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‘कई मोर्चों पर साझा कोशिश बढ़ाएगी इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का दखल’

इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का भविष्य काफी अच्छा 

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भारत
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इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का दखल बढ़ाने और उन्हें बाजार से जोड़ कर फायदे का सौदा बनाने के तरीके ढूंढने के लिए क्विंट हिंदी और गूगल के खास कार्यक्रम बोल- लव योर भाषा में जुटे टेक और मी़डिया कंपनियों के प्लेयर्स ने कई स्तरों पर बदलाव की जरूरत पर जोर दिया है.

इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं की मजबूती के लिए काम कर रहे इन लोगों का कहना है कि भारतीय भाषाओं को लेकर सरकार की पॉलिसी से लेकर भाषाओं के स्टैंडर्डाइजेशन और टैलेंट पूल को मजबूत करने की जरूरत है. तभी भारतीय भाषाएं इंटरनेट पर मजबूत होंगी और इनका बाजार बढ़ेगा.

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ऐसे मनेगा इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का जश्न

  • टेक्नोलॉजी को हिंदी के हिसाब से यूजर फ्रेंडली बनाना होगा
  • डेटा की आसान उपलब्धता बेहद जरूरी
  • सिर्फ सरकार पर निर्भरता कम करनी होगी
  • अंग्रेजी की तरह ही हिंदी में भी इंटरनेट इस्तेमाल आसान हो
  • अंग्रेजी की तरह हिंदी और भारतीय भाषाओं का स्टैंडर्डाइजेशन जरूरी
  • भारतीय भाषाओं में जल्द ही 50 करोड़ यूजर्स होंगे और बढ़ाना होगा
  • भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर पैसा बनाना सीखना होगा
  • भारतीय भाषाओं के प्लेटफॉर्म पर विज्ञापनदाताओं का लाना होगा
  • भारत में टैलेंट पूल को मजबूत करने की जरूरत
इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का भविष्य काफी अच्छा 
बोल- लव योर भाषा प्रोग्राम की पैनल चर्चा में हिस्सा ले रहे विशेषज्ञों से सवाल-जवाब का दौर 
फोटो : फेसबुक 

हिंदी में इंटरनेट इस्तेमाल की सहूलियत बढ़ाने की जरूरत : अरविंद पाणि

भारतीय भाषाओं के जरिये डिजिटल डेमोक्रेसी पर एक पैनल चर्चा के दौरान इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का दखल बढ़ाने के सवाल पर रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजिज के को-फाउंडर और सीईओ अरविंद पाणि ने कहा कि अंग्रेजी में जितनी आसानी से इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है ठीक वैसी ही सहूलियत हिंदी में भी होनी चाहिए. भारतीय भाषाओं में एकसमान स्टैंडर्ड नहीं होना भाषाओं के इस्तेमाल में रुकावटें खड़ी कर रहा है. सरकार से इनोवेशन के मोर्चे पर कोई बड़ी मदद की उम्मीद हम नहीं कर रहे हैं. यूनिकोड और की बोर्ड में स्टैंडर्ड होना जरूरी है, इससे भाषा लिखना और टाइप करना आसान होगा.

टेक्नोलॉजी को हिंदी के हिसाब से यूजर फ्रेंडली बनाना सबसे बड़ा चैलेंज

वर्नाकुलर.एआई के को-फाउंडर और सीईओ सौरभ गुप्ता ने कहा कि टेक्नोलॉजी को हिंदी के हिसाब से यूजर फ्रेंडली बनाना सबसे बड़ा चैलेंज है. साथ ही डेटा की आसानी से उपलब्धता जरूरी है, सरकारी डेटा हासिल करने में बहुत दिक्कत होती है. सरकार के सारे आंकड़े और डेटा एक ही जगह उपलब्ध होने चाहिए ताकि रिसर्च करना आसान हो

उन्होंने कहा, डेटा पर जरूरत से ज्यादा सीक्रेसी मुश्किल खड़ी करती है. सरकार मदद का वादा तो करती है लेकिन मुश्किल होती है.हमारी सबसे बड़ी चुनौती है डेटा हासिल करना. अमेरिका में सरकारी डेटा या बिजनेस से जुड़े कोई भी डेटा हासिल करना बहुत आसान है, पर भारत में सबसे बड़ा चैलेंज यही है. वहीं मिडियोलॉजो के को-फाउंडर और सीईओ मनीष ढींगरा भारतीय भाषाओं का मार्केट बहुत बड़ा है, भारतीय भाषाओं में जल्द ही 50 करोड़ यूजर्स हो जाएंगे. हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार की मदद की ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं, हम लोग अपना रास्ता खुद बनाते हैं, सरकार मदद करेगी तो स्पीड बढ़ेगी पर उसके इंतजार में हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठ सकते.

मनीष ढींगरा ने कहा कि  भारतीय भाषाओं में कंटेट तैयार हो जाता है, लेकिन उसमें पैसा कमाना बहुत मुश्किल होता है जब तक भारतीय भाषाओं में पैसा नहीं आएगा तब तक उसमें ग्रोथ की गुंजाइश बहुत कम है. बहुत कम पब्लिशर के पास क्षमता है कि भारतीय भाषाओं में पैसा बना पाएं. फिलहाल, गूगल की मदद से हिंदी, बांग्ला तमिल और तेलगू चार भारतीय भाषाओं में पैसा कमाने के मौके मिल रहे हैं. लेकिन मंजिल अभी दूर है. अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं के बीच विज्ञापन की दर में करीब दस गुना का फर्क है. 
इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का भविष्य काफी अच्छा 
रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजिज के अरविंद पाणि बोल लव योर भाषा में अपनी बात रखते हए 
फोटो : क्विंट हिंदी 
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सरकार को भी अपनानी होगी प्रो-एक्टिव अप्रोच : अंकुश सचदेवा

चर्चा में हिस्सा लेते हुए शेयर चैट के को-फाउंडर और सीईओ अंकुश सचदेवा ने कहा कि सरकार की तरफ से प्रोएक्टिव होने की जरूरत है, वो तय करे किस तरह की सूचना किस प्लेटफॉर्म पर जानी है. सरकार पॉलिसी बनाए जिससे भारतीय भाषाओं में डेटा और इंटरनेट कंपनियों को बढ़ावा मिले. हिंदी में ऐप बनाने के आइडिया पर कोई निवेश करने को तैयार नहीं था. हिंदी ऐप का आइडिया लेकर निवेशकों को पास गया तो उन्होंने इस पर निवेश करने से इनकार किया.

सचदेवा ने कहा कि शुरुआत में हिंदी चैट के ऐप को गंभीरता से लेने वाले बहुत कम थे. जियो की वजह से हिंदी ऐप और दूसरी भाषाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा मिला है. भारतीय भाषाओं के लिए विज्ञापन लाना बहुत मुश्किल काम है. डिजिटल प्लेटफॉर्म को विज्ञापन देने वालों को लाने में करीब 4 साल लगेंगे. भारत में टैलेंट की अभी भी बहुत दिक्कत है.

पैनल चर्चा में हिस्सा लेने वालों का मानना था इंटरनेट पर भारतीय भषाओं का प्रसार बढ़ाने और इससे एक मुनाफा देने वाला बिजनेस मॉडल खड़ा करने और इसे मजबूत करने के लिए लंबा रास्ता तय करना है लेकिन अब इसकी जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है. इस रास्ते में अभी बहुत कुछ करना है लेकिन इंटरनेट पर तमाम टेक कंपनियों और मीडिया कंपनियों की ओर से एक शुरुआत हो चुकी है. इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का फ्यूचर काफी अच्छा है.

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