बात 1996 की है. लोकसभा में विश्वासमत पर गरमागर्म चर्चा चल रही थी. दोनों तरफ ताने और आरोपों की झड़ी लगी थी और लोकसभा में बैठे सभी 543 सदस्यों के चेहरों पर तनाव और गुस्सा दिख रहा था. और तब बोलने के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी खड़े हुए.. उन्होंने कहा सब कहते हैं वाजपेयी तो अच्छा है पर पार्टी ठीक नहीं है. तो बताइए कि अच्छे वाजपेयी का आपका क्या करने का इरादा है.
अटल बिहारी वाजपेयी के ये कहते ही करीब साढ़े पांच सौ ठहाकों से लोकसभा गूंज उठी, माहौल हल्का हो गया. उस वक्त वाजपेयी की 13 दिन की सरकार तो गिर गई लेकिन उनकी लोकप्रियता ऐसी बढ़ी कि करीब डेढ़ साल बाद हुए चुनाव के बाद फिर 2004 तक वो प्रधानमंत्री बने रहे.
मेरे लिए वाजपेयी को संसद में लाइव सुनने का ये पहला मौका था. पत्रकार के तौर पर मैंने अपना करियर न्यूज एजेंसी से शुरु किया था और कुछ ही दिनों में मुझे संसद कवर करने का मौका मिल गया. अटल जी की हाजिर जवाबी और तपाकीपन के किस्से बड़े मशहूर थे. मैंने जाना कि गंभीर से गंभीर तनाव के हालात में भी वाजपेयी जी अपने हाजिर जवाब से दंग कर देते थे.
1. साल 2000 के आसपास की बात है, संसद की लाइब्रेरी की नई बिल्डिंग में एक कार्यक्रम हुआ जिसका संचालन कर रहे एंकर ने कहा " यहां मौजूद भारत के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी" का स्वागत करते हैं. बाद में जब वाजपेयी भाषण देने आए तो मुस्कुराते हुए बोले...
कार्यक्रम में बताया गया कि भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का स्वागत. साथ ही ये भी बता दीजिए कि यहां भारत के अलावा और किस देश के प्रधानमंत्री आए हैं. फिर उन्होंने जोड़ा यहां एक ही प्रधानमंत्री मौजूद है, जाहिर है वो भारत का ही है.
2. अटल बिहारी वाजपेयी के पास हिंदी शब्दों का भंडार था और उन्होंने शब्दों का इस्तेमाल करना बखूबी आता था. इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि हिंदी के शब्दों का उनसे बड़ा पारखी राजनेता अभी तक कोई नहीं हुआ. इसके साथ ही उनमें वो चातुर्य़ था कि अपने ऊपर हमले का रुख दूसरी तरफ मोड़ देते थे.
मामला शायद 2002-03 के बीच का है जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं. राज्यसभा की बैठक चल रही थी तभी खबर आई कि अमरसिंह के गाजियाबाद स्थिति दफ्तर में छापा पड़ा. जाहिर है समाजवादी पार्टी के सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री वाजपेयी उस वक्त राज्यसभा में मौजूद थे उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा ...
मैंने पता लगाया है, अमरसिंह के यहां छापे की कार्रवाई में केंद्र का कोई हाथ नहीं है, ये राज्य सरकार की “कारस्तानी” है. बस क्या था समाजवादी पार्टी के सांसद चुप हो गए और बीएसपी के सांसद “कारस्तानी” शब्द का विरोध करने लगे.
3. वाजपेयी की कमाल अदा थी कि वो विरोधियों की कड़ी आलोचना इस अंदाज में कर जाते थे कि विपक्ष को सुननी पड़ती थीं. वो कभी भी विपक्ष शब्द का इस्तेमाल नहीं करते थे, वो हमेशा कहते थे राजनीति में विपक्ष नहीं होता, प्रतिपक्ष होता है. संसद में जब वो प्रधानमंत्री के तौर पर भाषण देते हुए हमेशा नेता विपक्ष, नहीं नेता प्रतिपक्ष कहते थे. उनकी दलील थी कि एक सरकारी पक्ष है तो दूसरा प्रतिपक्ष है, वो भी देश का उतना ही शुभचिंतक है जितनी की सरकार है. पूर्व पीएम का कहना था राजनीति में किसी को शत्रु मानकर चलें तो गलत है, विरोधी हो सकते हैं शत्रु नहीं.
