प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एयरसेल-मैक्सिस मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बम से शुक्रवार को फिर से करीब छह घंटे तक पूछताछ की. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि चिदंबरम का बयान प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत दर्ज किया गया. वह ईडी मुख्यालय में जांच अधिकारी के सामने पेश हुए.
समझा जाता है कि जांच एजेंसी इस सौदे के बारे में चिदंबरम से कुछ नये सवाल करना चाहती थी और इसीलिए उसने उनसे पेश होने के लिए कहा था. उसने इससे पहले इस सौदे के बारे में फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (FIPB) के अधिकारियों का बयान दर्ज किया था. ऐसा समझा जाता है कि चिदंबरम का उन सभी से आमना-सामना कराया गया.
चिदंबरम से दो बार पूछताछ कर चुकी है ED
चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम से इस मामले में ईडी दो बार पूछताछ कर चुकी है. जून में ईडी की ऐसी ही पूछताछ के बाद चिदंबरम ने कहा था कि उन्होंने एजेंसी से जो कुछ कहा, वह पहले से ही सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है. उन्होंने यह भी कहा था कि कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी है, उसके बाद भी जांच शुरू की गयी.
उन्होंने ट्वीट किया था:
‘‘आधे से ज्यादा समय सवालों के जवाब को बिना किसी त्रुटि के टाइप करने, बयान को पढ़ने और उस पर दस्तखत करने में लगाया गया.’’
6 महीने में पूरी होनी है जांच
एयरसेल-मैक्सिस केस का संबंध फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (FIPB) द्वारा मैसर्स ग्लोबल कम्युनिकेशन होल्डिंग सर्विसेज लिमिटेड को एयरसेल में निवेश के लिए दी गयी मंजूरी से है. सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च को CBI और ED को 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामलों की जांच, जिनमें एयरसेल मैक्सिस कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस भी शामिल है, छह महीने में पूरा करने का निर्देश दिया था.
एजेंसी ने कहा था कि एयरसेल-मैक्सिस एफडीआई मामले में एफआईपीबी मंजूरी मार्च, 2006 में चिदंबरम ने दी थी, जबकि वह 600 करोड़ रुपये तक ही प्रोजेक्ट प्रस्तावों को मंजूरी देने के लिए अधिकृत थे. उससे ज्यादा की राशि के लिए आर्थिक मामलों से संबंधित मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) से मंजूरी जरूरी थी. ईडी तत्कालीन वित्तमंत्री द्वारा दी गयी एफआईपीबी मंजूरी की स्थितियों की जांच कर रहा है.
ईडी ने आरोप लगाया, ‘‘इस मामले में 80 करोड़ डॉलर (3500 करोड़ रुपये से अधिक) एफडीआई की मंजूरी मांगी गयी थी. हालांकि सीसीईए ही मंजूरी देने के लिए अधिकृत थी, लेकिन सीसीईए से मंजूरी नहीं ली गयी.''
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