असम (Assam) की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए एक ऐसा आदेश जारी किया है जो सुर्खियां बटोर रहा है. सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि सरकारी कर्माचारी बिना सरकार से परमीशन लिए दूसरी शादी नहीं कर सकते हैं.
आइए जानते हैं कि हिमंता सरकार के आदेश में क्या है और मुख्यमंत्री ने इस मसले पर क्या कहा है?
असम: सरकारी कर्मचारी बिना मंजूरी नहीं कर सकेंगे दूसरी शादी, फिर पर्सनल लॉ का क्या होगा?
1. राज्य सरकार के आदेश में क्या कहा गया है?
Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार के द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि निर्देश का पालन नहीं किए जाने पर विभाग के द्वारा कार्रवाई की जाएगी, जिसमें अनिवार्य रिटायरमेंट भी शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा नियम यह भी कहा गया है कि कानूनी तौर पर दंडात्मक कदम भी उठाए जाएंगे.
Expand2. राज्य सरकार ने यह आदेश कब जारी किया था?
सरकार का यह आदेश कार्मिक विभाग के कार्यालय ज्ञापन में 20 अक्टूबर को जारी किया गया था. 'द्विविवाह' टाइटल के साथ जारी किए गए ज्ञापन में कहा गया है कि यह आदेश असम सिविल सर्विसेज नियम, 1965 के आधार पर लाया गया है.
Expand3. पर्सनल लॉ छूट देता है, तो क्या होगा?
जो सरकारी कर्मचारी अपनी पत्नी के साथ रह रहा है, अगर वो किसी दूसरी महिला से शादी करना चाहता है, तो उसे पहले सरकार से बात करके छूट लेनी होगी. सरकार द्वारा जारी नियम में कहा गया है कि अगर उस कर्मचारी का पर्सनल लॉ दूसरी शादी की छूट देता है, उसके बाद भी उस पर यह नियम लागू होगा.
Expand4. दो शादी के मामले पर हिमंत बिस्वा सरमा ने क्या कहा?
जारी किए गए आदेश के बारे में बात करते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को कहा कि यह नियम पहले से ही बना हुआ है, जिसको अब राज्य सरकार सरकारी कर्मचारियों पर लागू कर रही है.
हमारी सेवाओं के नियमों के मुताबिक असम सरकार का कोई भी कर्मचारी दूसरी शादी नहीं कर सकेगा. अगर कुछ धर्मों में ऐसे नियम हैं, जो दूसरी शादी की छूट देते हैं... उस स्थिति में भी दूसरी शादी करने से पहले सरकार से परमीशन अनिवार्य होगी.
हिमंता बिस्वा सरमा, मुख्यमंत्री, असमउन्होंने आगे कहा कि अब यह राज्य सरकार पर निर्भर करेगा कि आपको दूसरी शादी के लिए छूट दी जाए या नहीं. हमें आम तौर पर कई ऐसे मामले मिलते हैं, जिसमें किसी सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद उसकी दो पत्नियां पेंशन के लिए आपस में लड़ती हैं. हमें ऐसे विवादों को निपटाने बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है. मौजूदा वक्त में ऐसी कई पत्नियां पेंशन से वंचित हैं.
Expand5. मामले के लिए बनी एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा?
असम सरकार के मुताबिक दो शादी की प्रक्रिया पर कानूनी तरीकों के जरिए बैन लगाने पर काम किया जा रहा है. अगले विधानसभा सत्र में इसको पेश किया जाएगा. हिमंत बिस्वा सरमा ने इस मामले में इसी साल मई में बात की थी और इस सिलसिले में कानूनी तौर पर काम करने के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई थी.
अगस्त में कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया कि ऐसे कानून लागू करने के लिए राज्य विधायिका के पास कानूनी विकल्प मौजूद हैं.
इसके अलावा कमेटी ने कहा था कि कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक क्रियाएं जरूरी हैं और उसको सुरक्षा मिलनी चाहिए.
