बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' की स्थिति सरकारी फाइलों में कुछ है और इसकी जमीनी हकीकत कुछ और. इस योजना के लिए जारी किए गए फंड का एक बड़ा हिस्सा खर्च करने में नाकामयाब रहने पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, यानी CAG ने कड़ी आलोचना की है.
एक्टिविस्ट विहार दुर्वे की ओर से दाखिल आरटीआई के जवाब में मिली कैग की रिपोर्ट में ये बातें सामने आई हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से 20 फीसदी से कम फंड खर्च किया गया है.
बगैर जांच के ही जारी होता रहा फंड
इसके अलावा, महिला और बाल विकास मंत्रालय पिछले फंडों के इस्तेमाल की जांच किए बगैर ही राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को नए फंड जारी करता रहा है. लिंग अनुपात में गिरावट को नियंत्रित करने, बच्चियों को सुरक्षा देने और लड़कियों की शिक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अप्रैल 2015 में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की गई थी.
चुने गए 100 जिलों में 2016-17 तक इस योजना को लागू करने के लिए केंद्र की ओर से महिला और बाल विकास मंत्रालय को 19, 999 लाख रुपये का कुल बजट आवंटित किया गया था.
आंकड़े बताते हैं कि 2016-17 तक 100 जिलों में इस योजना को पूरा करने के लिए मंत्रालय की ओर से राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को महज 5,489 लाख रुपये ही जारी किए गए.
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्कीम को जमीन पर उतारने के लिए राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से महज 1,865 लाख रुपये इस्तेमाल / खर्च किए गए. बाकी बचे 3,624 लाख अभी भी खर्च नहीं हुए हैं.
2016-17 में राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के पास 2015-16 में जारी किये गए फंड में से पहले से ही 4,410.46 लाख रुपये की बची हुई राशि थी. इसके बावजूद, मंत्रालय ने इस योजना के तहत 786.4 लाख रुपये उन्हें जारी किए.
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि 2017-18 में नया फंड जारी किया गया जिससे इसकी कुल राशि बढ़कर 5,489 लाख रुपये हो गई थी.
सीएजी ने कहा:
“मार्च 2017 तक राज्य सरकारों के पास 3624.05 लाख रुपये की बची हुई राशि होने के बावजूद मंत्रालय ने 2017-18 के दौरान उन्हें 3298.85 लाख रुपये के नए फंड जारी किए. ये खर्च टाला जा सकता था.”
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सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक ये है ऐसे टॉप 10 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों की लिस्ट-
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के उद्देश्यों में से एक लिंग अनुपात को नियंत्रित करना था. लेकिन नीचे दिखाए गए ग्राफिक्स में नीति आयोग के 2015 के आंकड़े बताते हैं कि सभी 10 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में प्रति 1000 पुरुषों में स्त्रियों की संख्या में गिरावट आई है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि यह योजना भी अपने दूसरे उद्देश्य को हासिल करने में नाकामयाब रही है. 2014-16 के बीच सभी 10 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में बच्चों के खिलाफ अपराध लगातार बढ़े हैं, और इनमें उत्तर प्रदेश अब देश में सबसे आगे है.
2014-2017 के बीच 10 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में लड़कियों की साक्षरता दर में मामूली सुधार हुआ है.
सीएजी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुछ राज्य मंत्रालय को अधूरे 'यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट' दाखिल करके ज्यादा फंड हासिल करने में कामयाब रहे. ये योजना के दिशानिर्देशों का पूरी तरह उल्लंघन है.
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