारी किए गए हैं जो "शिक्षित नहीं हैं.” शफात कहते हैं, “वे अपना नाम पढ़ना और लिखना भी नहीं जानते हैं. वे दिहाड़ी मजदूर हैं. उन्हें जो भी काम मिलेगा वो करेंगे. वे अपने परिवार को चलाने वाला अकेला शख्स है.”

ओवैसी ने भी उठाए सवाल

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी UIDAI की नागरिकता के प्रमाण मांगने के अधिकार पर सवाल उठाया है. उन्होंने इसे "अवैध और अस्वीकार्य बताया है.

आधार अधिनियम की धारा 9 में कहा गया है कि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है. नागरिकता का प्रमाण मांगने के लिए UIDAI को क्या कानूनी अधिकार है? नोटिस में उन आधारों का भी उल्लेख नहीं किया गया है जिन पर उन्हें जारी किया गया था. यह गैरकानूनी और अस्वीकार्य है.
असदुद्दीन ओवैसी, सांसद

बता दें कि नोटिस में सभी 127 लोगों को 20 फरवरी को इन्क्वॉयरी ऑफिसर के दफ्तर में पेश होने साथ ही सभी ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स दिखाने को कहा गया था. लेकिन उन्हें आधार को प्राप्त करने के लिए अपने मूल दस्तावेज एकत्र करने में कुछ और समय लग सकता है, जैसा कि राज्य पुलिस द्वारा कहा गया है, यूआईडीएआई ने सुनवाई मई 2020 तक के लिए स्थगित कर दी है.

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