इस्लाम धर्म का सम्मान करते हुए कोर्ट ने कहा था कि एक से ज्यादा औरतों से शादी करना इस्लाम की जरूरी क्रियाओं में शामिल नहीं है. कानून के मुताबिक दो शादियों पर रोक लगाना, धर्म की जरूरी क्रियाएं करने में बाधा डालने जैसा नहीं है. यह एक ऐसा कदम है, जो सामाजिक सुधार से संबंधित है.
Expand6. दूसरी शादी पर पर्सनल लॉ क्या कहते हैं?
हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के मुताबिक अगर पति/पत्नी जिंदा हैं या तलाक नहीं हुआ है... तो दूसरी शादी करना अपराध माना गया है. कानून की धारा 17 के तहत, अगर कोई भी पति या पत्नी के रहते ही दूसरी शादी करता है, तो उसे सात साल की जेल हो सकती है.
हिंदू मैरिज एक्ट हिंदुओं के अलावा सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों पर भी लागू होता है.
मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है, जिसमें पुरुष को चार शादी करने की इजाजत दी गई है. अगर कोई व्यक्ति पांचवा निकाह करना चाहता है, तो चार बीवियों में किसी एक से तलाक हुआ हो या उसकी मौत हो चुकी हो.
ईसाई धर्म के मानने वालों पर क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 लागू होता है, जिसके तहत शादी होती है. ईसाइयों में हिंदू मैरिज एक्ट की तरह ही दूसरी शादी नहीं की जा सकती है. इस धर्म को मानने वाले दूसरी शादी ऐसी स्थिति में ही कर सकते हैं, जब पति और पत्नी के बीच तलाक हुआ हो या दोनों में से किसी एक की मौत हो चुकी हो.
Expand7. पति-पत्नी एक दूसरे की सहमति से दूसरी शादी कर लें तो क्या होगा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट मसजूद खान, क्विंट हिंदी से बातचीत में कहते हैं कि भारतीय संविधान में (पर्सनल लॉ को छोड़कर) ये नियम बनाया गया है कि अगर कोई पति/पत्नी अपने पार्टनर के रहते हुए किसी और से शादी करता है, तो IPC की धारा 494 के तहत यह अपराध माना जाएगा. भले ही एक-दूसरे से इस पर सहमति ली गई हो.
ऐसे मामले में, कोर्ट अधिकतम सात साल की सजा सुना सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. सजा की अवधि को अदालत के द्वारा कम भी किया जा सकता है.
बता दें कि यह कानून मुस्लिम समाज के लोगों पर नहीं लागू होता है, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक से ज्यादा शादी करने की इजाजत देता है.
एडवोकेट मसजूद खान बताते हैं कि
वहीं दूसरी तरफ हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 5 में, पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध माना गया है, तो अगर कोई हिंदू पति/पत्नी सहमति से भी दूसरी शादी करते हैं, तो हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 5 की शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा.
Expand8. पर्सनल लॉ क्या है?
मौजूदा वक्त में भारत के अंदर शादी-तलाक, गोद लेना, संपत्ति बंटवारा-विरासत, उत्तराधिकार, गार्डियनशिप को लेकर अलग-अलग धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर उस धर्म के मानने वालों के लिए कानून बने हुए हैं. हिंदुओं के लिए अलग एक्ट, मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ हैं.
हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के पर्सनल लॉ उनके धार्मिक/मजहबी ग्रंथों/किताबों पर आधारित हैं.
हिंदू पर्सनल लॉ वेदों, स्मृतियों और उपनिषदों के साथ-साथ न्याय, समानता की आधुनिक अवधारणाओं पर आधारित है. वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत पर आधारित है, जो पैगंबर मोहम्मद की सीख और उनके जीवन जीने के बताये तरीके से जुडे़ हैं. इसी तरह क्रिश्चियन पर्सनल लॉ बाइबल, परंपराओं, तर्क और अनुभव पर आधारित है.
