'जवाबदार कोन, उत्तर देनार कोन?' (जवाबदेही किसकी है, उत्तर देने वाला कौन है?)
यह नारा मंगलवार, 20 अगस्त को महाराष्ट्र के ठाणे में सड़कों पर उतरे हजारों क्रोधित नागरिक, शिक्षक और पैरेंट्स लगा रहे थे. ये सभी महाराष्ट्र के बदलापुर के एक स्कूल के अंदर एक सफाई कर्मचारी के हाथों यौन शोषण (Badlapur Sexual Abuse Case) की शिकार हुईं किंडरगार्टन की दो मासूम बच्चियों के लिए न्याय की मांग कर रहे थे.
13-15 अगस्त के बीच कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर स्कूल में नियुक्त एक सफाई कर्मचारी द्वारा 3 और 4 साल की कम से कम दो नाबालिग बच्चियों के साथ यौन शोषण हुआ. यह मामला तब सामने आया जब बच्चियों में से एक ने अपने माता-पिता को इसकी जानकारी दी. इस घटना से बदलापुर में भारी आक्रोश फैल गया और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ.
24 वर्षीय आरोपी, अक्षय शिंदे को पिछले हफ्ते गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन मंगलवार को बदलापुर की सड़कों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारियों अब भी सवाल पूछ रहे हैं कि वास्तव में दोनों नाबालिग बच्चियों के प्रति अपनी जवाबदेही निभाने में कौन विफल रहा?
इस स्टोरी में, हम कुछ प्रमुख सवालों और विफलताओं पर करीब से नजर डालेंगे:
बदलापुर: बच्चियों का यौन शोषण, कौन जवाबदेह? स्कूल में CCTV खराब, सखी सावित्री समिति भी नहीं
1. क्या नौकरी पर रखने से पहले आरोपी का बैकग्राउंड जांचा गया था? उसे लड़कियों के वॉशरूम तक जाने की इजाजत कैसे दी गई?
आरोपी अक्षय शिंदे को स्कूल ने 1 अगस्त को एक प्राइवेट एजेंसी के जरिए कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर काम पर रखा था. इसका मतलब है कि उसने स्कूल में काम शुरू करने के कुछ ही दिनों बाद अपराध किया.
द क्विंट से बात करते हुए, महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (MSCPCR) की अध्यक्ष सुसीबेन शाह ने कहा कि स्कूल की ओर से कई खामियां थीं.
सुसीबेन शाह ने कहा, "हम यकीन से नहीं कह सकते कि आरोपी को काम पर रखने से पहले उसके बैकग्राउंड की जांच की गई थी या नहीं. इसके अलावा, क्या उसका कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड है, इसकी भी जांच करनी होगी. इसकी अभी भी जांच चल रही है."
उन्होंने कहा, "जब स्टाफ की बात आती है तो एक पुरुष स्टाफ युवा लड़कियों के बाथरूम तक कैसे पहुंच सकता है? यह एक गंभीर विफलता थी."
सुसीबेन शाह ने यह भी कहा कि स्कूल और उसका प्रशासन जांच के दायरे में है. देखा जा रहा कि प्रारंभिक जांच में देखी गई खामियों के लिए स्कूल कितना जिम्मेदार था.
उन्होंने कहा, "जो कुछ हुआ उसके लिए स्कूल ऑथोरिटी जिम्मेदार है. जब घटना हुई तब स्कूल चालू था, बच्चियां स्कूल के अंदर थी, इसलिए बच्चियां उनकी कस्टडी में थीं. बच्चियों ने जबतक स्कूल यूनिफॉर्म पहन रखा था, जिम्मेदारी स्कूल की थी. वे इससे भाग नहीं सकते."
Expand2. स्कूल में सीसीटीवी क्यों काम नहीं कर रहे थे?
