बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay Highcourt) ने 1996 के एक मामले को ये कहते हुए रद्द कर दिया कि शारीरिक संबध बनाने के बाद शादी करने से इनकार करना कोई धोखा देना नहीं है. दरअसल एक व्यक्ति पर धोखे का आरोप लगा था, क्योंकि उसने शादी करने का दावा कर शारीरिक संबंध बनाया, लेकिन आगे चलकर शादी नहीं की.
क्या है पूरा मामला?
एक महिला ने 1996 में शिकायत दर्ज कराई थी कि, आरोपी ने शादी का दावा कर उसके साथ यौन संबंध बनाए और फिर उससे शादी करने से इनकार कर दिया. आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और 417 (धोखाधड़ी) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.
मामले में तीन साल तक चली सुनवाई के बाद आरोपी को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया गया था, लेकिन उसे धोखाधड़ी के लिए दोषी ठहराया गया था और उसे एक साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. जिसके बाद आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में फैसले को चुनौती दी.
पुराने फैसले को पलटते हुए जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि, रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत यह नहीं दर्शाते हैं कि आरोपी ने शादी के वादे की किसी भी गलतफहमी के तहत यौन संबंध बनाए थे या उसकी सहमति गलत बयानी पर आधारित थी.
रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि शुरुआत से ही आरोपी का उससे शादी करने का इरादा था. सबूत के अभाव में यह साबित करने के लिए कि महिला ने शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी जैसा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत निर्धारित है केवल शादी से इनकार करना आईपीसी की धारा 417 के तहत अपराध नहीं होगा.कोर्ट
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे लिखा, "आरोपी को आईपीसी की धारा 417 के तहत अपराध का दोषी इसलिए ठहराया गया है कि उसने पीड़िता से शादी करने से इनकार कर दिया था. सवाल ये है कि क्या ऐसी परिस्थितियों में शादी से इनकार करना धोखाधड़ी का अपराध है?
सारे सबूतों का अवलोकन कर हाईकोर्ट, सेशन कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है.
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