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13 जिलों में प्रभाव-लवकुश समीकरण पर डेंट, कुशवाहा के जाने से नीतीश की मुश्किल?

Upendra Kushwaha: JDU छोड़ने के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि उनकी नई पार्टी RLJP होगी.

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"हम लोगों ने तय किया है कि हम नया दल बनाएंगे और हम लोग उस दल के साथ आगे बढ़ेंगे. नई पार्टी का अध्यक्ष मुझे बनाया गया है. पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक जनता दल है"...ये बातें कहते हुए उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने तीसरी बार जेडीयू के 'तीर' को छोड़ दिया.

उपेंद्र कुशवाहा ने दावा किया कि RLJP कर्पूरी ठाकुर की विरासत को आगे बढ़ाएगी और RJD के साथ हुए समझौते को खारिज करने की दिशा में काम करेगी. अब सवाल है कि इस उठा-पटक की कहानी क्या है और इसका बिहार की सियासत पर कितना असर पड़ेगा?

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उपेंद्र कुशवाहा ने क्यों छोड़ा JDU?

पिछले एक महीने में हुए सियासी घटनाक्रम को देखें तो समझ आयेगा कि जो आज (20 फरवरी) हुआ है, उसकी पटकथा पहले ही दिन से लिख दी गई थी, सोमवार को बस उसे अंजाम दिया गया. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा,

"नीतीश कुमार आज अपने दम पर कार्रवाई करने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्होंने कभी उत्तराधिकारी बनाने का प्रयास नहीं किया, अगर नीतीश कुमार ने उत्तराधिकारी चुना होता, तो उन्हें इसके लिए पड़ोसियों की ओर देखने की जरूरत नहीं होती."

इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि नीतीश कुमार उन्हें (उपेंद्र कुशवाहा) अपना उत्तराधिकारी न बनाते, अति पिछड़ा समाज के किसी व्यक्ति को बनाते, लेकिन उन्होंने पड़ोसियों की तरफ देखना शुरू कर दिया. मतलब साफ है कि उपेंद्र कुशवाहा ये मान रहे थे कि जेडीयू में नीतीश के बाद वही कमान संभालेंगे, जो होता नहीं दिख रहा था

इसके अलावा कुछ महीने पहले चर्चा ये भी थी कि JDU उपेंद्र कुशवाहा को डिप्टी सीएम बनाकर सरकार में शामिल करेगी लेकिन नीतीश कुमार ने बाद में यह कहकर कुशवाहा की उम्मीद पर पानी फेर दिया कि JDU से कोई दूसरा डिप्टी सीएम नहीं बनने जा रहा है.

RLJP बनाने से उपेंद्र कुशवाहा को क्या फायदा?

बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स हावी है. राज्य में 7 से 8 फीसदी आबादी कुशवाहा की है और 12 से 13 जिलों में उपेंद्र कुशवाहा का प्रभाव है. जेडीयू से अलग होने के बाद अब उपेंद्र कुशवाहा खुलकर बैटिंग करेंगे और जनता के बीच ये संदेश देंगे कि वो लव-कुश समाज को मजबूत करने नीतीश के पास गए थे लेकिन वहां उनको सम्मान नहीं दिया गया. ऐसे में अब वो नई पार्टी के जरिए समाज के उत्थान के लिए काम करेंगे.

उपेंद्र कुशवाहा को क्या नुकसान?

दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा मौजूदा समय में अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. वो जानते हैं कि उन्हें राजनीति में आगे बढ़ने के लिए एक सहारे की जरूरत है, इसलिए वो समय-समय पर BJP, RJD और JDU का हाथ थामते रहे हैं. आगे भी उनकी इन राह बिना किसी बड़े दल के सहयोग के बढ़ने नहीं वाली है. इसलिए वो भविष्य में जल्द ही गठबंधन करने की सोचेंगे.

उपेंद्र कुशवाहा के पास क्या विकल्प?

वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि 2020 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने कई सीटों पर JDU को नुकसान पहुंचाया था. इसका अंदाजा नीतीश कुमार को था इसलिए वो उन्हें पार्टी में लेकर आए और संसदीय दल का अध्यक्ष और MLC बनाया था. लेकिन मौजूदा जेडीयू के गठबंधन से कई पार्टी के नेता खुश नहीं है, जो अभी किसी कारणवश शांत हैं, भविष्य में वो भी मौका तलाश सकते हैं.

उपेंद्र कुशवाहा के पास विकल्प ये है कि वो जमीन पर जाकर अपनी ताकत का एहसास करायें और 2024 के पहले बीजेपी के साथ गठबंधन कर सीटों को लेकर मोलभाव करें.

उपेंद्र कुशवाहा के जानें से नीतीश को नुकसान?

क्विंट हिंदी से बात करते हुए राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा का बिहार की सियासत में प्रभाव है, तभी नीतीश ने उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, राज्यसभा सांसद और विधान पार्षद तक बनाया. वो लवकुश समीकरण को साध कर बीजेपी पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाना चाहते थे. लेकिन महागठबंधन में जाने से जाति समीकरण इतना मजबूत हो गया कि अब कुशवाहा नीतीश के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गए हैं.

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BJP को उपेंद्र से क्या उम्मीद?

वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडेय का मानना है कि बीजेपी का टारगेट नीतीश कुमार हैं और उनके RJD के साथ जाने से अपर कास्ट नाराज है. पार्टी के पास अभी राज्य में 17 सांसद हैं और वो 2024 में इसे बढ़ाकर 25 से 30 करना चाहती है जिससे वो महागठबंधन से मुकाबला कर सके इसलिए वो आरसीपी सिंह, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को ऑपरेट कर रही है.

बिहार बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि जेडीयू में नीतीश के बाद कोई जनाधार, आधार और प्रभाव वाला व्यक्ति है तो वो उपेंद्र कुशवाहा हैं.

दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा के जाने आने से नीतीश के लवकुश समीकरण को धक्का लगेगा? इसलिए बीजेपी अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है. हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक इतिहास को खंगाले तो पता चलता है कि उन्होंने 9 बार चुनाव लड़ा लेकिन जीत उन्हें सिर्फ 2 बार मिली. ऐसे में उन्हें अपनी मजबूत स्थिति का एहसास कराना होगा, तभी वो कुछ कामयाब हो पाएंगे वरना, उनका नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा.

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