मंगलवार को महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (MSCPCR) के सदस्यों की प्रारंभिक जांच से पता चला कि भले ही स्कूल कैंपस में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे, लेकिन वे खराब थे.
मार्च 2022 में पुणे के एक स्कूल में 11 वर्षीय लड़की के साथ यौन उत्पीड़न की ऐसी ही घटना हुई थी, जिसके बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार के तत्कालीन राज्य शिक्षा मंत्री ने यह अनिवार्य किया था कि राज्य भर के सभी प्राइवेट स्कूलों में न सिर्फ सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वे सभी काम कर रहे हों.
उस साल दिसंबर में ऐसी ही एक घटना मुंबई के एक स्कूल में हुई थी जहां दो नाबालिग लड़कों ने एक क्लासमेट के साथ यौन उत्पीड़न किया था.
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री ने महाराष्ट्र विधानसभा को आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार "एक्शन प्लान तैयार करने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग और गृह विभाग की एक संयुक्त बैठक करेगी."
2021 में अपने स्कूल सुरक्षा गाइडलाइंस में, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कहा है: "जब तक और जहां भी संभव हो, स्कूल में एंट्री प्वाइंट्स, निकलने के रास्ते और संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं. ऐसे मामलों में रिकॉर्डिंग की उचित निगरानी और स्टोरेज सुनिश्चित किया जाना चाहिए."
मंगलवार को मीडिया को संबोधित करते हुए, राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए एक बार फिर गाइडलाइंस जारी किए जाएंगे और इस बात पर विशेष रूप से जोर दिया जाएगा कि सीसीटीवी का काम करना जरूरी है.
Expand3. स्कूल में 'सखी सावित्री' समिति क्यों नहीं थी?
उठाए जा रहे प्रमुख सवालों में से एक यह भी है कि स्कूल में सखी सवित्रि समिति क्यों नहीं थी और इसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी जिन स्थानीय अधिकारियों पर थी, उनकी क्या भूमिका है.
मार्च 2022 में राज्य सरकार ने स्कूलों में सखी सावित्री समिति के गठन के लिए सरकारी संकल्प जारी किया था. इन समिति में स्कूल की प्रशासनिक समिति के प्रमुख, प्रिंसिपल, एक महिला शिक्षक, एक महिला चिकित्सक, एक आंगनवाड़ी सदस्य, एक पुलिस अधिकारी, एक महिला पैरेंट्स और दो पुरुष और महिला स्टूडेंट को शामिल करना था.
छात्रों और अभिभावकों के बीच समानता स्थापित करने और कोविड से प्रभावित बच्चों की स्कूल वापसी सुनिश्चित करने जैसी कई प्रमुख जिम्मेदारियों के अलावा, ऐसी समिति द्वारा किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कार्य छात्राओं को किसी भी शारीरिक या मानसिक खतरे से खुद को बचाने के लिए शिक्षित करना है.
स्कूल स्तर पर ऐसी समिति से हर महीने स्कूल में एक बार मिलने की उम्मीद की जाती है और सरकार द्वारा शहर/तालुका स्तर के अधिकारियों के साथ गठित सखी सावित्री पैनल को अपनी रिपोर्ट भेजने की भी उम्मीद की जाती है.
सुसीबेन शाह ने क्विंट को बताया कि बदलापुर स्कूल ने ऐसी कोई समिति नहीं बनाई है जबकि ऐसा करना दो साल पहले अनिवार्य बनाया जा चुका है.
इस साल जनवरी में, MSCPCR ने राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर को लेटर लिखकर सवाल उठाया था कि स्कूल या सरकारी स्तर पर समितियां क्यों नहीं बनी हैं. लेटर में, सुसीबेन शाह ने यह भी कहा कि मार्च 2022 में एक सरकारी प्रस्ताव जारी होने के बावजूद, राज्य सरकार ने यह गाइडलाइंस मई 2023 में MSCPCR के हस्तक्षेप के बाद जारी किए.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार लेटर में कहा गया है: "नवंबर 2023 में स्कूल शिक्षा विभाग और बाल अधिकार आयोग द्वारा कार्यान्वयन योजनाओं पर चर्चा के लिए एक संयुक्त बैठक आयोजित की गई थी, और दिसंबर 2023 के अंत तक गाइडलाइंस पर काम करने के आदेश जारी किए गए थे. हालांकि, जमीन पर कोई कार्रवाई नहीं दिख रही है.”