4. एक बार प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी पहली चीन यात्रा के बाद लौटे तो राज्यसभा में उन्होंने यात्रा का ब्यौरा दिया. राज्यसभा में सदस्यों को पीएम या मंत्री के ऐसे बयानों पर स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार होता है. कांग्रेस नेता नटवर सिंह ने इस मौके पर पीएम पर कई सवाल दागे. जवाब में अटल बिहारी मुस्कराते हुए उठे और बोले 1980 में जब मैं जब मैं विदेश मंत्री था तो नटवर सिंह जी रोमानिया में भारत के राजदूत थे.. राज्यसभा में सब हैरत में पड़ गए लेकिन वाजपेयी ये कहकर वापस चीन के मुद्दे पर आ गए.
5. कई बार जब अपने भाषण के दौरान शोर-शराबा बंद कराने का उनका अपना स्टाइल था. वो भाषण इस तरीके से शुरू करते अध्यक्ष जी इस कोलाहल के बाद शांति लौटेगी तो बहुत आभारी रहूंगा बस सदन शांत हो जाता.
6. विश्वासमत पर चर्चा के दौरान जब सदस्य एक दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप और छींटाकशी कर रहे थे तो उन्होंने कहा कमर के नीचे वार नहीं होना चाहिए, नीयत पर शक नहीं होना चाहिए. ये उनका अपने सदस्यों को भी इशारा होता था कि उन्हें व्यक्तिगत आक्षेप बर्दाश्त नहीं.
7. एक बार चर्चा के दौरान जब वाजपेयी ने कहा इस तरह की राजनीति में पसंद नहीं करता तो किसी सदस्य ने कहा तो छोड़ दीजिए. इस पर उन्होंने पलटकर कहा क्या करूं मैं तो छोड़ना चाहता हूं पर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती
8. वाजपेयी विरोधी विचारधारा का भी सम्मान करना बखूबी जानते थे. उन्होंने बताया कि आलोचक होने के बावजूद खूबियों का सम्मान करते आना चाहिए. उन्होंने एक बार लोकसभा में बताया कि "साउथ ब्लॉक में नेहरू जी का एक चित्र लगा रहता था, मैं आते जाते देखता था, नेहरू जी के साथ सदन में नोंकझोंक भी हुआ करती थी. जब मैं 1977 में विदेश मंत्री बना तो मैंने देखा गलियारे में लगा नेहरू जी का चित्र गायब है. मैंने कहा ये चित्र कहां गया, कोई उत्तर नहीं मिला. वो चित्र वहां फिर से लगा दिया गया. क्या इस भावना की कद्र है? क्या देश में ये भावना पनपे. ऐसा नहीं है कि नेहरू जी से मतभेद नहीं थे. मतभेद चर्चा में गंभीर रूप से उभर सामने आते थे. मैंने एक दिन नेहरू जी से कहा आपका मिला जुला व्यक्तित्व है आपमें चर्चिल भी है और चेम्बरलेन भी है. वो नाराज नहीं हुए, शाम को किसी कार्यक्रम में मुलाकात हो गई नेहरू जी बोले आज तो बड़ा जोरदार भाषण दिया है और हंसते हुए चले गए. आजकल ऐसी आलोचना करना दुश्मनी को दावत देना है. लोग बोलना बंद कर देंगे. "
अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ी बहुत सी बातें और यादें संसद के रिकॉर्ड और भाषण टटोलने से मिलती हैं और उस वक्त के उनके साथी सांसद हाजिरजवाबी को याद करते हैं.
- पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव और अटल बिहारी वाजपेयी की खूब गहरी दोस्ती थी. दोनों में खूब छनती थी. एक बार चर्चा के दौरान नरसिंह राव ने उन्हें गुरू कह दिया. बाद में वाजपेयी ने उनसे कहा आज गुरू की जरूरत नहीं गुरुघंटाल की जरूरत है.. एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि कांग्रेस नेता नरसिंह राव से उनकी दोस्ती पर क्या उनकी पार्टी बीजेपी को ऐजरात नहीं होता. तो उन्होंने कहा मैं पार्टी से पूछकर दोस्ती नहीं करता और पार्टी को मेरी दोस्ती पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
- परंपरा बनी रहनी चाहिए सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए
- यूरिया घोटाले पर चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता के तौर पर सरकार पर आरोप लगाते हुए वाजपेयी ने कहा.. अगर पहरा देने वाला कुत्ता ना भौंके तो समझना चाहिए वो चोरों को जानता है और शामिल है.
वाजपेयी वाकई गुरु थे लेकिन वो बातचीत भाषण में लोकलाज और मर्यादा को बहुत अहमियत देते थे. उन्होंने कहा था मैं मृत्यु से नहीं डरता, डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं, लोकपवाद से डरता हूं.
वाजपेयी जी इन तमाम खूबियों से सबकी यादों में अटल रहेंगे.
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