जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने अडल्टरी कानून को खारिज करने के साथ एक और ऐतिहासिक काम किया है. उन्होंने अपने ही पिता के 33 साल पुराने फैसले को गलत ठहराते हुए उसे पलट दिया.
साल 1985 में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ ने आईपीसी की धारा 497 के तहत अडल्टरी को बरकरार रखा था और कहा था कि ये असंवैधानिक नहीं है.
पांच जजों की बेंच में शामिल थे जस्टिस चंद्रचूड़
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसले में अडल्टरी को खारिज कर दिया. बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एम खानविल्कर, जस्टिस नरीमन, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थे.
दूसरी बार पलटा अपने पिता का फैसला
ये दूसरा मौका है जब डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने पिता वाई.वी. चंद्रचूड़ के ही फैसले को गलत ठहराते हुए उसे पलट दिया.
इससे पहले अगस्त 2017 में निजता के अधिकार के मामले में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने पिता के चर्चित एडीएम जबलपुर केस में दिए उनके फैसले को पलट दिया था. दरअसल, जिन मामलों पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार मानने का फैसला दिया था उनमें से एक एडीएम जबलपुर मामला भी था.
डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सुनवाई के वक्त ये भी कहा था- एडीएम जबलपुर केस में बहुमत के साथ सभी चार जस्टिस की ओर से दिया गया फैसला गंभीर रूप से दोषपूर्ण है.
साल 1976 के एडीएम जबलपुर केस में कहा गया था कि इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. ये फैसला देने वाले बेंच के सदस्यों में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के पिता वाई. वी. चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एच आर खन्ना, एम एच बेग और पी एन भगवती शामिल थे. चीफ जस्टिस ए एन राय की देखरेख में मामले की सुनवाई हुई थी.
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