बंद कमरों की घुटन से कौन नहीं निकलना चाहेगा, इस समय स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां हुई है और गरमी की तपिश से बचने के लिए लोग हिमालय (Himalaya) की खूबसूरत वादियों में हिल स्टेशनों की ओर रूख कर रहे है.
उत्तराखंड (Uttarakhand) राज्य के कुमाऊं मंडल की सास्कृतिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध अल्मोड़ा (Almora) एक ऐसी जगह है, जहांं पर आप प्रकृति के अनमोल खजाने से रूबरू हो सकते हैं साथ ही वन्य जीवों के कौतूहल को भी निहार सकते है.
अल्मोड़ा (Almora)
अल्मोड़ा उत्तराखंड (Almora Uttarakhand) राज्य के कुमाऊं क्षेत्र के हिमालय पर्वत के बीच बसा एक खूबसूरत हिल स्टेशन हैं. अल्मोड़ा शहर के बीच से कोसी नदी और सुयाल नदी बहती है, जो इसके आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं. अल्मोड़ा का शांतिपूर्ण जीवन, साहसिक गतिविधियां, अल्मोड़ा की खूबसूरत वन्य जीव क्षेत्र है. अल्मोड़ा के प्रमुख धार्मिक स्थल इसको एक प्रमुख पर्यटक स्थल बनाते हैं.
कटारमल सूर्य देव मंदिर (Katarmal Surya Temple)
कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Surya Temple) प्रसिद्ध है, जिसे बारा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है. कटारमल अल्मोड़ा से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है, और यह 2,116 मीटर की ऊचाई पर स्थित है. कोसी नदी के पास हवालबाग और मटेला को पार करने के लिए करीब तीन किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ता है. कटारमल मंदिर को कुमाऊं में एकमात्र सूर्य मंदिर होने का भी गौरव मिला है.
नंदा देवी मंदिर (Nanda devi Mandir)
अल्मोड़ा जिले के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” (Nanda devi Mandir) का एक विशेष धार्मिक महत्व है. इस मंदिर में “देवी दुर्गा” का अवतार विराजमान है. समुद्र तल से 7816 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर चंद वंश की “ईष्ट देवी” मां नंदा देवी को समर्पित है. नंदा देवी मां दुर्गा का अवतार और भगवान शंकर की पत्नी हैं और पर्वतीय आंचल की मुख्य देवी के रूप में पूजी जाती है.
नंदा देवी गढ़वाल के राजा दक्षप्रजापति की पुत्री थीं, इसलिए सभी कुमाऊंनी और गढ़वाली लोग उन्हें पर्वतांचल की पुत्री मानते हैं.
कई हिन्दू तीर्थयात्रा के धार्मिक रूप में इस मंदिर की यात्रा करते है, क्योंकि नंदा देवी को “बुराई के विनाशक” और कुमुण के घुमन्तु के रूप में माना जाता है. इसका इतिहास 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है. नंदा देवी का मंदिर, शिव मंदिर की बाहरी ढलान पर स्थित है.
चितई गोलू देवता मंदिर (Chitai Golu Devta Temple)
अल्मोड़ा से करीब 8 किमी दूर स्थित, चिताई गोलू (Chitai Golu) उत्तराखंड में एक प्रसिद्ध मंदिर है. गोलू जी देवता की अध्यक्षता में गौर भैरव के रूप में भगवान शिव विराजमान है. चित्तई मंदिर को इसकी परिसर में लटकी तांबे की घंटियों द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है. गोलू जी को न्याय का देवता माना जाता है और यह एक आम धारणा है कि जब कोई व्यक्ति उत्तराखंड में आपके किसी मंदिर में पूजा करता है तो गोलू देवता उसे न्याय प्रदान करते हैं और अपने भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं.
जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham)
अल्मोड़ा से 35 किलोमीटर दूर स्थित केंद्र जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham) के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतता प्रदान कर रहे हैं. यहां करीब 250 मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बड़े 224 मंदिर स्थित हैं.
