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इलेक्शन कमिश्नर अशोक लवासा ने दिया पद से इस्तीफा

लवासा एडीबी ज्वाइन करते हैं तो ऐसा करने वाले सिर्फ दूसरे चुनाव आयुक्त होंगे. लवासा का कार्यकाल अक्टूबर 2022 तक है.

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चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. अब अगले महीने से वो एशियन डेवलपमेंट बैंक में बतौर वाइस प्रेसिडेंट कार्यभार संभालेंगे. लवासा दिवाकर गुप्ता की जगह लेंगे, जिनका कार्यकाल 31 अगस्त को खत्म हो रहा है. यानी अब वो मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं बनेंगे. लवासा एडीबी ज्वाइन करते हैं तो ऐसा करने वाले सिर्फ दूसरे चुनाव आयुक्त होंगे. लवासा का कार्यकाल अक्टूबर 2022 तक है.

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मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते थे लवासा

लवासा को जनवरी 2018 में चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था. लवासा पहले कई वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं, जिनमें वित्त सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में सचिव और नागरिक उड्डयन सचिव शामिल हैं.

लवासा, चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के साथ पोल पैनल में काम करते हैं. लवासा मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं. यानी अरोड़ा के बाद लवासा मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते थे. लवासा के एडीबी जाने पर अब चंद्रा मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते हैं. लवासा ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है, वैसे उन्हें एडीबी में अगस्त में जाना है. लेकिन जानकार बताते हैं इस तरह हाई प्रोफाइल नियुक्तियां बिना सरकार और संबंधित व्यक्ति के सहमति की नहीं होतीं.

अगर लवासा मुख्य चुनाव आयुक्त बनते तो उनके नेतृत्व में यूपी, बंगाल, उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव होते. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.

मोदी को क्लीन चिट का किया था विरोध

आम चुनाव 2019 में चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगा था. शिकायत पर चुनाव आयोग की जांच बैठी. जांच में पीएम को क्लीन चिट दी गई. खबरों के मुताबिक, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा चाहते थे कि भाषण पर शिकायत को लेकर पीएम मोदी को 'फॉर्मल लेटर' भेजा जाए. लेकिन अशोक लवासा की राय शामिल नहीं की गई. लेकिन क्लीन चिट में लवासा की राय को शामिल नहीं किया गया. इसी बात पर लवासा ने लेटर लिखकर कहा था कि क्लीनचिट में उनकी राय का जिक्र होना चाहिए.

अशोक लवासा की छवि ईमानदार अफसर की

1980 बैच के IAS अशोक लवासा को 2018 में चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था. हरियाणा कैडर के अधिकारी लवासा पहले नागरिक उड्डयन और पर्यावरण मंत्रालय में सचिव के तौर पर रह चुके हैं. 2017 में वो वित्त सचिव के तौर पर रिटायर हुए थे. हरियाणा में उनकी छवि एक ईमानदार अधिकारी की रही है.

आइएस बनने से पहले वो दिल्ली यूनिवर्सिटी में अगस्त 1978 से दिसंबर 1979 तक लेक्चरर रहे. दिसंबर 1979 से जुलाई 1980 तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में प्रोबेशनरी ऑफिसर के तौर पर भी काम किया.

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