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उपेंद्र कुशवाहा JDU से हुए अलग, बोले-नीतीश जिस राह चल रहे वो बिहार के लिए बुरा

Upendra Kushwaha की नजर डिप्टी मेयर की कुर्सी पर थी?

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पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने सोमवार को जेडीयू छोड़ने का ऐलान कर दिया और साथ ही, अपनी नई पार्टी की भी घोषणा कर दी. कुशवाहा की नई पार्टी का नाम "राष्ट्रीय लोक जनता दल" (RLJD) होगा. उन्होंने कहा कि सीएम नीतीश कुमार अब अपनी मनमर्जी से काम नहीं कर रहे हैं, वे अब अपने आसपास के लोगों के सुझाव के अनुसार काम कर रहे हैं. यह तीसरा मौका है जब उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ा है.

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आज से एक नई राजनीतिक पारी की शुरुआत हो रही है. कुछ को छोड़कर JDU में हर कोई चिंता व्यक्त कर रहा था, निर्वाचित सहयोगियों के साथ बैठकर निर्णय लिया गया. नीतीश कुमार ने शुरुआत में अच्छा किया, लेकिन अंत में जिस रास्ते पर वे चले वह उनके और बिहार के लिए बुरा है.

नीतीश कुमार ने नहीं चुना उत्तराधिकारी-उपेंद्र कुशवाहा

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, "नीतीश कुमार आज अपने दम पर कार्रवाई करने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्होंने कभी उत्तराधिकारी बनाने का प्रयास नहीं किया, अगर नीतीश कुमार ने उत्तराधिकारी चुना होता, तो उन्हें इसके लिए पड़ोसियों की ओर देखने की जरूरत नहीं होती."

पटना में बागियों के साथ बैठक, JDU के 'कुछ' नेता शामिल

63 साल के पूर्व केंद्रीय मंत्री, कुशवाहा ने 19 फरवरी को पटना के सिन्हा लाइब्रेरी के सभाकक्ष में अपने समर्थकों के साथ बैठक की जिसमें वैशाली, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण पटना, नालंदा और भोजपुर जैसे जिलों सहित बिहार के विभिन्न हिस्सों से उनके गुट के कार्यकर्ता शामिल हुए हैं. रविवार को उपेंद्र कुशवाहा ने बैठक में बहुत कुछ नहीं कहा था, लेकिन उन्होंने ट्वीट पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की बात कही थी.

हालांकि इस बैठक में जेडीयू के कुछ नेता भी शामिल हुए और यह बात भी सामने आई कि वो तेजस्वी यादव के आगे नेतृत्व से खुश नहीं हैं.

जेडीयू प्रदेश उपाध्यक्ष और कुशवाहा गुट के जितेंद्र नाथ ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने विवेक से पार्टी नहीं चला रहे हैं. नीतीश कुमार आज बेबस हैं. नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति से भगाने की साजिश हो रही है और फिर सत्ता उनको सौंप दी जाए जिनके खिलाफ 1994 में बगावत शुरू हुई थी.

इस बैठक में एमएलसी रामेश्वर महतो भी शामिल हुए थे. हालांकि बैठक में कोई ऐसा बड़ा चेहरा नजर नहीं आया जिससे ये कहा जा सके कि नीतीश कुमार की पार्टी में फूट हो गई है. बल्कि बैठक में मौजूद ज्यादातर नेता उपेंद्र कुशवाहा गुट के ही माने जाते रहे हैं.

दिक्कत तेजस्वी से या डिप्टी मेयर की कुर्सी पर थी नजर?

दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा अचानक से बागी नहीं हुए हैं. कुछ ही दिन पहले बिहार में एक खबर की चर्चा जोरों पर थी कि बिहार सरकार में जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है और उपेंद्र कुशवाहा को दूसरे उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जा सकती है. हालांकि, उसके बाद नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर बयान दिया था कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है और बिहार में तेजस्वी यादव के अलावा दूसरा उपमुख्यमंत्री नहीं होगा.

इस मामले पर उपेंद्र कुशवाहा ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन नीतीश के इस बयान के बाद से ही कुशवाहा के तेवर बदले-बदले नजर आने लगे. इसके बाद कुशवाहा इलाज के लिए दिल्ली एम्स पहुंच गए. फिर इलाज के दौरान बीजेपी के कई नेताओं ने उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात की थी. तस्वीरें सामेन आईं, सवाल उठने लगा. कयास लगने लगे कि उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी में शामिल होने वाले हैं.