बिनसर वन्यजीव अभयारण्य बिनसर वन्यजीव विहार कुमाऊं क्षेत्र के दर्शनीय स्थानों में से एक है. समुद्रतल से करीब 2420 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. बिनसर से राजसी हिमालय की चोटियों जैसे चौखम्बा, नंदा देवी, नंदा कोट, पंचाचूली और केदारनाथ के मंत्रमुग्ध करने वाले दृश्य दिखाई देते हैं.
बिनसर का मुख्य आकर्षण जीरो पॉइंट से हिमालय की चोटियों का राजसी और मनोरम दृश्य 300 किलोमीटर की दूरी पर है. यह कॉम्पैक्ट पहाड़ी शहर बिनसर वन्यजीव अभयारण्य से घिरा हुआ है, जो दुर्लभ जानवरों, पक्षियों और फूलों की प्रजातियों के आवास के रूप में कार्य करता है.
बिनसर महादेव मंदिर (Binsar Mahadev Mandir)
बिनसर महादेव मंदिर (Binsar Mahadev Mandir) काफी मशहूर है, यह मंदिर रानीखेत से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थित है. कुंज नदी के सुरम्य तट पर करीब साढ़े पांच हजार फीट की ऊंचाई पर बिनसर महादेव का भव्य मंदिर है. समुद्र तल से 2480 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर हरे-भरे देवदार के जंगलों से घिरा हुआ है. भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में किया गया था.
कसार देवी मंदिर (Kasar Devi Temple)
कसार देवी मंदिर (Kasar Devi Temple) उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में एक गांव में स्थित है. यह कसार देवी मंदिर माता कसार देवी को समर्पित है. स्वामी विवेकानंद जी ने सन 1890 में ध्यान के लिए कुछ महीनों के लिए यहां आए थे. बताया जाता है कि अल्मोड़ा से करीब 22 किमी दूर काकड़ीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी.
रहस्य है अल्मोड़ा का सिद्ध नौला
रहस्य समेटे हुए है अल्मोड़ा का सिद्ध नौला, पहाड़ में इतनी ऊंचाई पर जमीन से कैसे निकलता है पानी! पहाड़ों पर पानी के प्राकृतिक स्रोतों की बात ही अलग है. आज भी जब घरों में नलों से पानी सूख जाता है, तो जनता इन्हीं नलों और धारों पर निर्भर रहती है. ये प्राकृतिक स्रोत आज भी इंसानों की प्यास बुझा रहे हैं. वैसे तो पहाड़ों के ज्यादातर स्रोत निचले हिस्से या मैदानी इलाकों में होते हैं, लेकिन अल्मोड़ा में काफी ऊंचाई पर स्थित श्री सिद्ध नौला आज भी खुद में कई रहस्य समेटे हुए हैं. समुद्र तल से इतनी ज्यादा ऊंचाई पर जमीन से निकलता पानी वाकई हैरान करता है.
एक समय ऐसा था जब अल्मोड़ा में 300 से ज्यादा नौले हुआ करते थे, अब सिर्फ करीब 50 नौले ही बचे हैं. आज भी दूरदराज से लोग सिद्ध नौले से पानी लेने आते हैं. लोगों का मानना है कि आज भी इस नौले का पानी गंगा के समान पवित्र है.
माना जाता है कि श्री सिद्ध नौले का निर्माण चंद वंश के राजाओं ने कराया था. इस नौले में एक सुरंग भी है, जो कथित तौर पर मल्ला महल निकलती थी. कहा जाता है कि इसी सुरंग से होते हुए रानियां यहां तक पहुंचती थीं. बदलते वक्त के साथ यह सुरंग बंद हो गई. इस नौले को लेकर और भी कई किस्से-कहानियां हैं.
श्री सिद्ध नौले तक कैसे पहुंचे
अल्मोड़ा के पलटन बाजार में स्थित श्री सिद्ध नौला तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं. पहला एलेक्जेंडर गेट से होते हुए आप यहां पहुंच सकते हैं. दूसरा एसएसपी कार्यालय से ऊपर की ओर आते हुए आप यहां आ सकते हैं, वहीं तीसरा रास्ता अल्मोड़ा की मेन मार्केट से होते हुए आपको इस नौले तक ले आएगा.
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