नेटवर्क18 के राहुल जोशी ने 18 अक्टूबर को यूनियन होम मिनिस्टर अमित शाह का इंटरव्यू किया था. इंटरव्यू के दौरान अमित शाह ने इस बात से इनकार किया कि देश में बीजेपी शासन के दौरान लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं. गृह मंत्री ने कहा कि लिंचिंग के बारे में जागरुकता फैला कर यह मुद्दा सुलझाया जा सकता है.
अमित शाह ने इंटरव्यू में कहा
बीजेपी शासन में तथाकथित मॉब-लिचिंग की घटनाएं नहीं बढ़ी हैं. इस बारे में एक खास तरह का प्रोपगंडा फैलाया जा रहा है.
अब यह देखते हैं कि शाह के इस दावे में कितना दम है. क्या बीजेपी शासन में मॉब लिंचिंग की घटनाएं नहीं बढ़ी हैं?
‘NCRB अलग से लिचिंग के डेटा नहीं रखता’
मार्च, 2018 में गृह मंत्रालय की ओर से लोकसभा में दिए गए एक सवाल के जवाब में कहा गया कि देश में 2014 से 2017 के बीच 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भीड़ की हिंसा के 40 केस सामने आए जिनमें 45 लोगों की लिंचिंग कर दी गई. 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने डेटा उपलब्ध नहीं कराए थे.
हालांकि जुलाई, 2018 को गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने राज्य सभा में कहा कि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो अलग से लिंचिंग के डेटा नहीं रखता. अहीर इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि सरकार मॉब लिचिंग की घटनाओं का रिकार्ड रखती है या नहीं. दिसंबर 2018 में लोकसभा में भी अहीर ने यही जवाब दिया, जब उनसे पूछा गया था कि क्या सरकार को देश में बढ़ रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं के बारे में पता है.
इन एजेंसियों के आंकड़ों ने दिए सबूत
हालांकि भीड़ की हिंसा (मॉब लिचिंग) से जुड़ी घटनाओं के बारे में डेटा मुहैया कराने से सरकार ने बचने की कोशिश है. लेकिन कई स्वतंत्र एजेंसियों की स्टडी दूसरी तस्वीर बयां करती है. डेटा वेबसाइट इंडियास्पेंड ने 2014-17 के बीच भीड़ की हिंसा के 80 केस दर्ज किए हैं. इनमें 41 मौतें हुईं. हालांकि ये घटनाएं सिर्फ मवेशियों से जुड़ी हेट क्राइम और बच्चा चोर की अफवाह में हुई हिंसा की थीं. पोर्टल ने कहा है कि इनमें से 98 फीसदी घटनाएं भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद हुई हैं.
द क्विंट ने 2015 से 2019 के बीच भीड़ की हिंसा के 219 केस दर्ज किए. इनमें 113 लोगों ने अपनी जान गंवाई. 2018 में भीड़ की हिंसा के माामले बढ़ गए. इस साल कम से कम 54 लोग भीड़ की हिंसा में मारे गए. द क्विंट ट्रैकर के मुताबिक यह संख्या 2016 में सिर्फ सात थी.
एनसीआरबी का कोई डेटा नहीं
भारत में अपराध के आंकड़ों को इकट्ठा करने और उनके विश्लेषण की जिम्मेदारी जिस एनसीआरबी पर है उसने 2016 के बाद इसका आंकड़ा ही रिलीज नहीं किया है. उसकी रिपोर्ट ‘Crime in India’ 2016’ साल 2017 में रिलीज हुई.यह इस एजेंसी की आखिरी रिपोर्ट है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक जुलाई 2017 में नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने कहा कि संगठन लिंचिंग से जुड़े विस्तृत डेटा इकट्ठा करने की योजना बना रहा है. संडे एक्सप्रेस से एनसीआरबी के डायरेक्टर ईश कुमार ने इस योजना की पुष्टि की. लेकिन यह भी कहा कि अभी यह योजना बेहद शुरुआती दौर में है.
द क्विंट ने इस बारे में एनसीआरबी अधकारियों से बात की है. अगर उनका जवाब मिलेगा तो हम जरूर शामिल करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने भी 2018 को इस बात को माना था कि देश भर में भीड़ की हिंसा और लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस बारे में कानून लाने को कहा था .स्वतंत्र एजेंसियों की स्टडी बताती है देश में मॉब लिचिंग बढ़ी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है सरकार इसे रोकने के लिए कानून बनाए. लेकिन सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, जिससे इस बारे में आखिरी तौर पर कोई राय बनाई जाए या निष्कर्ष निकाला जाए. इसलिए जब देश के गृह मंत्री कहते हैं कि पिछले साढ़े पांच साल के दौरान भीड़ की हिंसा में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, तो उनके बयान की जांच मुश्किल हो जाती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)