2008 में हुए अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट (2008 Ahmedabad serial bomb blasts) मामले में जान गंवाने वाले 56 लोगों और ढ़ाई सौ घायलों को आखिरकार आज इंसाफ मिला. एक विशेष अदालत ने 49 दोषियों में से 38 को सजा-ए-मौत दी वहीं 11 को उम्र-कैद की सजा सुनाई गयी है. 26 जुलाई 2008 को पूरा अहमदाबाद 70 मिनट के अंदर 21 ब्लास्ट से दहल गया था और ये धमाके अपने पीछे तबाही के मंजर छोड़ गए थे.
लेकिन 13 साल 6 महीने और 23 दिन पहले उन खौफनाफ 70 मिनटों में और उनसे पहले क्या हुआ था. नफरती साजिशकर्ताओं ने कैसे इस कायराना लेकिन हिंसक हमले को अंजाम दिया था? बताते हैं उस दिन की कहानी.
उस काले दिन क्या हुआ था?
2002 में भीषण सांप्रदायिक हिंसा का दंश झेल चुके गुजरात को शायद इस बात की उम्मीद नहीं थी कि वर्षों गुजर जाने के बाद एक बार फिर उसी सांप्रदायिक हिंसा की नफरती चिंगारी अहमदाबाद को दहलाने जा रही है. गोधरा कांड के बाद हुए दंगों का जवाब बताते हुए आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन (IM) और SIMI से जुड़े लोगों ने ब्लास्ट की प्लानिंग की और उसे अंजाम दिया.
आतंकियों की हिमाकत इस हद तक थी कि बम ब्लास्ट से पहले उन्होंने न्यूज एजेंसियों को मेल भी किया और लिखा कि “जो कर सकते हो कर लो, रोक सकते हो तो रोक लो”.
आतंकियों ने अमोनियम नाइट्रेट और फ्यूल ऑयल (एएनएफओ) का इस्तेमाल कर बमों को बनाया गया था. जिन्हें टिफिन में सेट करके साइकिल की मदद से प्लांट किया गया. धमाके के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित सिविल हॉस्पिटल, अहमदाबाद नगर निगम द्वारा संचालित एलजी हॉस्पिटल सहित बसों, खड़ी साइकिलों, कारों और अन्य टारगेट पर थे.
और फिर अहमदाबाद के मणिनगर में 26 जुलाई 2008 की शाम 6 बजकर 45 मिनट में पहला धमाका हुआ. मणिनगर तात्कालिक मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसभा क्षेत्र था. अगले 70 मिनट में 20 और ऐसे धमाके भीड़-भाड़ वाली जगहों पर हुए और इसमें 56 मासूम लोगों की मौत हो गयी जबकि ढ़ाई सौ घायल हो गए.
इस आतंकी हमले में देश में पहली बार किसी हॉस्पिटल्स को निशाना बनाया गया. सिविल हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर के बाहर हुए ब्लास्ट में सबसे अधिक 37 लोगों की जान गयी.
हमले के बाद 78 आरोपी तय हुए जिसमें से एक सरकारी गवाह बन गया. 77 आरोपियों में से विशेष अदालत ने 49 को दोषी पाया और उसने से 38 को फांसी की सजा वहीं 11 को उम्र-कैद की सजा सुनाई गयी.
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