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नॉर्थ ईस्ट में AFSPA का दायरा घटा, एक्टिविस्ट बोले-थोड़ा नहीं पूरा हटे

AFSPA हटाने के लिए 16 सालों तक अनशन करने वाली इरोम शर्मिला ने क्या कहा?

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एक अप्रैल 2022 से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानी AFSPA नॉर्थ ईस्ट राज्य- नागालैंड, असम और मणिपुर के कई हिस्सों से हट गया है. केंद्र सरकार ने नगालैंड, असम और मणिपुर में AFSPA के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है. इस बात का ऐलान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च को किया था. सरकार के इस फैसले का कई लोगों ने स्वागत किया है तो कई एक्टिविस्ट इसे अधूरी जीत बता रहे हैं.

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गृह मंत्री के ऐलान के बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट करते हुए कहा कि मैं 9 जिलों और 1 उपखंड को छोड़कर असम के सभी क्षेत्रों से AFSPA वापस लेने के फैसले का स्वागत करता हूं. हिमंत बिसवा सरमा के अलावा मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह समेत, अरुणाचल प्रदेश से आने वाले मोदी सरकार के कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी इस फैसले की सराहना की.

AFSPA हटाने के लिए 16 सालों तक अनशन करने वाली इरोम शर्मिला ने क्या कहा?

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट को हटाने की मांग को लेकर 16 सालों तक अनशन करने वाली सोशल एक्टिविस्ट इरोम शर्मिला ने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा, 'यह लोकतंत्र की वास्तविक पहचान है.' इरोम शर्मिला ने नवंबर 2000 से अगस्त 2016 तक भूख हड़ताल किया था.

इरोम शर्मिला ने सिर्फ फैसले का स्वागत ही नहीं किया बल्कि मांग उठाई कि कुछ इलाकों से ही नहीं बल्कि पूर देश से इस कानून को हटाया जाए. इरोम शर्मिला ने कहा,

‘मेरे जैसे तमाम कार्यकर्ताओं के लिए यह बहुत अच्छा पल है. मुझे खुशी है कि देश के राजनेता अब पूर्वोत्तर के लिए कुछ अलग करना चाहते हैं. अंग्रेजों के समय का AFSPA हटाने का फैसला लोकतंत्र का असल संकेत है. यह दशकों चले संघर्ष के नतीजे में होने वाली नई शुरुआत है. पहला कदम उठा लिया गया है, मैं चाहती हूं कि पूरे पूर्वोत्तर से यह कानून हटाया जाए. इतना ही नहीं, इस कानून की वजह से जिन्होंने निजी तौर पर तकलीफें उठाईं, अपनों को खोया है, उन लोगों को मुआवजा भी दिया जाना चाहिए.’

मणिपुर वुमन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क एंड ग्लोबल अलायंस ऑफ इंडिजिनस पीपल्स की संस्थापक बिनालक्ष्मी नेपराम कहती हैं कि सिर्फ AFSPA को कम कर देना ही सही कदम नहीं है, बल्कि इसे निरस्त करना सही कदम होगा. क्योंकि भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में 45 मिलियन स्वदेशी लोगों पर ब्रिटिश औपनिवेशिक मार्शल लॉ को लागू किए 64 साल हो गए हैं. इस तरह के नस्लीय कानून पूरे क्षेत्र और देश में समाप्त होने चाहिए न कि सिर्फ कुछ पुलिस स्टेशनों से.

किरेन रिजिजू को ट्विटर पर बिनालक्ष्मी नेपराम कहती हैं,

आदरणीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू जी, दुनिया के "सबसे बड़े लोकतंत्र" के कुछ क्षेत्रों में अभी भी मार्शल लॉ कैसे लगाया जा सकता है? भारत इकलौता ऐसा देश है जहां कोई युद्ध नहीं है लेकिन एक आपातकालीन अधिनियम AFSPA लगा हुआ है. यह हमारे लोकतंत्र पर सबसे बड़ा धब्बा है. AFSPA को घटाया नहीं, निरस्त किया जाए.

डेक्कन हेराल्ड अखबार से बात करते हुए राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप के डारेक्टर सुहास चकमा कहते हैं, "भारत सरकार नागालैंड, असम और मणिपुर के कुछ जिलों से AFSPA को वापस लेने के साथ कंजूस हो रही है. पूरे असम में AFSPA को जारी रखने का कोई मामला नहीं है. मणिपुर और नागालैंड में इस कानून का मकसद उग्रवाद को कंट्रोल करना नहीं है. बल्कि बचाव के मकसद से है."

नागा पीपुल्स मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्स के नींगुलो क्रोम कहते हैं, "यह अच्छा है कि कुछ प्रकार की छूट है. लेकिन केवल तुष्टीकरण की नीतियां मदद नहीं करती हैं. इस कानून के तहत बहुत अधिक उल्लंघन हुए हैं जो शब्दों से परे हैं.”

प्रभावशाली नागा मदर्स एसोसिएशन की रोजमेरी जुविचु हिंदुस्तान टाइम्स से कहती हैं,

“सशस्त्र बल शक्ति अधिनियम को निरस्त किया जाना चाहिए. यह कठोर कानून मानवाधिकारों के हर रूप का उल्लंघन करता है और इसे कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता... भारत सरकार को नागाओं और हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना बंद कर देना चाहिए. मांग AFSPA को निरस्त करने की है, उससे कम कुछ भी नहीं है."
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'कश्मीर से भी हटे AFSPA'

AFSPA यानी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट को सरकार देश के उन हिस्सों में लागू करती है, जो 'अशांत' होते हैं. अशांत यानी वो इलाके जहां आतंकवाद या उग्रवाद जैसे हालात बने हों. AFSPA लागू होने पर सेना के पास अधिकार आ जाता है कि वो बिना किसी वॉरंट के गिरफ्तारी कर सकती है और जरूरत पड़ने पर बल प्रयोग भी कर सकती है. इसी अधिकार को लेकर सरकार की आलोचना होती रही हैं. कई बार सेना पर फर्जी मुठभेड़ और मानवाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगा है. जम्मू-कश्मीर में AFSPA के अनिश्चितकालीन लागू होने पर भी सवाल उठता रहा है.

पीपुल्स मूवमेंट एंड ब्रॉड एलायंस फॉर: जस्टिस एंड पीस से जुड़े ई एम अब्दुल रहीमानी कहते हैं कि ये अधूरी जीत का दिन है.

"AFSPA असम, नगालैंड, मणिपुर में आंशिक रूप से हटाया गया. मानवाधिकार समूहों द्वारा लंबे राष्ट्रव्यापी संघर्षों के जरिए से हासिल ये एक अधिकार है. अब आराम से नहीं बैठना है. इसे सभी राज्यों के सभी क्षेत्रों से समाप्त किया जाना चाहिए. कश्मीर के लोगों को भी AFSPA से बचाना होगा."

बता दें कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का सामना करने के लिए सेना को विशेष अधिकार देने की प्रक्रिया के चलते यह कानून लाया गया था, जिसे 5 जुलाई, 1990 को पूरे राज्य में लागू कर दिया गया था. तब से आज तक जम्मू-कश्मीर में यह कानून लागू है, लेकिन लेह-लद्दाख क्षेत्र इस कानून के अंतर्गत नहीं आता.

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