अब यहां पर सवाल आता है कि भारत जैसे देश में जहां अलग-अलग धर्म के मानने वाले रहते हैं, अलग-अलग आस्थाएं हैं, मान्यताएं हैं, ऐसे में अगर सरकार सबके लिए एक कानून लाती है, तो उसे लागू कैसे किया जाएगा?
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राज्य सरकार के आदेश में क्या कहा गया है?
Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार के द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि निर्देश का पालन नहीं किए जाने पर विभाग के द्वारा कार्रवाई की जाएगी, जिसमें अनिवार्य रिटायरमेंट भी शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा नियम यह भी कहा गया है कि कानूनी तौर पर दंडात्मक कदम भी उठाए जाएंगे.
राज्य सरकार ने यह आदेश कब जारी किया था?
सरकार का यह आदेश कार्मिक विभाग के कार्यालय ज्ञापन में 20 अक्टूबर को जारी किया गया था. 'द्विविवाह' टाइटल के साथ जारी किए गए ज्ञापन में कहा गया है कि यह आदेश असम सिविल सर्विसेज नियम, 1965 के आधार पर लाया गया है.
पर्सनल लॉ छूट देता है, तो क्या होगा?
जो सरकारी कर्मचारी अपनी पत्नी के साथ रह रहा है, अगर वो किसी दूसरी महिला से शादी करना चाहता है, तो उसे पहले सरकार से बात करके छूट लेनी होगी. सरकार द्वारा जारी नियम में कहा गया है कि अगर उस कर्मचारी का पर्सनल लॉ दूसरी शादी की छूट देता है, उसके बाद भी उस पर यह नियम लागू होगा.
दो शादी के मामले पर हिमंत बिस्वा सरमा ने क्या कहा?
जारी किए गए आदेश के बारे में बात करते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को कहा कि यह नियम पहले से ही बना हुआ है, जिसको अब राज्य सरकार सरकारी कर्मचारियों पर लागू कर रही है.
हमारी सेवाओं के नियमों के मुताबिक असम सरकार का कोई भी कर्मचारी दूसरी शादी नहीं कर सकेगा. अगर कुछ धर्मों में ऐसे नियम हैं, जो दूसरी शादी की छूट देते हैं... उस स्थिति में भी दूसरी शादी करने से पहले सरकार से परमीशन अनिवार्य होगी.हिमंता बिस्वा सरमा, मुख्यमंत्री, असम
उन्होंने आगे कहा कि अब यह राज्य सरकार पर निर्भर करेगा कि आपको दूसरी शादी के लिए छूट दी जाए या नहीं. हमें आम तौर पर कई ऐसे मामले मिलते हैं, जिसमें किसी सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद उसकी दो पत्नियां पेंशन के लिए आपस में लड़ती हैं. हमें ऐसे विवादों को निपटाने बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है. मौजूदा वक्त में ऐसी कई पत्नियां पेंशन से वंचित हैं.
मामले के लिए बनी एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा?
असम सरकार के मुताबिक दो शादी की प्रक्रिया पर कानूनी तरीकों के जरिए बैन लगाने पर काम किया जा रहा है. अगले विधानसभा सत्र में इसको पेश किया जाएगा. हिमंत बिस्वा सरमा ने इस मामले में इसी साल मई में बात की थी और इस सिलसिले में कानूनी तौर पर काम करने के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई थी.
अगस्त में कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया कि ऐसे कानून लागू करने के लिए राज्य विधायिका के पास कानूनी विकल्प मौजूद हैं.
इसके अलावा कमेटी ने कहा था कि कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक क्रियाएं जरूरी हैं और उसको सुरक्षा मिलनी चाहिए.
इस्लाम धर्म का सम्मान करते हुए कोर्ट ने कहा था कि एक से ज्यादा औरतों से शादी करना इस्लाम की जरूरी क्रियाओं में शामिल नहीं है. कानून के मुताबिक दो शादियों पर रोक लगाना, धर्म की जरूरी क्रियाएं करने में बाधा डालने जैसा नहीं है. यह एक ऐसा कदम है, जो सामाजिक सुधार से संबंधित है.
