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आरुषि मर्डर केसः 3 थ्योरी, 9 साल, एक सवाल, कातिल कौन?

यूपी पुलिस और सीबीआई की दो अलग-अलग टीमों ने दी थी अपनी-अपनी थ्योरी

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भारत
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरुषि हत्याकांड में नूपुर तलवार और राजेश तलवार को सबूतों के अभाव में आरोपों से बरी कर दिया. इसके साथ ही 9 साल बाद एक बार फिर वही सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर आरुषि-हेमराज का हत्यारा कौन है?

साल 2008 में नोएडा के जलवायु विहार में आरुषि-हेमराज हत्याकांड हुआ. उत्तर प्रदेश पुलिस से लेकर सीबीआई तक ने इस केस की गुत्थी सुलझाने की कोशिश की. हत्यारे की तलाश में सीबीआई ने जब तथ्य खंगाले, तो शक की सुई घूमकर तलवार दंपति पर ही जा टिकी. जांच रिपोर्ट पेश की गई और सीबीआई कोर्ट ने तलवार दंपति को दोषी ठहराते हुए जेल भेज दिया.

हाईकोर्ट के फैसले के बाद ये गुत्‍थी एक बार फिर वहीं पहुंच गई, जहां से यूपी पुलिस और सीबीआई की दो अलग-अलग टीमों ने जांच शुरू की थी. आइए, जानते हैं 15-16 मई 2008 की रात में नोएडा के सेक्टर-25, जलवायु विहार में डॉक्टर दंपति की बेटी आरुषि और उनके नौकर हेमराज के मर्डर केस में किस पक्ष की क्या दलील थी?

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आरुषि मर्डर में यूपी पुलिस की थ्योरी

  • 16 मई 2008 की सुबह 14 साल की आरुषि तलवार का शव उनके बेडरूम से मिला. जानकारी होने पर स्थानीय थाना पुलिस मौके पर पहुंची.
  • पुलिस ने शुरुआती जांच में पाया कि आरुषि के गले को किसी धारदार हथियार से काटा गया था.
  • आरुषि की हत्या का शक घरेलू नौकर हेमराज पर जताया गया. पुलिस ने जांच शुरू की और 17 मई को हेमराज का शव उसी बिल्डिंग के टैरेस पर मिला.
  • मामले को जोर पकड़ता देख पुलिस ने 23 मई को आरुषि के पिता डॉ. राजेश तलवार को आरुषि और हेमराज की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.
आरुषि की हत्या के एक हफ्ते बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने दावा किया था कि उसने इस डबल मर्डर केस को सुलझा लिया है. 23 मई 2008 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक गुरदर्शन सिंह ने कहा था, ‘आरुषि की हत्या इसलिए की गई, क्योंकि आरुषि को अपने पिता के एक साथी डेंटिस्ट के साथ कथित अंतरंग संबंधों पर आपत्ति थी. इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में गुरदर्शन सिंह ने कहा कि आरुषि की हत्या इसलिए हुई, क्योंकि उसके हेमराज के साथ ‘नजदीकी संबंध’ थे.
यूपी पुलिस और सीबीआई की दो अलग-अलग टीमों ने दी थी अपनी-अपनी थ्योरी
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तत्कालीन सीएम मायावती ने की थी CBI जांच की सिफारिश

इस केस में हत्या के आरोपी के तौर पर पिता की ही गिरफ्तारी होने के बाद काफी हो हल्ला मचा. जब यूपी पुलिस की जांच पर सवाल उठा, तो 29 मई 2008 को तत्कालीन सीएम मायावती ने इस केस की जांच सीबीआई से कराए जाने की सिफारिश की.