द क्विंट से बात करते हुए, सुसीबेन शाह ने कहा: "मुझे विश्वास दिलाया गया कि (ठाणे में) 1,100 स्कूलों ने सखी सावित्री समिति का गठन किया है. मैं आज एक लेटर लिख रही हूं और एक रिपोर्ट मांग रही हूं कि वे कौन से स्कूल हैं, कौन सी समिति है जो बनाई गई थी, सदस्य कौन हैं और समिति की कितनी बार बैठक हुई है?"
मंगलवार को अपने संबोधन में शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि पूरे महाराष्ट्र में लगभग 82,000 स्कूलों ने पहले ही सखी सावित्री समिति का गठन कर लिया है. हालांकि, स्थानीय निकाय और निजी सहायता प्राप्त सहित कुल 1,11,879 स्कूलों को देखें तो, राज्य के लगभग 27% स्कूलों में अभी भी ऐसी समिति का गठन नहीं हुआ है.
Expand4. क्या FIR दर्ज करने में देरी हुई?
प्रदर्शनकारियों के गुस्से के पीछे प्रमुख कारणों में से एक एफआईआर दर्ज करने में 12 घंटे की कथित देरी थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक परिजन ने दावा किया कि सर्वाइव बच्चियों में से एक की मां को गर्भवती होने के बावजूद 10 घंटे तक पुलिस स्टेशन में इंतजार करना पड़ा और तनाव-ट्रॉमा के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
कथित देरी पर डीसीपी सुधाकर पठारे ने मंगलवार को कहा, "दोनों बच्ची 3-4 साल की हैं. सबसे पहले, माता-पिता की मदद से उनके आरोपों को पूरी तरह से समझना जरूरी था. उसके बाद, भारतीय न्याय संहिता की नई धाराओं के तहत विवरण दर्ज करना, फिर अंत में रिपोर्ट दाखिल करना एक समय लेने वाली प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में 11-12 घंटे नहीं लगे जैसा कि दावा किया जा रहा है.”
राज्य के डिप्टी सीएम और गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यालय ने कहा कि प्रक्रिया के समय मौजूद पुलिस इंसपेक्टर, सहायक पुलिस सब-इंसपेक्टप और हेड कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया है.
सुसीबेन शाह ने क्विंट से कहा, "मैंने हर क्राइम ब्रांच में एक अलग संरचना की मांग की है जो पहले से मौजूद पुलिस स्टेशन में एक प्रकार का मिनी पुलिस स्टेशन होगा जहां अधिकारी केवल महिलाओं और बच्चों से संबंधित मामलों को हैंडल करेंगे. अगर कोई शिकायत आती है या कोई किसी महिला या बच्चे के साथ मारपीट या दुर्व्यवहार की शिकायत लेकर आता है, तो इसे उन्हें ही हैंडल करना होगा."
उन्होंने आगे कहा, "जवाबदेही तय करनी होगी. प्राइमरी स्कूल के स्तर पर दो करोड़ बच्चे हैं. इसलिए, जवाबदेही तय करनी होगी चाहे वह पुलिस हो, स्कूल हो, सरकार हो, पत्रकार हों या माता-पिता हों. जब तक हर कोई अपने हिस्से की जिम्मेदारी नहीं निभाएगा, चीजें नहीं बदलेंगी."