दूसरी शादी पर पर्सनल लॉ क्या कहते हैं?
हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के मुताबिक अगर पति/पत्नी जिंदा हैं या तलाक नहीं हुआ है... तो दूसरी शादी करना अपराध माना गया है. कानून की धारा 17 के तहत, अगर कोई भी पति या पत्नी के रहते ही दूसरी शादी करता है, तो उसे सात साल की जेल हो सकती है.
हिंदू मैरिज एक्ट हिंदुओं के अलावा सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों पर भी लागू होता है.
मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है, जिसमें पुरुष को चार शादी करने की इजाजत दी गई है. अगर कोई व्यक्ति पांचवा निकाह करना चाहता है, तो चार बीवियों में किसी एक से तलाक हुआ हो या उसकी मौत हो चुकी हो.
ईसाई धर्म के मानने वालों पर क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 लागू होता है, जिसके तहत शादी होती है. ईसाइयों में हिंदू मैरिज एक्ट की तरह ही दूसरी शादी नहीं की जा सकती है. इस धर्म को मानने वाले दूसरी शादी ऐसी स्थिति में ही कर सकते हैं, जब पति और पत्नी के बीच तलाक हुआ हो या दोनों में से किसी एक की मौत हो चुकी हो.
पति-पत्नी एक दूसरे की सहमति से दूसरी शादी कर लें तो क्या होगा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट मसजूद खान, क्विंट हिंदी से बातचीत में कहते हैं कि भारतीय संविधान में (पर्सनल लॉ को छोड़कर) ये नियम बनाया गया है कि अगर कोई पति/पत्नी अपने पार्टनर के रहते हुए किसी और से शादी करता है, तो IPC की धारा 494 के तहत यह अपराध माना जाएगा. भले ही एक-दूसरे से इस पर सहमति ली गई हो.
ऐसे मामले में, कोर्ट अधिकतम सात साल की सजा सुना सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. सजा की अवधि को अदालत के द्वारा कम भी किया जा सकता है.
बता दें कि यह कानून मुस्लिम समाज के लोगों पर नहीं लागू होता है, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक से ज्यादा शादी करने की इजाजत देता है.
एडवोकेट मसजूद खान बताते हैं कि
वहीं दूसरी तरफ हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 5 में, पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध माना गया है, तो अगर कोई हिंदू पति/पत्नी सहमति से भी दूसरी शादी करते हैं, तो हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 5 की शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा.
पर्सनल लॉ क्या है?
मौजूदा वक्त में भारत के अंदर शादी-तलाक, गोद लेना, संपत्ति बंटवारा-विरासत, उत्तराधिकार, गार्डियनशिप को लेकर अलग-अलग धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर उस धर्म के मानने वालों के लिए कानून बने हुए हैं. हिंदुओं के लिए अलग एक्ट, मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ हैं.
हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के पर्सनल लॉ उनके धार्मिक/मजहबी ग्रंथों/किताबों पर आधारित हैं.
हिंदू पर्सनल लॉ वेदों, स्मृतियों और उपनिषदों के साथ-साथ न्याय, समानता की आधुनिक अवधारणाओं पर आधारित है. वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत पर आधारित है, जो पैगंबर मोहम्मद की सीख और उनके जीवन जीने के बताये तरीके से जुडे़ हैं. इसी तरह क्रिश्चियन पर्सनल लॉ बाइबल, परंपराओं, तर्क और अनुभव पर आधारित है.
अब यहां पर सवाल आता है कि भारत जैसे देश में जहां अलग-अलग धर्म के मानने वाले रहते हैं, अलग-अलग आस्थाएं हैं, मान्यताएं हैं, ऐसे में अगर सरकार सबके लिए एक कानून लाती है, तो उसे लागू कैसे किया जाएगा?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)