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Ahmedabad Blast Case: पीड़ित बोले- न्याय बहुत पहले हो जाना चाहिए था

कोर्ट के फैसले में 38 दोषियों को फांसी और 11 को उम्रकैद की सजा हुई है.

Published
भारत
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अहमदाबाद (Ahmedabad) में साल 2008 के दौरान 70 मिनट के अंदर कम से कम 21 बम ब्लास्ट हुए थे, जिसमें 56 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक घायल हुए थे. शुक्रवार, 18 फरवरी को एक स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया है, जिसमें 38 दोषियों को फांसी और 11 को उम्रकैद की सजा हुई है. ब्लास्ट में मारे गए लोगों के परिजनों ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि न्याय के लिए 13 साल से अधिक के लंबे इंतजार ने उनके दर्द को लंबा कर दिया.

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65 वर्षीय श्रवण बोलिकर हाटकेश्वर सर्कल में एक सिलाई करते थे. 26 जुलाई, 2008 को काम से घर पहुंचने के बाद, उनकी 52 वर्षीय पत्नी सुनंदा सब्जी खरीदने के लिए चली गईं और फिर कभी वापस लौटकर नहीं आईं. उनकी तलाश में श्रवण अहमदाबाद के सिविल हॉस्पिटल के मुर्दाघर में पहुंचे और उनका शव मिला. शुक्रवार को एक स्पेशल कोर्ट का फैसला आया तो श्रवण जश्न मनाने के लिए दुकानदारों एक ग्रुप में शामिल हो गए. उनके हाथ में एक पैम्प्लेट था, जिसमें लिखा था- आतंकवाद पर मानवता की जीत.

श्रवण ने कहा कि क्या मौत की सजा मेरे नुकसान की भरपाई कर सकती है? यह मामला 13 साल तक चला, हालांकि सजा सही है.

'मेरे पिता को आज कुछ आराम मिला होगा'

यश व्यास, जिनकी उम्र 22 साल है. जब अहमदाबाद ब्लास्ट हुआ था तो वो सिर्फ आठ साल के थे. सिविल अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर के बाहर हुए धमाके में उनके पिता दुष्यंत और बड़े भाई रोहन की मौत हो गई थी. यश ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि मेरे पिता और भाई को आज कुछ आराम मिला होगा.

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यश के पिता सिविल अस्पताल में काम करते थे, दोनों भाई खुले इलाके में अपने पिता के साथ साइकिल चलाना सीख रहे थे.
शाम साढ़े सात बजे हम घर लौटने वाले थे, उसी दौरान मेरे पिता के पास किसी का फोन आया, जिसमें उनसे मदद मांगी गई क्योंकि एक मरीज ट्रॉमा सेंटर पहुंचने वाला था. हम वहां गए और एक विस्फोट ने मेरे पिता और भाई को उड़ा दिया. मैं नहीं जानता कि मैं कैसे बच गया. मैं उस वक्त कुछ भी नहीं देख या सुन सकता था.
यश व्यास

सिविल हॉस्पिटल में हुए दूसरे विस्फोट में एक 59 वर्षीय कार मैकेनिक जसवंतभाई पटेल की भी मौत हुई थी. एक सामाजिक कार्यकर्ता ग्रुप का सदस्य होने के नाते, वह पीड़ितों की मदद के लिए अस्पताल गए थे और विस्फोट में उन्हें गंभीर चोटें आईं. उनके बेटे अमरीश ने कहा कि मेरे पिता की मौत के बाद, हमें गैरेज चलाने में संघर्ष करना पड़ा.

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'मदद करने गए, खुद शिकार हुए'

विस्फोट में जान गंवाने वाली चंदनगिरी गोस्वामी की बहन मोना गोस्वामी ने बताया कि चंदनगिरी जिओलॉजी के तीसरे वर्ष के छात्र थे और दो दोस्तों के साथ हॉस्पिटल में विस्फोट पीड़ितों की मदद के लिए गए थे लेकिन, तीनों दोस्त खुद शिकार हो गए.

उन्होंने फैसला आने के बाद कहा कि यह अच्छा है कि कोर्ट ने इतने सारे आरोपियों को मौत की सजा दी है, लेकिन पीड़ितों के परिवारों के दर्दनाक अनुभव की भरपाई नहीं हो सकती है. न्याय बहुत पहले हो जाना चाहिए था.

इनपुट- इंडियन एक्सप्रेस

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