मंगलवार को, शिक्षा मंत्री केसरकर ने स्कूलों के लिए नए गाइंडलाइन जारी किए, जैसे कि कर्मचारियों का नियमित रोटेशन, छोटे बच्चों के लिए अधिक महिला कर्मचारियों की उपस्थिति, स्कूलों में प्रमुख स्थानों पर इमरजेंसी अलार्म लगाना, छात्राओं के हिस्से के कैंपस में सफाई और रखरखाव के लिए महिला कर्मचारी को ही रखना और यौन उत्पीड़न कानूनों पर कर्मचारियों को शिक्षित करना.
सखी सावित्री समितियों के गठन के साथ-साथ, सरकार ने विशाखा समितियों के गठन का भी आदेश दिया, जिसमें छोटे बच्चों से जुड़ें मुद्दों को साझा करने के लिए सीनियर छात्र शामिल होंगे. कहा गया है कि सभी स्कूलों को आठ दिनों के भीतर इसका पालन करना होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
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क्या नौकरी पर रखने से पहले आरोपी का बैकग्राउंड जांचा गया था? उसे लड़कियों के वॉशरूम तक जाने की इजाजत कैसे दी गई?
आरोपी अक्षय शिंदे को स्कूल ने 1 अगस्त को एक प्राइवेट एजेंसी के जरिए कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर काम पर रखा था. इसका मतलब है कि उसने स्कूल में काम शुरू करने के कुछ ही दिनों बाद अपराध किया.
द क्विंट से बात करते हुए, महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (MSCPCR) की अध्यक्ष सुसीबेन शाह ने कहा कि स्कूल की ओर से कई खामियां थीं.
सुसीबेन शाह ने कहा, "हम यकीन से नहीं कह सकते कि आरोपी को काम पर रखने से पहले उसके बैकग्राउंड की जांच की गई थी या नहीं. इसके अलावा, क्या उसका कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड है, इसकी भी जांच करनी होगी. इसकी अभी भी जांच चल रही है."
उन्होंने कहा, "जब स्टाफ की बात आती है तो एक पुरुष स्टाफ युवा लड़कियों के बाथरूम तक कैसे पहुंच सकता है? यह एक गंभीर विफलता थी."
सुसीबेन शाह ने यह भी कहा कि स्कूल और उसका प्रशासन जांच के दायरे में है. देखा जा रहा कि प्रारंभिक जांच में देखी गई खामियों के लिए स्कूल कितना जिम्मेदार था.
उन्होंने कहा, "जो कुछ हुआ उसके लिए स्कूल ऑथोरिटी जिम्मेदार है. जब घटना हुई तब स्कूल चालू था, बच्चियां स्कूल के अंदर थी, इसलिए बच्चियां उनकी कस्टडी में थीं. बच्चियों ने जबतक स्कूल यूनिफॉर्म पहन रखा था, जिम्मेदारी स्कूल की थी. वे इससे भाग नहीं सकते."
स्कूल में सीसीटीवी क्यों काम नहीं कर रहे थे?
मंगलवार को महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (MSCPCR) के सदस्यों की प्रारंभिक जांच से पता चला कि भले ही स्कूल कैंपस में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे, लेकिन वे खराब थे.
मार्च 2022 में पुणे के एक स्कूल में 11 वर्षीय लड़की के साथ यौन उत्पीड़न की ऐसी ही घटना हुई थी, जिसके बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार के तत्कालीन राज्य शिक्षा मंत्री ने यह अनिवार्य किया था कि राज्य भर के सभी प्राइवेट स्कूलों में न सिर्फ सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वे सभी काम कर रहे हों.
उस साल दिसंबर में ऐसी ही एक घटना मुंबई के एक स्कूल में हुई थी जहां दो नाबालिग लड़कों ने एक क्लासमेट के साथ यौन उत्पीड़न किया था.
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री ने महाराष्ट्र विधानसभा को आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार "एक्शन प्लान तैयार करने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग और गृह विभाग की एक संयुक्त बैठक करेगी."
