केंद्र सरकार ने 13 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में निजामुद्दीन मरकज (Nizamuddin Markaz) पर लगे प्रतिबंधों को जारी रखने के अपने कदम को उचित ठहराया है. इसके लिए सरकार ने राजनयिक संबंधों और 'सीमा पार' निहितार्थों का हवाला दिया. इसमें मरकज स्थित मस्जिद भी शामिल है, जहां तब्लीगी जमात के सदस्यों के कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बाद सार्वजनिक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
गृह मंत्रालय ने मरकज में प्रतिबंधों में ढील के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा दायर याचिका के जवाब में कहा कि,
"चूंकि लगभग 1,300 विदेशी उस परिसर में रहते पाए गए थे और उनके खिलाफ मामलों में सीमा पार निहितार्थ हैं और अन्य देशों के साथ राष्ट्र के राजनयिक संबंध शामिल हैं, इसलिए प्रतिवादी की ओर से उस परिसर को CRPC की धारा 310 के तहत सुरक्षित करने के लिए (प्रतिबंध) आवश्यक है"
मालूम हो कि CRPC की धारा 310 में एक जज या मजिस्ट्रेट द्वारा उस स्थान का निरीक्षण करने का प्रावधान है जहां अपराध करने का आरोप लगाया गया है.
केंद्र ने जवाब में आगे कहा कि परिसर में ताला इस तथ्य के मद्देनजर लगाया गया है कि पिछले साल दर्ज मामले में मरकज प्रबंधन खुद जांच के घेरे में है.
"यह उचित और आवश्यक है कि इस तरह के मामले से जुड़े केस प्रॉपर्टी को पूरी तरह से संरक्षित किया जाए ताकि ऐसे मामलों से निपटने में कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया जा सके. जिसमें CRPC की धारा 310 के तहत बताई गई प्रक्रिया भी शामिल है"
केंद्र सरकार के अनुसार भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत वक्फ बोर्ड के अधिकार पर "उचित प्रतिबंध" लगाया गया है, "इस आधार पर कि उक्त परिसर का उपयोग कानून और पब्लिक आर्डर के अनुसार नहीं किया जा रहा था”
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने जताई है आपत्ति
फरवरी 2021 में वकील वजीह शफीक के माध्यम से दायर याचिका में दिल्ली वक्फ बोर्ड ने कहा है कि मस्जिद बंगले वाली, मदरसा काशिफ-उल-उलूम और बस्ती हजरत निजामुद्दीन से जुड़ा हॉस्टल मार्च 2020 से बंद हैं.
दिल्ली वक्फ बोर्ड के अनुसार मस्जिद में प्रवेश करने और नमाज अदा करने के लिए आम जनता को अनुमति नहीं है, छात्रों को मदरसा में अपनी शिक्षा जारी रखने की अनुमति नहीं है और किसी को भी प्रधान मौलवियों और उनके परिवार के लिए बने हॉस्टल में रहने की अनुमति नहीं है.
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