उपेंद्र कुशवाहा सफाई देते रहे कि किसी नेता से मुलाकात का मतलब बीजेपी के संपर्क में होना नहीं. तब कुशवाहा ने कहा था,

"बीजेपी के नेताओं से हमारी पार्टी में जो जितना बड़ा नेता है वो उतना ही ज्यादा संपर्क में है. उपेंद्र कुशवाहा के साथ एक तस्वीर क्या आ गई उसे बात का बतंगड़ बना दिया गया. हम ये कह रहे हैं कि हमारी पार्टी ही दो से तीन बार बीजेपी के संपर्क में गई और उसके संपर्क से अलग हो गई. पूरी पार्टी ही जब अपनी रणनीति के हिसाब से जो होता है वो करती है तो फिर मेरे बारे में चर्चा करना, ये कोई बात हुई क्या? जेडीयू बीमार है, इसे स्वीकारना होगा. जब स्वीकर करेंगे तभी तो इलाज होगा.

अब उपेंद्र के ऐसे बोल नीतीश के कान में पड़े तो उन्होंने भी साफ दिया ये आते जाते रहते हैं. अब इनको जहां जाना है जाएं.

क्विंट हिंदी से बात करते हुए राजनीतिक विशलेषक संजय कुमार कहते हैं कि महागठबंधन के साथ आने से नीतीश के सुर बदल गए और वो मंचों से कहने लगे कि 2025 में तेजस्वी यादव नेतृत्व करेंगे और यही कुशवाहा के बगावत का कारण बना. उपेंद्र कुशवाहा को लगा उनकी अनदेखी हो रही है और वो वहीं से हिस्सा और बंटवारे की बात करने लगे.
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उपेंद्र कुशवाहा के जाने से नीतीश को कितना नुकसान?

उपेंद्र कुशवाहा मास लीडर नहीं, कास्ट लीडर के तौर पर जाने जाते हैं. बिहार में कुशवाहा जाति कुल आबादी की करीब 7-8 फीसदी होगी. उपेंद्र कुशवाहा का 12 से 13 जिलों में अपना प्रभाव है.

संजय कुमार कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा का बिहार की सियासत में प्रभाव है, तभी नीतीश ने उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, राज्यसभा सांसद और विधान पार्षद तक बनाया. वो लवकुश समीकरण को साध कर बीजेपी पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाना चाहते थे. लेकिन महागठबंधन में जाने से जाति समीकरण इतना मजबूत हो गया कि अब कुशवाहा नीतीश के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गए.

लव-कुश समीकरण का क्या हुआ?

यहां लव-कुश से मतलब है कुर्मी-कोइरी जातीय समीकरण. दरअसल, 1994 में हुए कुर्मी सम्मेलन में लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समीकरण की नींव पड़ी थी. ये सम्मेलन नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर के लिए काफी अहम था.

कह सकते हैं कि लव-कुश समीकरण नीतीश का आधार वोट बैंक था. लेकिन अब आरजेडी और जेडीयू के मिलने से ये माना जा रहा है कि नीतीश को मुस्लिम, यादव, दलित, कुर्मी वोटरों का साथ मिल जाएगा. ऐसे में अगर कुशवाहा समाज से दूरी हो भी जाए तो बहुत ज्यादा नुकसान न हो. हालांकि नीतीश ने उपेंद्र कुशवाहा को किनारा जरूर किया है लेकिन पार्टी से निकाला नहीं है. इसे ऐसे मावृन सकते हैं कि JDU उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी से निकाल कर उन्हें शहीद का दर्जा नहीं देना चाहती क्योंकि इससे कुशवाहा समाज में संदेश जाएगा कि तेजस्वी की वजह से उन्हें (उपेंद्र) निकाला गया.
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कुशवाहा की राह कितनी आसान कितनी मुश्किल?

लोकसभा चुनाव को अब एक साल का वक्त बचा है, विपक्षी पार्टियां एकजुट होने की कोशिश कर रही हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू ने मिलकर 40 में से 39 सीटों पर बिहार में कब्जा किया था. लेकिन अब दोनों के रास्ते अलग हैं. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा नई पार्टी बनाने के बाद अब जनता के बीच जाकर अपनी बात रखेंगे और ये संदेश देंगे कि वो लव-कुश समाज को मजबूत करने के लिए अलग हुए हैं. इसके जरिए वो बीजेपी को भी अपनी ताकत का एहसास कराना चाहेंगे ताकि अगर 2024 से पहले गठबंधन की संभावना बनें तो, अधिक सीटों को लेकर बात बन जाये.

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