2021 में अपने स्कूल सुरक्षा गाइडलाइंस में, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कहा है: "जब तक और जहां भी संभव हो, स्कूल में एंट्री प्वाइंट्स, निकलने के रास्ते और संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं. ऐसे मामलों में रिकॉर्डिंग की उचित निगरानी और स्टोरेज सुनिश्चित किया जाना चाहिए."
मंगलवार को मीडिया को संबोधित करते हुए, राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए एक बार फिर गाइडलाइंस जारी किए जाएंगे और इस बात पर विशेष रूप से जोर दिया जाएगा कि सीसीटीवी का काम करना जरूरी है.
स्कूल में 'सखी सावित्री' समिति क्यों नहीं थी?
उठाए जा रहे प्रमुख सवालों में से एक यह भी है कि स्कूल में सखी सवित्रि समिति क्यों नहीं थी और इसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी जिन स्थानीय अधिकारियों पर थी, उनकी क्या भूमिका है.
मार्च 2022 में राज्य सरकार ने स्कूलों में सखी सावित्री समिति के गठन के लिए सरकारी संकल्प जारी किया था. इन समिति में स्कूल की प्रशासनिक समिति के प्रमुख, प्रिंसिपल, एक महिला शिक्षक, एक महिला चिकित्सक, एक आंगनवाड़ी सदस्य, एक पुलिस अधिकारी, एक महिला पैरेंट्स और दो पुरुष और महिला स्टूडेंट को शामिल करना था.
छात्रों और अभिभावकों के बीच समानता स्थापित करने और कोविड से प्रभावित बच्चों की स्कूल वापसी सुनिश्चित करने जैसी कई प्रमुख जिम्मेदारियों के अलावा, ऐसी समिति द्वारा किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कार्य छात्राओं को किसी भी शारीरिक या मानसिक खतरे से खुद को बचाने के लिए शिक्षित करना है.
स्कूल स्तर पर ऐसी समिति से हर महीने स्कूल में एक बार मिलने की उम्मीद की जाती है और सरकार द्वारा शहर/तालुका स्तर के अधिकारियों के साथ गठित सखी सावित्री पैनल को अपनी रिपोर्ट भेजने की भी उम्मीद की जाती है.
सुसीबेन शाह ने क्विंट को बताया कि बदलापुर स्कूल ने ऐसी कोई समिति नहीं बनाई है जबकि ऐसा करना दो साल पहले अनिवार्य बनाया जा चुका है.
इस साल जनवरी में, MSCPCR ने राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर को लेटर लिखकर सवाल उठाया था कि स्कूल या सरकारी स्तर पर समितियां क्यों नहीं बनी हैं. लेटर में, सुसीबेन शाह ने यह भी कहा कि मार्च 2022 में एक सरकारी प्रस्ताव जारी होने के बावजूद, राज्य सरकार ने यह गाइडलाइंस मई 2023 में MSCPCR के हस्तक्षेप के बाद जारी किए.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार लेटर में कहा गया है: "नवंबर 2023 में स्कूल शिक्षा विभाग और बाल अधिकार आयोग द्वारा कार्यान्वयन योजनाओं पर चर्चा के लिए एक संयुक्त बैठक आयोजित की गई थी, और दिसंबर 2023 के अंत तक गाइडलाइंस पर काम करने के आदेश जारी किए गए थे. हालांकि, जमीन पर कोई कार्रवाई नहीं दिख रही है.”
द क्विंट से बात करते हुए, सुसीबेन शाह ने कहा: "मुझे विश्वास दिलाया गया कि (ठाणे में) 1,100 स्कूलों ने सखी सावित्री समिति का गठन किया है. मैं आज एक लेटर लिख रही हूं और एक रिपोर्ट मांग रही हूं कि वे कौन से स्कूल हैं, कौन सी समिति है जो बनाई गई थी, सदस्य कौन हैं और समिति की कितनी बार बैठक हुई है?"
