इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आर्मेनियाई जनसंहार (जेनोसाइड) की 107वीं बरसी पर राजकमल प्रकाशन द्वारा छपी और सुमन केशरी- माने माकर्तच्यान द्वारा लिखी गई किताब - 'आर्मेनियाई जनसंहार: ऑटोमन साम्राज्य का कलंक' का लोकार्पण किया गया.
आर्मेनियाई जनसंहार 20वीं सदी का पहला जनसंहार था जिसमें लाखों आर्मेनियाइयों को जान चली गई थी. 107 साल पहले की इस भयावह घटना से भारत समेत पूरी दुनिया में बहुत कम लोग परिचित हैं. किताब के प्रकाशित होने से आर्मेनिया के लोगों की इंसाफ की उस मांग को भी बल मिलेगा जिसका वे अब भी इंतजार कर रहे हैं.
लोकार्पण के बाद जारी प्रेस नोट में बताया गया कि, सरकारी आकड़ों के अनुसार 1915 से 1923 के बीच हुए आर्मेनियाई जनसंहार में करीब 15 लाख लोग मरे गए थे. जबकि अन्य आकड़ों के मुताबिक 60 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
लोकार्पण में पहुंची आर्मेनिया गणराज्य की राजदूत युरी बाबाखान्यान ने कहा, अगर 20वीं शताब्दी के पहले हुए तमाम नरसंहारों की कड़ी निंदा की गई होती तो अर्मेनियाई जैसा भयावह जनसंहार नहीं हुआ होता जिनमें लाखों निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवा दी. एक सदी से अधिक समय बीत चुका है अर्मेनियाई लोग अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता वरिष्ठ कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा, आर्मेनियाई जनसंहार पूरे मानव समाज के लिए शर्म की घटना है. दुखद यह है कि आज के समय में भी देश-विदेश में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. इन घटनाओं के विरोध में आवाज उठाना बहुत जरूरी हो गया है.
कार्यक्रम में शामिल जेएनयू के रूसी और मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र की अध्यक्ष अर्चना उपाध्याय ने कहा, आज हम यहां 15 लाख अर्मेनियाई लोगों की स्मृति को याद करने के लिए एकजुट हुए हैं. सवाल है कि क्यों मानव समाज में इस तरह के जनसंहार बार- बार होते रहे हैं. मेरे मानना है कि लोगों का सेलेक्टिव होना और अपराधों के प्रति चुप्पी साध लेना सबसे बड़ा कारण है. अगर भविष्य में ऐसे नरसंहारों से बचना है तो आवाज बुलंद करनी होगी.
'आर्मेनियाई जनसंहार: ओटोमन साम्राज्य का कलंक' पुस्तक की सम्पादक सुमन केशरी ने भारत के आर्मेनिया से पुराने संबंधों का हवाला देते हुए कहा, भारत के आर्मेनिया से नजदीकी संबंधों के बावजूद भारत के कुछ मुठ्ठी भर ही लोग आर्मेनियाई जनसंहार के बारे में जानते हैं जो मेरे लिए बड़ी दुखद और चौकाने वाली बात थी. इसलिए मैं इस किताब पर जी -जान से जुट गई यह किताब इस मामले में भी खास है क्योंकि यह साहित्य के नजरिये से इस जनसंहार को देखती है.
पुस्तक की सह सम्पादक माने मकर्तच्यान ने कहा, ‘यह पुस्तक आर्मेनियाई जनसंहार पर 5 वर्षों के अथक प्रयास का फल है. इसका उदेश्य वैश्विक स्तर पर जनसंहारों और अपराधों के खिलाफ चेतना जागृत करना है. ओटोमन साम्राज्य के अधीन रहे हर आर्मेनियाई की ऐसी दुखदाई स्मृतियां हैं जो दिल दहलाने वाली हैं, जिसका बोध आपको इस किताब को पढ़ते हुए होगा’.
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