सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 28 जुलाई को एल्गार परिषद मामले (Elgar Parishad case) के दो आरोपियों, वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा (Vernon Gonsalves and Arun Ferreira) को जमानत दे दी. इसी केस के अन्य आरोपियों के परिवारों ने कहा कि फैसले ने भले ही कुछ आशा जगाई है "लेकिन इसका बहुत अधिक जश्न नहीं मनाया जाना चाहिए." इसके अलावा, कुछ परिजनों ने "असंवेदनशील जमानत शर्तों" पर भी सवाल उठाया है.
जेल में बंद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना ने द क्विंट से कहा, “सच्चाई यह है कि उन्हें जमानत मिलने में पांच साल लग गए. यह स्पष्ट है कि उन्हें गिरफ्तारी के दस दिनों के भीतर ही जमानत मिल जानी चाहिए थी. वास्तव में, उन्हें गिरफ्तार ही नहीं किया जाना चाहिए था.''
“हमें ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया गया है कि हम इस तरह देरी से आए जमानत के फैसलों का जश्न मना रहे हैं. इसमें जश्न मनाने जैसी कोई बात नहीं है. हमें उस अन्याय पर सवाल उठाना जारी रखना चाहिए जिसका अन्य लोग अभी भी सामना कर रहे हैं.''जेनी रोवेना
एल्गार परिषद मामले में आरोपियों पर प्रतिबंधित CPI (माओवादी) के कथित सदस्य होने और आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाने सहित अन्य आरोपों में कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम/UAPA के तहत केस दर्ज हैं.
शुक्रवार को जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने उन्हें जमानत देते हुए कहा कि “बेशक उनके खिलाफ लगे आरोप गंभीर हैं, लेकिन सिर्फ इसी वजह से उन्हें जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता.”
"जमानत की शर्तें बहुत कड़ी हैं": वरवरा राव के भतीजे
इस मामले में जिन लोगों को पहले जमानत मिली थी, उनमें अस्सी वर्षीय कवि वरवरा राव भी शामिल हैं. उन्हें उनकी सेहत इतनी खराब होने के बाद मेडिकल आधार पर जमानत दी गई थी. स्थिति यह हो गयी थी कि उनके रिश्तेदारों को डर था कि उन्हें और दिनों तक जेल में रखने से उनके लिए "मौत की घंटी बज जाएगी".
लेकिन उनके भतीजे एन वेणुगोपाल ने कहा कि मामले के सभी आरोपियों के लिए जमानत की शर्तें "बहुत असंवेदनशील" हैं.
वेणुगोपाल ने द क्विंट से कहा, “जेल से बाहर आना किसी भी दिन एक खुशी का मौका होता है. लेकिन जमानत की शर्तें बहुत कड़ी और असंवेदनशील हैं. उदाहरण के लिए, सभी के सामने यह शर्त रखी गयी है कि उन्हें महाराष्ट्र के अंदर ही रहना है. यह उन लोगों के साथ अन्याय है जो अन्य शहरों से हैं. मामले में दो आरोपियों के अलावा बाकी सभी गैर-महाराष्ट्र निवासी हैं.''
“यह उनकी (वरवरा राव की) पत्नी के लिए बड़ी परेशानी का मसला बन गया है क्योंकि वह मराठी या अंग्रेजी या हिंदी नहीं जानती हैं. वह केवल तेलुगु जानती है और इसलिए महाराष्ट्र तक सीमित रहने के कारण उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है.''एन वेणुगोपाल
फरेरा और गोंसाल्वेस की जमानत शर्तों में कहा गया है कि वे ट्रायल कोर्ट की अनुमति प्राप्त किए बिना महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगे, अपने पासपोर्ट NIA को सौंप देंगे और जांच अधिकारी (IO) को अपना एड्रेस और मोबाइल फोन नंबर देंगे.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इसके अलावा, उन्हें केवल एक मोबाइल कनेक्शन रखना होगा, अपने फोन को हर समय चार्ज और एक्टिव रखना होगा. अपने मोबाइल फोन की लोकेशन स्टेटस को 24 घंटे एक्टिव मोड में रखना होगा, और उनके फोन को NIA के IO के साथ जोड़ा जाएगा ताकि वह किसी भी समय उनकी सटीक लोकेशन जान सकें.
एन वेणुगोपाल ने कहा, “आप यह तर्क दे सकते हैं कि आपके अनुसार आरोपियों के भागने का खतरा है और इसलिए वे उनके पासपोर्ट ले लिए हैं. लेकिन हर वक्त लोकेशन शेयर करना उनकी निजता/प्राइवेसी का उल्लंघन लगता है. ये सही नहीं है. यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है इसलिए सभी को इसका सम्मान करना चाहिए, लेकिन यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं करता है.''
"धैर्य और आशा है"
लेकिन आरोपियों के दोस्तों और परिवार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश आशा भी लेकर आया है.
गौतम नवलखा कीं पार्टनर सहबा हुसैन ने द क्विंट को बताया, "आदेश बहुत आशाजनक है. यह हम सभी के लिए बड़ी राहत का क्षण है. हम भी पिछले पांच वर्षों से इसमें हैं, मैं 72 वर्ष की हूं और गौतम 71 वर्ष के हैं. इस मामले में सभी आरोपियों के साथ-साथ बाहर उनके परिजनों की जिंदगी भी एकदम बदल गयी है. लेकिन हम धैर्यवान हैं और हम आशान्वित हैं.''
नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके गिरते स्वास्थ्य पर ध्यान देने के बाद, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा को घर में नजरबंद कर दिया गया था. इससे पहले, सत्तर साल के नवलखा को तलोजा सेंट्रल जेल में रखा गया था. उनकी नजरबंदी की शर्त है कि उनपर निरंतर निगरानी रखी जायेगी और वे बॉम्बे या यहां तक कि आवास (पुलिस कर्मियों के साथ पैदल चलने को छोड़कर) नहीं छोड़ सकते हैं.
इस मामले में गोंसाल्वेस, फरेरा, राव और नवलखा के अलावा कुछ आरोपी हैं: सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुंबडे, सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत.
16 आरोपियों में से अधिकांश अभी भी कैद में हैं. फादर स्टेन स्वामी का 5 जुलाई 2021 को एक जेल में बंद विचाराधीन कैदी के रूप में निधन हो गया. उनकी मृत्यु उनकी जमानत पर सुनवाई से एक दिन पहले हुई. अपनी मौत से कुछ ही हफ्ते पहले उन्होंने अदालत को बताया था कि उनके "शारीरिक कार्यों" में लगातार गिरावट आ रही थी. अपनी मृत्यु के समय वह 84 वर्ष के थे और उन्होंने तब कहा था कि वह केवल घर जाना चाहते हैं.
फादर स्टेन स्वामी को किसने मारा?
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