मंगलवार को अपने संबोधन में शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि पूरे महाराष्ट्र में लगभग 82,000 स्कूलों ने पहले ही सखी सावित्री समिति का गठन कर लिया है. हालांकि, स्थानीय निकाय और निजी सहायता प्राप्त सहित कुल 1,11,879 स्कूलों को देखें तो, राज्य के लगभग 27% स्कूलों में अभी भी ऐसी समिति का गठन नहीं हुआ है.
क्या FIR दर्ज करने में देरी हुई?
प्रदर्शनकारियों के गुस्से के पीछे प्रमुख कारणों में से एक एफआईआर दर्ज करने में 12 घंटे की कथित देरी थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक परिजन ने दावा किया कि सर्वाइव बच्चियों में से एक की मां को गर्भवती होने के बावजूद 10 घंटे तक पुलिस स्टेशन में इंतजार करना पड़ा और तनाव-ट्रॉमा के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
कथित देरी पर डीसीपी सुधाकर पठारे ने मंगलवार को कहा, "दोनों बच्ची 3-4 साल की हैं. सबसे पहले, माता-पिता की मदद से उनके आरोपों को पूरी तरह से समझना जरूरी था. उसके बाद, भारतीय न्याय संहिता की नई धाराओं के तहत विवरण दर्ज करना, फिर अंत में रिपोर्ट दाखिल करना एक समय लेने वाली प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में 11-12 घंटे नहीं लगे जैसा कि दावा किया जा रहा है.”
राज्य के डिप्टी सीएम और गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यालय ने कहा कि प्रक्रिया के समय मौजूद पुलिस इंसपेक्टर, सहायक पुलिस सब-इंसपेक्टप और हेड कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया है.
सुसीबेन शाह ने क्विंट से कहा, "मैंने हर क्राइम ब्रांच में एक अलग संरचना की मांग की है जो पहले से मौजूद पुलिस स्टेशन में एक प्रकार का मिनी पुलिस स्टेशन होगा जहां अधिकारी केवल महिलाओं और बच्चों से संबंधित मामलों को हैंडल करेंगे. अगर कोई शिकायत आती है या कोई किसी महिला या बच्चे के साथ मारपीट या दुर्व्यवहार की शिकायत लेकर आता है, तो इसे उन्हें ही हैंडल करना होगा."
उन्होंने आगे कहा, "जवाबदेही तय करनी होगी. प्राइमरी स्कूल के स्तर पर दो करोड़ बच्चे हैं. इसलिए, जवाबदेही तय करनी होगी चाहे वह पुलिस हो, स्कूल हो, सरकार हो, पत्रकार हों या माता-पिता हों. जब तक हर कोई अपने हिस्से की जिम्मेदारी नहीं निभाएगा, चीजें नहीं बदलेंगी."
मंगलवार को, शिक्षा मंत्री केसरकर ने स्कूलों के लिए नए गाइंडलाइन जारी किए, जैसे कि कर्मचारियों का नियमित रोटेशन, छोटे बच्चों के लिए अधिक महिला कर्मचारियों की उपस्थिति, स्कूलों में प्रमुख स्थानों पर इमरजेंसी अलार्म लगाना, छात्राओं के हिस्से के कैंपस में सफाई और रखरखाव के लिए महिला कर्मचारी को ही रखना और यौन उत्पीड़न कानूनों पर कर्मचारियों को शिक्षित करना.
सखी सावित्री समितियों के गठन के साथ-साथ, सरकार ने विशाखा समितियों के गठन का भी आदेश दिया, जिसमें छोटे बच्चों से जुड़ें मुद्दों को साझा करने के लिए सीनियर छात्र शामिल होंगे. कहा गया है कि सभी स्कूलों को आठ दिनों के भीतर इसका पालन करना होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)