CBI की पहली टीम ने कंपाउंडर कृष्णा और दो नौकरों को बनाया आरोपी

  • जून 2008 में सीबीआई ने इस केस की जांच अपने हाथ में ले ली
  • 10 जून 2008 को हिरासत में लिए गए डॉ. तलवार के कंपाउंडर कृष्णा का लाई डिटेक्टर टेस्ट किया गया. उसे नार्को टेस्ट के लिए बेंगलुरु ले जाया गया.
  • 13 जून 2008 को नार्को टेस्ट के बाद सीबीआई ने कृष्णा को गिरफ्तार किया. उस पर हत्या का आरोप लगाया गया.
  • बाद में हेमराज के दोस्त दो अन्य नौकर राजकुमार और विजय मंडल को भी गिरफ्तार किया गया
  • सीबीआई ने तीनों को डबल मर्डर का आरोपी बनाया
  • 11 जुलाई 2008 को सीबीआई ने कहा कि डॉ. राजेश बेगुनाह हैं और असली कातिल कंपाउंडर कृष्णा है
  • 12 जुलाई 2008 को राजेश तलवार को गाजियाबाद की डासना जेल से जमानत पर रिहा कर दिया गया.

सीबीआई के ज्वॉइंट डायरेक्टर अरुण कुमार सिंह की टीम ने डॉ. तलवार के डेंटल क्लिनिक पर काम कर चुके कंपाउंडर कृष्णा, तलवार के नजदीकी दुर्रानी दंपति के नौकर राजकुमार और पड़ोस में काम करने वाले विजय मंडल को हत्याकांड का आरोपी माना. हालांकि सीबीआई 90 दिनों तक इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी. लिहाजा कृष्णा, राजकुमार और विजय मंडल को सीबीआई कोर्ट से जमानत मिल गई.

साल 2009 में आरुषि-हेमराज मर्डर केस की जांच के लिए पहली टीम को हटाकर सीबीआई की दूसरी टीम लगाई गई.
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CBI की सेकेंड टीम ने तलवार दंपति को बनाया आरोपी

सितंबर 2009 में सीबीआई की दूसरी टीम ने डॉ. तलवार का नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराया और 29 दिसंबर को सीबीआई ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दायर की. इसमें नौकर को क्लीनचिट दे दी गई, जबकि तलवार दंपति को इस केस का मुख्य आरोपी करार दिया गया.

  • सितंबर 2009 में इस केस की जांच सीबीआई की दूसरी टीम को सौंप दी गई.
  • इस टीम ने तीनों नौकरों को क्लीनचिट दी और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर तलवार दंपती को ही संदिग्ध माना.
  • सीबीआई ने दलील दी कि जोर जबरदस्ती किए जाने के कोई सबूत नहीं मिले.
  • सीबीआई की इस टीम ने तर्क दिया कि वारदात के बाद आरुषि के शव को ढकने, बिस्तर पर चादर को ठीक करने और हेमराज की बॉडी को छिपाने का काम कोई बाहरी नहीं करेगा.
  • हालांकि, इस टीम ने माना कि हेमराज का खून दंपति के कपड़ों पर नहीं मिला.
  • सीबीआई की इस टीम को वारदात में सीधे तौर पर तलवार दंपति के शामिल होने के कोई सबूत नहीं मिले.
  • 30 महीने की जांच के बाद दिसंबर 2010 में सीबीआई ने अदालत से कहा कि उसे विश्वास है कि इस हत्या में डॉक्टर तलवार मुख्य संदिग्ध हैं लेकिन बिना किसी ठोस सबूत और मंशा के कारण वो मामले को बंद करना चाहती है.
  • इस पर कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को ही चार्जशीट में तब्दील कर तलवार दंपति पर केस चलाने के आदेश दिए
  • 28 नवंबर 2013 को आरुषि के माता-पिता को दोषी मानते हुए सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई

12 अक्टूबर 2017 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरुषि-हेमराज मर्डर केस में नूपुर और राजेश तलवार को यह कहते हुए बरी कर दिया कि परिस्थितियां और सबूत उन्हें दोषी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.

हाई कोर्ट के 263 पन्नों के फैसले ने 9 सालों से चल रही नोएडा के डेंटिस्ट दंपति की मुश्किलों को कम से कम फिलहाल के लिये खत्म कर दिया है. लेकिन इस फैसले के बाद यह सवाल एक बार फिर खड़ा हो गया है कि आरुषि-हेमराज का हत्यारा कौन है?

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